Monday, February 19, 2024

शुष्क पुष्प का संदेश!

 भोले पुष्प की कोमलता से,

ऊब गए हो।

 अब बदलाव की आशा से, 

उसे दबाकर सुखाना चाहते हो?

सुखाने से पहले उस पर, 

थोड़ा  क्षार भी लगाते हो!

शुष्क पुष्प को देखकर,

अपनी सफलता पर इतराते भी हो!

रंग फीका हो गया तो क्या? 

अभी भी पुष्प ही तो है!

 तुमने पुष्प को पा लिया,

सदा सदा के लिए।

अब वह कभी तुमसे,

 अलग नहीं होगा।

 यह सोचकर कितने प्रसन्न होते हो!

 गर्व से भर जाते हो। 

फिर एक दिन, 

उस पुष्प को,

सहलाने की इच्छा से,

छू भर देते हो।

 हैरान होते हो क्योंकि; 

कोमलता तो है नहीं!

सुखा पुष्प का लचीलापन,

कहां खो गया?

सोच-सोच कर होते हो,

 हैरान परेशान! 

 झकझोर देते हो,

 सूखे पुष्प को, 

और वह  झेल कर,

 शक्तिशाली आघात;

बिखर जाता है।

चूर-चूर हो जाता है।

 निराश तुम्हारी आंखें,

निहारती रहती हैं; 

सूखे चरमराते पुष्प को।

 तुम्हें याद आती है,

 कोमलता पुष्प की।

 जिसका तुमने ही,

अपने हाथों से,

विनाश कर डाला।

अब हाथ मलते हो?

 मलते रहोगे!

 यह भूल नहीं थी;

हठपूर्वक किया गया,, 

दुष्कर्म था।

 परिणाम अपेक्षित था।

 तुम्हीं अनभिज्ञ थे।

 कोमलता को अवशोषित कर 

 प्यार पाने का उपक्रम,

 निरी मूर्खता है!!

 

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