जेल में मुलाकात का वक्त हो गया था। जय सिंह अपने मित्र से मिलने वहां गए थे। उनके मित्र नरेश और उसकी पत्नी, दोनों ही जेल में थे।
जब मिलने का समय हुआ तो जयसिंह उनके पास गए। उन्होंने कहा, "बहुत दुःख की बात है कि आपको यहां जेल आना पड़ा। परन्तु मैं तो हैरान हूं कि ऐसा क्या हो गया कि आप जेल के अंदर बंद हो गए?"
नरेश की पत्नी रीमा की आंख में तो आंसू ही आ गए। वह कुछ बोल न पाई। लेकिन नरेश ने बताया कि यह सब उनकी गलती नहीं है। वे तो बिना किसी कसूर के ही जेल में बंद हो गए हैं।
जय सिंह बोले, "आखिर ऐसा क्या हुआ? कुछ तो आपने किया ही होगा, जिसकी वजह से आप जेल में बंद हो गए हैं। मुझे तो जब पता चला तभी से मैं सोच रहा हूं कि आपसे मिलकर पूछूं कि आखिर बात क्या हुई?"
नरेश बड़े दुखी मन से बोले, "आप तो बहुत सालों से हमसे मिल नहीं पाए। इसीलिए आपको कुछ पता ही नहीं है। दो साल पहले हमने अपने बेटे का विवाह निश्चित किया था। वह लड़की बड़ी सुंदर और सुशील थी। लेकिन मेरे बेटे ने किसी और लड़की को पसंद किया हुआ था। वह हमारी बिरादरी की भी नहीं थी; इसीलिए हम उसे अपने बेटे का विवाह नहीं करना चाहते थे। पर क्योंकि हमारा बेटा उससे ही शादी करना चाहता था, इसीलिए उसकी खुशी के लिए हमने उस लड़की से अपने बेटे की शादी कर दी।
कुछ समय तो सब ठीक-ठाक रहा। लेकिन तीन-चार महीने के बाद ही वह लड़की हमारे बेटे से लड़ने लगी। हमारा बेटा भी गुस्से के स्वभाव वाला है। वह भी खूब गुस्सा करता। मेरे बेटे की और उसकी बहू की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। दोनों ही लड़ते रहते थे। हमने सोचा कि यह हमारे सामने लड़ते होंगे। हम यहां से चले जाएंगे तो शायद उनकी लड़ाई खत्म हो जाएगी। इसीलिए हमने निश्चय किया कि उनको वह मकान देकर हम दूसरे मकान में शिफ्ट हो जाते हैं।
हम दूसरे मकान में रहने के लिए चले गए। लेकिन उनकी लड़ाइयां खत्म न हुई। लड़की ने मेरे बेटे पर केस कर दिया। उसने मेरे बेटे पर तो केस किया ही साथ में हम दोनों को भी दहेज मांगने की आरोप में गिरफ्तार करवा दिया।
अब मेरा बेटा अलग जेल में बंद है; क्योंकि उसके ऊपर तो उस लड़की ने हत्या की साजिश का आरोप भी लगा दिया है। लेकिन मेरे और मेरी पत्नी के ऊपर प्रताड़ना का आरोप लगाया गया है। उस लड़की का कहना है कि दहेज के लालच में हमने अपनी बहू को बहुत प्रताड़ित किया।"
इसके बाद में नरेश कुछ देर चुप रहा। फिर उसने कहा, "क्या करूं,जय सिंह? मैं और मेरी पत्नी तो चाहते भी नहीं थे कि हमारा बेटा उस लड़की से शादी करे। यह सब भाग्य का खेल है कि बच्चे की मर्जी से शादी करवाने के बाद भी हमें यह परिणाम देखना पड़ा। अब तुम ही बताओ जय सिंह भैया, मेरा क्या कसूर है?"
जेल में मिलने का समय समाप्त हो चुका था। जय सिंह जेल से वापस आते समय यही सोच रहा था कि नरेश बिल्कुल निर्दोष होते हुए भी भाग्य की कठपुतली बना हुआ है। यह तो हास्यास्पद हो गया कि जिस लड़की से वह अपने बेटे की शादी कराना भी नहीं चाहता था; उसकी वजह से वह स्वयं आज जेल में बंद है। यह कैसी विडंबना है?
No comments:
Post a Comment