मेरे सहकर्मी महेश पंत सेवानिवृत हो रहे हैं विश्वास ही नहीं हुआ। निर्भीक एवं स्वतंत्र विचारों से परिपूर्ण उनका व्यक्तित्व अपने में ढेर सा साहस बटोरे हुए है। लकीर के फकीर होना उन्हें स्वीकार्य नहीं। रूढ़िवादिता से वे कभी सहमत नहीं हुए। नित्य नए प्रयोग करते हुए अपने विद्यार्थियों को वे बहुत रोचक ढंग से पढ़ाते रहे हैं। ऐसे व्यक्तित्व से सम्मोहित, उनके विद्यार्थी उनकी भूरी भूरी प्रशंसा न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता। सभी विद्यार्थियों और सहकर्मियों में प्रशंसनीय इस व्यक्तित्व को कुछ पंक्तियां समर्पित है:
मौन शब्दों से नहीं होता व्यक्त,
हृदय का भाव उन्मुक्त।
भावों की गहराई,
शब्दों की सतह पर कब समाई?
समय की शिला पर,
आपने छोड़ी है अमिट छाप;
अनेकों मानस पटल पर अंकित हैं आप।
सदाचार, सद्व्यवहार और सद् कृत्य,
परोपकार से भरा जीवन नित नित्य।
ज्ञान अर्जित और वितरित करने की आकांक्षा,
नूतन अन्वेषण, ज्ञान संग्रहण की चिर अभिलाषा।
सरल अभिव्यक्ति निडर व्यक्तित्व की परिभाषा,
कठोर आदर्श, फिर भी अधरों पर मृदु भाषा!
आपके व्यक्तित्व को प्रणाम बारंबार;
पाएं आप प्रभु से, समृद्धि और हर्ष अपार!!
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