कान की लौंग मैली हो गई थीं। सोचा कि इनको साफ कर लेती हूं। उन्हें धोकर और सुखाकर मेज पर रखा। कान में पहनने के लिए पेच खोलकर कान में लौंग पहनी। जैसे ही पीछे से पेच बंद करने लगी कि, पेच छूटकर मेरे हाथ से जा गिरा।
मैं डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी थी। आसपास सब जगह पेच को ढूंढा। डाइनिंग टेबल पर, कुर्सी के नीचे, नीचे का फर्श आदि सब चीज हिला हिला कर अच्छी तरह से देख लिया। अपनी साड़ी को भी झाड़ कर देखा। और यहां तक की पूरे फर्श की झाड़ू भी लगा कर देखा। लेकिन पेच कहीं भी नहीं मिला। डाइनिंग टेबल के ऊपर भी बहुत ध्यान से देखा। परन्तु सोने का पेच तो, चमकता हुआ दिख ही जाता।
कहीं भी नजर न आने पर, मैंने सोचा कि अगर यहां पेच नहीं मिल रहा तो और कहां जा सकता है? और कोई तो घर में आया या गया नहीं। वह घर में मिल ही जाएगा। इसीलिए मैंने उसे ढूंढने का प्रयास छोड़ दिया। और सोचा कि अगर मिलना होगा तो यूं ही मिल जाएगा। अन्यथा दूसरा पेच खरीद लूंगी। उसके बाद मैने उन लौंगों को उठाकर एक डिब्बी में डाल दिया और अलमारी में रख दिया। मैं दूसरे काम-काज में व्यस्त हो गई।
दोपहर को रुद्रांश वापिस स्कूल से आया तो हम सब लंच के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गए। फ्रिज में से दही निकाल कर मैंने सब की कटोरियों में पहले से ही डाल रखी थी; जिससे कि वह बहुत ठंडी न रहे और सामान्य तापमान पर आ जाए। पूरा खाना परोस कर हम सब डाइनिंग टेबल पर खाने बैठे।
अभी हमने थोड़ा सा ही खाना खाया था कि अचानक रुद्रांश बोल उठा, "दही में सोना!"
मैं हैरान हो गई, "दही में सोना!"
उसने कहा, "हां। मेरी दही में सोना चमक रहा है!"
मैं तब और भी हैरान हुई कि दही में सोना कैसे चमक सकता है? तभी याद आया, अरे! कहीं मेरी कान की लौंग का पेच तो नहीं?
मैंने कहा, "निकाल कर देख कि क्या है?"
रुद्रांश ने उसे निकाला तो वह मेरी लौंग का पेच ही था। पता नहीं कब, वह मेरे हाथ से छिटक कर, दही की कटोरी में जा गिरा और उसमें छिप गया। मुझे तो लगा था कि अब पेच नहीं मिलेगा। लेकिन पेच इस तरह मुझसे आंख-मिचौनी खेलता हुआ दही में जा गिरेगा; मैंने सोचा न था।
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