तृतीय कालांश में दसवीं कक्षा को पढ़ाने के बाद में नीचे स्टाफ रूम में आई, तो पता चला कि डॉक्टर राकेश राही ने हमारे विद्यालय में नए प्रिंसिपल का पदभार संभाला है। उनकी नियुक्ति पदोन्नति की वजह से नहीं; बल्कि सीधे ही इसी पद पर हो गई थी। वे स्टाफ रूम में सबसे परिचय करने के लिए आए, तो बड़े ही हंसमुख व गरिमामय व्यक्तित्व के धनी प्रतीत हो रहे थे।
यद्यपि कई बार प्रतीत कुछ और होता है; और वास्तविकता कुछ और होती है। लेकिन राही सर के संदर्भ में ऐसा नहीं है। उचित मार्गदर्शन देते हुए वे सर्वदा सभी को प्रोत्साहित ही करते रहे हैं। कार्य क्षेत्र में कोई भी कठिनाई आने पर वे उचित समाधान बताते हुए पूरी तरह सहयोग देते रहे।
जहां अच्छे कार्य की उन्होंने हमेशा सराहना की; वहां किसी भी गलत परिस्थिति से कभी समझौता नहीं किया। निडरता के साथ संवेदनशील होना भी उनकी एक अनूठी विशेषता है। मुश्किल की घड़ियों मे उनके एक वाक्य ने ही मुझे बहुत हौंसला दिया था; "कौन कहता है, आसमान में छेद नहीं होता? एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।"
वे उप शिक्षानिदेशक के पद से सेवानिवृत हो रहे हैं। इन क्षणों में उनके लिए कुछ भावभीनी पंक्तियां मेरी ओर से समर्पित है:
आपके व्यक्तित्व में,
ठहराव है; समर्पण है।
कुछ ठोस, संकल्प क्रियान्वन का प्रण है।
उचित सम्मान देते हुए,
अपनी छत्रछाया में,
सबको जोड़ लेते हैं।
बाधाएं आई तो,
त्वरित मोड़ देते हैं।
आभामय मुख मंडल पर
चिर परिचित मुस्कान;
लंबी थकान को भी
कर दे तुरत निष्प्राण।
स्फूर्ति युक्त, सरल हृदय;
निडरतापूर्ण, विविध निर्णय;
अनुप्रेरित करते पल-पल,
कहीं नहीं, किंचित संशय।
नव प्रेरणा से अनुप्राणित करती,
उर्ध्व चेतना का विस्तार।
अपने वितरित किया,
सहकर्मियों में साहस अपार।
छत्रछाया में आपकी,
विविध दक्षताएं हुईं ग्रहण।
आपके कृतित्व को,
उदार व्यक्तित्व को,
वंदन! नमन! अभिनंदन!!
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