जगन्नाथ जी के दर्शन की अभिलाषा हो, तो आवश्यक है कि उड़ीसा राज्य में जाना होगा। और जब जगन्नाथ जी के दर्शन हेतु हम पुरी पहुंचे, तब तक बहुत थक चुके थे। थोड़ा विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन किए। इसके पश्चात बाजार की रौनक देखने के लिए निकले।
बहुत बड़ा बाजार है जगन्नाथ पुरी का। पूजा की सामग्री के अतिरिक्त खाने-पीने के सामान की भी कोई कमी नहीं है। वहां का स्थानीय भोजन तो वहां पर मिलता ही है, साथ ही उत्तर भारतीय खाना भी आसानी से मिल जाता है।
चलते-चलते नजर पड़ी एक साइन बोर्ड पर। लिखा था 'दाल मखानी'। भई वाह! यहां तो दाल मखनी भी मिलती है। भूख जोरों की लगी थी। सभी खुश हो गए। दाल मखनी का आर्डर दिया और इंतजार करने लगे।
थोड़ी देर में हमारे सामने दाल मखनी और नान आ गया। दाल मखनी के ऊपर से ढक्कन हटाया गया। यह क्या! पीली दाल? यानी अरहर की दाल! दाल में बहुत से मखाने भी तैर रहे थे। हम सब हैरान होकर एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। यह कौन सी रेसिपी है? वेटर को बुलाकर हमने कहा दाल मखनी लाओ। यह क्या लाए हो?
वह बड़ी सहजता से बोला 'यहां पर इसे दाल मखानी कहते हैं।' इसमें दाल है, और मखाने भी हैं। यह बन गई दाल मखानी।
अच्छा तो यह दाल मखानी है! हम मुस्कुरा रहे थे और 'दाल मखानी' का आस्वादन कर रहे थे।
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