साठ को पार किया,
जीवन संग्राम जिया
थोड़ी धूप बाकी है,
छांह का आनंद लिया
देहरी पर छाया है
झूठी सब माया है
देहबोध जागा अब,
सत्य, स्वस्थ काया है
बेसुध सा बीता कल
खोए से सिमटे पल
अनुभव दे लुप्त हुआ,
अतीत आंखों से ओझल
अब कोई चाह नहीं
कोई परवाह नहीं
जागा प्रसुप्त हृदय
चुन ली है राह नई
बंधन से मुक्त समय
जीवन में स्वप्न विलय
कल्पना है कोरी सी
छंदों के बंध अभय
जीवन में हो प्रवाह
होगा तब शून्य दाह
चिंता, भयमुक्त हृदय;
भर देगा नव उछाह
जीवन अब एक पाठ
उम्र है जब साठ आठ
उन्मुक्त, निर्मल तन-मन;
भर देंगे आनंद ठाठ!
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