सुंदर नर्सरी वास्तव में बहुत ही सुंदर है। केवल पौधों में ही सुंदरता नहीं है, बल्कि सुंदर नर्सरी की वास्तुकला भी, सुंदरता की अनोखी मिसाल है। सुंदर मनोरम मन को लुभाते दृश्यों का आनंद लेते-लेते थक गए थे। थोड़ा-थोड़ा तरो ताजा होने का वक्त आ गया था। एक जगह कोमल मखमली घास थी और आसपास काफी वृक्ष भी थे। सोचा वहीं पर चादर बिछाकर नाश्ता कर लिया जाए।
सभी ने थर्माकोल की एक-एक प्लेट ली। टिफिन बॉक्स में से सूखी आलू की सब्जी, और गरम-गरम पूरियां निकाल कर बीच में रख दी गई। सभी ने सब्जी और पूरी अपनी प्लेट में डाली और भोजन का आनंद लेना शुरू किया। पूरियां बीच में ही इकट्ठी रखी हुई थी, जिससे कि जिसे जरूरत हो, तो स्वयं ले ले।
अचानक मुझे महसूस हुआ कि एक काला सा कपड़ा उड़कर मेरे मुंह के पास तेजी से आया; और ऊपर चला गया। मैं हैरान! तेज हवा या आंधी भी नहीं थी । यह सब एक पल में हो गया। तभी किसी ने कहा," वह पूरियां ले गई, पंजे में दबोच कर।" किसी दूसरे ने कहा, "अरे! दो पूरियां गिरा भी दी है।"
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने देखा कि सभी ऊपर की ओर देख रहे थे। एक चील के पंजे में पूरियां थीं और वह तेजी से उड़कर दूर एक पेड़ पर जा बैठी। यह सब एक पल में ही हो गया। सभी भौचक्के थे। किसी ने कहा, "मुझे लगा कि कोई काला छाता टकरा गया है। किसी दूसरे ने कहा, "मुझे तो लगा काली परछाई, गाल से छूकर निकली है।"
वास्तव में एक चील एक पेड़ पर छिपी बैठी हुई थी। जब हमने खाने पीने का सामान बाहर निकाला; और हम खाने के लिए तैयार हुए, तो पलक झपकते ही, उसे चील ने उड़ान भरी और पूरियां पंजे में दबोच कर उड़ गई। यह सभी इतनी फुर्ती और दक्षता के साथ हुआ, कि हम सभी स्तब्ध थे। किसी को रत्ती भर भी चोट नहीं आई।
चील बिना किसी को नुकसान पहुंचाए; इतनी कुशलता से, पूरियों को उठा ले गई, कि विश्वास ही नहीं हो रहा था। लेकिन जो दो पूरियां उसने नीचे गिरा दी थी; वह इस अविश्वसनीय घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण थी। हम काफी सहम गए थे। लेकिन फिर से हमने खाना शुरू किया।
अब हमें यह घटना थोड़ी मजेदार लग रही थी। खाना खाकर जब एक पेड़ की तरफ नजर गई, तो एक चील वहां बैठी दिखाई दी। "अरे! इस चील ने ही हमारी पूड़ियां ले ली है!" बच्चे बोल उठे। वे भी पहले तो से सहम गए थे। लेकिन अब वे भी उत्सुकता से उस चील को देख रहे थे।
अचानक उस चील ने उड़ान भरी। एक छोटा सा बच्चा कप केक लेकर चल रहा था। चील ने बड़ी फुर्ती से उसका कप केक पंजे में दबोचा, और वापस उसी पेड़ पर चली गई। वह रोता हुआ अपनी मां से लिपट गया।
तब हमें भी समझ आया, कि इसी तरह चीज ने हमारी पूरियां दूर से ही देख ली होंगी। इसी तरह उड़ान भरकर इसने हमारे पूरियां पंजे में दबोच ली होंगी।
शायद वह चीज बूढी हो गई होगी। शिकार न कर पाती होगी। तभी तो पेड़ पर बैठकर पिकनिक करने वाले समूहों का खाना चालाकी से चट कर जाती है।
आज भी वह घटना याद आती है, तो शरीर से सिहर उठता है।
यद्यपि, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए, खाने पर डाका डालना भी एक कला है। मैं सचमुच उसकी दक्षता और गजब की स्फूर्ति प्रशंसक हूं। लेकिन चील की "चालाकी" इतनी ज्यादा काबिले तारीफ नहीं है।
No comments:
Post a Comment