"कल रविवार है। प्लीज, आप मेरे घर आइए न! मम्मी ने भी आपको बुलाया है।"रश्मि बहुत आग्रह पूर्वक मुझे अपने घर ले जाना चाहती थी।
रश्मि, ऋचा के साथ एमडीएस की पढ़ाई कर रही थी। रश्मि बेंगलुरु में ही रहती थी। वह कन्नड़ थी। मैं छुट्टियों मे ऋचा के पास पी जी हॉस्टल में रहने गई हुई थी। उन दिनों मेरा पुत्र, अंकित भी अमेरिका से आया हुआ था। वह बैंगलुरु में, हमारे साथ ही हॉस्टल में ठहरा हुआ था।
इतने प्यार से वह बुला रही थी, कि मैं मना न कर पाई। फिर मुझे कन्नड़ परिवार का रहन-सहन और खान-पान देखने की उत्सुकता भी थी। हमने निर्णय लिया कि प्रातः काल का नाश्ता उन्हीं के घर पर करेंगे।
बहुत सादगी से परिपूर्ण वातावरण था, उनके घर का। उनके पिता उच्च सरकारी पद पर नियुक्त थे। लेकिन उनमें रत्ती भर भी अभिमान न था। रश्मि की मां ने नाश्ते में जो स्वादिष्ट इडलियां खिलाई; उनका तो जवाब ही नहीं! बिल्कुल रुई जैसी नरम इडलियां, मजेदार चटनी और सांभर! उसके बाद फिल्टर कॉफी की चुस्कियां ली। खूब गपशप की और वापस हॉस्टल आ गए।
एमडीएस की पढ़ाई में एक बैच में तीन छात्र-छात्रा ही होते हैं। तीन वर्ष की पढ़ाई में वे अच्छे मित्र भी बन जाते हैं। रश्मि और ऋचा के अतिरिक्त, अविनाश नाम का छात्र भी, इनका सहपाठी था। बेंगलुरु से जब मेरा वापस आना हुआ; तब भी रश्मि मुझसे मिलने आई थी। उसने मुझे तिरुपति जी की प्रतिमा उपहार में दी थी; जो आज भी मेरे पास है।
अचानक सोलह वर्ष बाद रश्मि का फोन ऋचा के पास आया। "मेरी दिल्ली में पोस्टिंग हो गई है। मैं तुझसे मिलने आ रही हूं।" रश्मि ने अंग्रेजी में कहा। रश्मि कन्नड़ या अंग्रेजी भाषा बोलना ज्यादा पसंद करती है।
ऋचा तो हैरान हो गई यह सुनकर, कि रश्मि की पोस्टिंग दिल्ली में हो गई है!
"अरे! तू दिल्ली कब आई?"
"अभी एक महीने पहले मैंने ज्वाइन किया है। इस रविवार को आती हूं, तेरे घर। ठीक है?"
"हां। हां। जरूर!"
ऋचा ने यह तो सुना था, कि रश्मि ने एमडीएस की पढ़ाई के बाद प्रेक्टिस नहीं की। उसने अपने पति के साथ ही आई ए एस की परीक्षा की तैयारी की थी। यद्यपि वह एक बच्ची की मां भी बन चुकी थी। फिर भी, उसने बहुत परिश्रम से पढ़ाई की और आई ए एस की परीक्षा पास कर ली। उसके पति ने उसके भी अगले वर्ष यह परीक्षा पास की। लगभग दस वर्ष बेंगलुरु में ही उसकी नौकरी थी।
अब उसकी पदोन्नति होनी थी। इसलिए उसे दिल्ली में पोस्टिंग लेनी थी। जब वह अपने विभाग से भली भांति परिचित हो गई और कुछ खाली समय मिला, तो उसे ऋचा की याद आई। अविनाश के पास ऋचा का फोन नंबर था। उसने अविनाश से ही फोन नंबर लेकर ऋचा से बात की।
पहले तो रश्मि ने सोचा कि वह दोपहर को हमारे घर आएगी। लेकिन आई ए एस पदाधिकारी की कभी भी मीटिंग हो जाती है। उसकी शाम को कोई जरूरी मीटिंग थी। इसीलिए उसने सुबह हमारे यहां आने का प्रोग्राम बनाया।
रश्मि को देखकर लगा ही नहीं कि वह बदल गई है। बिल्कुल पहले जैसी ही लग रही थी। उसने सूट सलवार और चुन्नी पहनी पहनी हुई थी। बिल्कुल सादगी से भरपूर थी वह!
"अरे बेटा रश्मि! तुम बिल्कुल ही पहले जैसी ही लग रही हो। कितना अच्छा लग रह रहा है तुमसे मिलकर! कितने वर्षों के बाद मिले हैं हम।"
"हां आंटी! मेरी लाइफ तो बहुत ज्यादा बिजी हो गई है। लेकिन मिलने का बहुत मन था।" रश्मि भी भाव विभोर थी।
उसके बाद तो बातों का सिलसिला जो चला तो बस चलता ही गया। कितनी पुरानी बातें, बीती यादें, दोनों सहेलियों ने मन में संजोई हुई थी। खूब ठहाके लगे। दोनों ने मिलकर अविनाश को वीडियो कॉल भी कर लिया। आपस में बहुत मजे किए तीनों ने! खूब हंसे, और एक दूसरे की खिंचाई भी की।
अविनाश ने मुझसे भी बात की। वह मेरे द्वारा बनाए परांठों की प्रशंसा कर रहा था। मैंने उसे बताया कि आज भी लंच में पराठे ही बनाए हैं। बहुत सादा लंच था। परांठे, आलू की सब्जी और खीर। लेकिन रश्मि तो वह खाकर बहुत खुश हो गई। उसने बताया कि वह नाश्ते में इडली पोहा, और डिनर में रागी और सांभर खाती है। रश्मि के पास बहुत से नौकर हैं। उसे बहुत सुविधाएं हैं। लेकिन कैबिनेट मिनिस्टर कभी भी मीटिंग के लिए बुला लेते हैं। उसने यह भी बताया, कि कुछ दिनों में उसको सरकारी आवास मिल जाएगा। तब वह हमें अवश्य बुलाएगी।
फिर, उसने ऋचा से भी, उसके कार्य के बारे में पूछा। वह हैरान हुई, ऋचा के मरीजों की संख्या सुनकर! ऋचा की योग्यता के बारे में तो रश्मि पूर्णतः अवगत थी। यद्यपि पाठ्यक्रम में निपुणता हासिल करना भी बहुत महत्वपूर्ण है; लेकिन दक्षता और कौशल के आधार पर अपनी साख बनाना, वाणिज्यिक जीवन का, बिल्कुल अलग पहलू है। वास्तविक धरातल पर अपना प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लेना, सरल नहीं होता। वह, ऋचा से थोड़ी बहुत, ईर्ष्या भी कर रही थी; क्योंकि जिस विद्या में वह निष्णात थी, उसका वह अधिक लाभ प्राप्त नहीं कर सकी थी।
रुद्रांश ने, रश्मि को गिटार पर, गाने की धुन सुनाई, तो उसे बहुत मजा आया। उसे वापस जल्दी ही जाना था; क्योंकि अगली मीटिंग के लिए उसे काफी पढ़ाई भी करनी थी। उसने फिर आने का वायदा किया, और रुद्रांक्ष को प्यार किया। मीठी यादों में हमें डुबोकर, वह वापस चली गई।
रश्मि! हम सब तुम्हारा इंतजार करेंगे!
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