स्वस्थ रहना है तो सरल जीवन की और चलना होगा। जिस सरलता से हमारे पूर्वज जीवन व्यतीत करते थे; हमें उसी राह पर चलना होगा। उनके खान-पान में बहुत सरलता थी। वह क्षेत्रीय स्तर पर उगे हुए खाद्य पदार्थ ही खाते थे। हमें भी अपने ही क्षेत्र में उगे हुए खाद्य पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। हम उन्हें सरलता से पचा पाते हैं। दूसरे अपरिचित क्षेत्र के खाद्य पदार्थ पचाने में हमारे शरीर को असुविधा होती है। साथ ही हमें मौसमी फल सब्जियां ही खानी चाहिएं। मौसम के अनुकूल फल सब्जियां, हमारा शरीर आराम से पचा पाता है। हमारे पूर्वज हर समय खाते नहीं रहते थे। खूब शारीरिक परिश्रम किया करते थे। सोने से काफी देर पहले, वे दिन का आखिरी भोजन कर लेते थे। हमें भी ऐसा ही करना होगा।
सवेरे का प्रथम भोजन थोड़ा बहुत शारीरिक परिश्रम करने के बाद ही खाना चाहिए; फिर चाहे वह थोड़ा बहुत व्यायाम हो या फिर शारीरिक काम। दिन का आखिरी भोजन सोने के लगभग तीन-चार घंटे पहले हो जाना चाहिए। खाने के बीच में अंतराल भी होना चाहिए। ऐसा नहीं की हर दो घंटे में कुछ भी खा रहे हैं। हमें सब्जियां और सलाद ज्यादा खानी चाहिए। वास्तव में हमें सजग रहकर भोजन करना चाहिए। भोजन करते समय यह अवश्य सोचना चाहिए कि यह भोजन मेरे शरीर को बीमारियां देगा; या फिर यह भोजन मेरे शरीर की बीमारियों से लड़ेगा।
हमारी आंतों में लगभग 30 से 70 ट्रिलियन बैक्टीरिया होते हैं। इनका मुख्य भोजन वही है जो कि हम सलाद और सब्जियों के रूप में खाते है। यदि हम इन बैक्टीरिया का भोजन नहीं खाते तो यह बैक्टीरिया भूखे होने पर पहले आंत की अंदर की चिकनी परत को खाते हैं। बाद में आंतों को भी अंदर से खाना शुरू कर देते हैं। इससे आंतों में घाव होने शुरू हो जाते हैं। और बुरे टॉक्सिंस हमारे खून में पहुंचने शुरू हो जाते हैं। इस तरह बीमारियों की शुरुआत हो जाती है। यदि हम इन बैक्टीरिया को उचित भोजन देते रहेंगे तो ये स्वयं भी संतुष्ट रहेंगे और हमारे लिए उचित विटामिनों का निर्माण करते रहेंगे। जिससे हम भी स्वस्थ रहेंगे। है न दोनों के ही फायदे की बात!
हमें सबसे अधिक सब्जियां और फल खाने चाहिएं, उससे कम दाल और सबसे कम कार्बोहाइड्रेटस्। हमारे शरीर का लीवर अगर ठीक रहेगा तो हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। लीवर को सभी पाचक तंत्र के अवयवों की मां कहा गया है। कारण यह है कि मां सभी को आराम से सुलाकर, बाद में सभी काम निपटाकर, स्वयं आराम करती है। पहले सभी ऑर्गन्स अपना काम कर लेते हैं; और आराम करते हैं। सबसे बाद में लिवर आराम करता है। लिवर को भी कम से कम चार पांच घंटे का आराम अवश्य ही चाहिए। इसीलिए हमें बीच-बीच में नमकीन इत्यादि भी नहीं खाने चाहिए।
जितना हम घर का बना सादा खाना खाएंगे उतना ही हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। हमें प्रयत्न करना चाहिए कि बाहर से बना हुआ खाना कम से कम खाएं। बाहर से बने भोजन की विश्वसनीयता इतनी अधिक नहीं हो सकती जितनी कि स्वयं बनाए हुए भोजन की। प्रोसैस्ड फूड तो कतई नहीं खाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त प्रयत्न करना चाहिए कि हर घंटे शारीरिक गतिशीलता भी बनी रहे। ऐसा न हो कि हम बहुत देर तक आराम से बैठे ही रहे।
जब हम दो खानों के बीच में अंतराल रखते हैं; तो उससे हमारे शरीर में पहले से संचित खाना भी काम में आता है। जिससे कि दो प्रक्रियाएं बड़ी अच्छी होती हैं। एक का नाम है ऑटो फैजी और दूसरे का नाम है माइटो फैजी। इन प्रक्रियाओं से ऐसी कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं; जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ती है। यदि यह प्रक्रियाएं न हो, तो ये कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर चली जाती हैं। इसी से कैंसर होने की भी संभावना भी हो सकती है।
खाने पर नियंत्रण रखने से व स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि रुक जाती है। और कैंसर की संभावना भी न के बराबर होती है। इसीलिए स्वस्थ रहना है तो समय से खाएं। दो आहारों के बीच में उचित अंतराल रखें। सरल आहार ही करें। और हां शरीर को क्रियाशील अवश्य रखें। सरल जीवन शैली अपनाने से शरीर में भी सरलता रहती है। कोई जटिलता नहीं आती।
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