ओमप्रकाश सर के स्वभाव की सरलता किसी से छिपी हुई नहीं है। कर्मयोगी ओमप्रकाश सर को इधर-उधर की बातों से कोई मतलब नहीं। बस वे अपना कर्तव्य निभाने में हमेशा तत्पर रहते हैं। उनका जन्मदिन का अवसर भी है; और सेवानिवृत्ति भी समीप है। इन क्षणों में हृदय से कुछ पंक्तियां उनके लिए समर्पित है;
कोई गीता पढ़ता है।
कोई गीता सुनाता है।
लेकिन आप तो गीता को जीते हैं।
"मा कर्मफल हेतु: भू:"
आपने अक्षरश: अपनाया है।
और "मा ते संगो अस्तु अवकर्मणि"
में आपका पूर्णतया विश्वास है।
इसके कार्यान्वयन हेतु,
मैंने आपको सर्वदा ही कार्यरत पाया है।
"सुखे दु:खे समे कृत्वा, लाभालाभौ जयाजयौ"
के मंत्र का स्पष्ट अर्थ आपमें ही समाया है।
घटित कुछ भी हो जीवन में,
आपको मुस्काते हुए ही पाया है।
नि:स्वार्थ सेवा भाव की प्रतिमूर्ति,
आपके व्यक्तित्व में समाई है।
न अधिक प्रसन्न, न अधिक खिन्न;
योगी की सी परिभाषा आप में स्वयं चली आई है।
समाहित है परोपकार, जिस व्यक्तित्व में अनुपम;
उसे क्यों न नमन करें यह कृतज्ञ अंतर्मन।।
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