कृष्णा बालकोनी का पोछा लगा चुकी थी। पोछे को धोकर वह बाल्टी का पानी क्यारी में डालने ही वाली थी; कि अचानक चिड़ियों का शोर होने लगा। कृष्णा ने देखा कि पेड़ की डाली पर बुलबुल का जोड़ा बहुत जोर से शोर मचा रहा था।
सहसा उसकी नजर नीचे पडी, तो उसने देखा कि बुलबुल का नन्हा सा बच्चा जमीन पर पड़ा था। बुलबुल का जोड़ा उसे ही देख देख कर शोर मचा रहा था। कृष्णा समझ गई कि यह इन्हीं का नन्हा बच्चा है; और यह इसे उड़ना सिखा रहे हैं।
तभी सामने के घर से अलीना भी निकल आई। वह सामने वाले घर में काम करती है। वह भी पूछने लगी कि यह शोर क्यों हो रहा है? उसकी भी नजर बच्चे पर पड़ी। वह बोली कि इस बच्चे को तो बिल्ली खा जाएगी।
उसने देख लिया था कि पेड़ के पीछे, बिल्ली छिप कर बैठी हुई थी। बिल्ली की पैनी नजर बुलबुल के बच्चे पर थी। बिल्लियों को पक्षियों का मांस खाना बहुत अच्छा लगता है। और यहां तो पक्षी के नन्हे बच्चे का स्वादिष्ट नाश्ता तैयार था। वह ललचाई नजरों से बुलबुल के बच्चे को लगातार देखे जा रही थी।
कृष्णा ने कहा, "इस बच्चे को ऊपर पेड़ पर रख देना चाहिए।" नहीं तो बिल्ली से जरुर खा जाएगी। लेकिन अलीना तो, उसे छूने से भी डर रही थी।
कृष्णा ने एक कपड़ा लिया, और छोटे से बच्चे को सावधानी से उठाकर, पेड़ की डाली पर बिठा दिया। बुलबुल का जोड़ा यह सब देख रहा था। उनकी आवाज़ भी बंद हो गई थी। शायद उन्हें तसल्ली हो गई थी कि अब हमारा बच्चा सुरक्षित है।
कृष्णा ने कहा, "अब ये बच्चे को उड़ा ले जाएंगे।" कृष्णा तो चली गई; लेकिन थोड़ी ही देर में बुलबुल के जोड़े का फिर से शोर आने लगा।
रुद्रांश ने बाहर जाकर देखा, तो बिल्ली नीचे बैठी ललचायी नजरों से, बुलबुल के बच्चे को देख रही थी। उसने तभी बिल्ली को डंडा मार कर भगा दिया। बुलबुल का जोड़ा, अपने बच्चे को, जल्दी से उड़ना सिखाना चाहता था।
थोड़ी देर में, फिर से बुलबुल के जोड़े की, शोर मचाने की आवाज आने लगी।
रुद्रांश समझ गया कि फिर से बिल्ली आई है। उसने कहा, मैं अपने पास डंडा रखकर, बाहर बालकोनी में ही बैठकर, होमवर्क कर लेता हूं। बिल्ली आएगी, तो उसे भगा दूंगा। तब तक शायद यह बच्चा भी उड़ना सीख जाएगा।"
रुद्रांश के बाहर बालकोनी में बैठने पर, बुलबुल का जोड़ा निश्चिंत हो गया और बच्चे को उड़ाने की कोशिश करता रहा। बच्चा बार-बार डाली पर बैठा-बैठा पंख फड़फड़ाता, और फिर उड़ने की कोशिश करता। वह छोटी-छोटी उड़ान भर रहा था।
बिल्ली भी बहुत दूर बैठी थी। वह रुद्रांश को देख रही थी; लेकिन उसकी पास आने की हिम्मत नहीं हो रही थी। अचानक वह तीव्रता से बच्चे के करीब आने की कोशिश करने लगी। फुर्ती से रुद्राक्ष ने उसे दूर से ही डंडा मारा। वह बहुत दूर भाग गई। उसके बाद, बुलबुल का जोड़ा अपने बच्चे को उड़ाने की कोशिश में लगा रहा।
आखिरकार उन्हें सफलता भी मिल गई। बच्चा उड़ना सीख गया। वह थोड़ी दूर उड़ान भरकर, दूर वाले पेड़ पर जा बैठा। अब बुलबुल का जोड़ा बड़ा प्रसन्न था। उन्हें अंदाजा हो गया होगा, कि अब बच्चा उड़ान भर सकेगा। वह भी उसके साथ दूसरे पेड़ पर चले गए।
रुद्रांक्ष घर में वापिस आ गया। लेकिन इसके बाद बुलबुल के जोड़े का कोई शोर नहीं सुनाई दिया। लगता था कि उनके बच्चे ने उड़ान भरनी सीख ली होगी।
अगले दिन हमने कृष्णा को सारा किस्सा बताया, तो वह बहुत खुश हुई। उसने कहा, "चलो यह अच्छा है कि बच्चे की जान बच गई, और उसने उड़ना भी सीख लिया।"
रुद्रांश बोला, "आंटी! मुझे थैंक्स दो। मैंने बच्चे को बिल्ली से बचाया। अगर मैं बच्चे को बिल्ली से न बचाता, तो वह बिल्ली तो बच्चे को खा ही जाती।"
कृष्णा मुस्कुरा कर बोली, "थैंक्यू रुद्रांश!"
आजकल वह बुलबुल का जोड़ा, फिर से शायद अंडे सेने में व्यस्त है।
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