Thursday, November 13, 2025

अमृत का सरोवर!

 बहुत दिनों से मन में अमित से मिलने की बहुत इच्छा थी। अमित धवन मुझे बेंगलुरु में मिला था। वह वहां रहकर दंत शल्य चिकित्सा में स्नातकोत्तर पढ़ाई कर रहा था। मैं जब छुट्टियों में ऋचा के पास रहने गई, तब वह भी वहां हॉस्टल में रह रहा था। वह ऋचा के बैच से एक वर्ष सीनियर था। उसका हँसमुख स्वभाव सबको बहुत पसंद था।  वह सबको हंसाता तो रहता ही था; साथ ही बहुत सुरीला गाना भी गाता था। कभी अगर वह गाना गा रहा होता, तो दूर से ऐसा लगता था, मानो मोहम्मद रफी ही गाना गा रहे हैं।

 जब भी वह कॉलेज से हॉस्टल की तरफ आता तो उसकी सीटी की आवाज से ही पता चल जाता था कि अमित धवन आ रहा है। हमेशा वह खूब बातें करता था। जब खाने के बाद हम सभी इकट्ठे हो जाते; तो वह खूब मज़ाक करता और फिल्मी गाने सुनाता। सभी अपनी दिन भर की थकान भूल जाते थे। कभी-कभी वह किचन में मेरे साथ खाना बनवाने में भी मदद करता था। और आलू के परांठे की फरमाइश तो वह अक्सर ही करता था। वह ठहरा पंजाब का! और पंजाबी तो परांठे के शौकीन होते ही है। बहुत अच्छा समय गुजरा उसके साथ! इसीलिए उसकी बहुत याद आती थी।

अमित अमृतसर का रहने वाला लड़का था। मेरा बहुत मन था कि अमित से मिलूं। उससे मिले हुए वर्षों बीत चुके थे। अमृतसर जाने का एक और भी आकर्षण था। मैंने स्वर्ण मंदिर के दर्शन नहीं किए थे। मेरी इच्छा थी कि एक बार स्वर्ण मंदिर के भी दर्शन अवश्य ही करूं। लेकिन व्यस्तता के कारण कभी भी ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं बन पाया। बस यह मन मे ही यह अभिलाषा ही बनी रही।

एक दिन शिखा का ऋचा के पास फोन आया। वह भी ऋचा के साथ  चिकित्सा में स्नातकोत्तर की पढ़ाई इस हॉस्टल में रहकर कर रही थी। ऋचा और शिखा एक ही कमरे में रहती थीं। अब इतने वर्ष बाद उसका फोन आया तो पता चला कि वह सोनीपत में रहती है। वही उसका नर्सिंग होम भी है। उसके पति और ससुर भी डॉक्टर थे। शिखा की भी वहां अच्छी प्रैक्टिस चल रही थी। ऋचा को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा।

 दोनों सहेलियों ने बहुत गप्पें मारी। आखिर में शिखा ने पूछा, "ऋचा! अमित की कोई खबर है क्या? वह कैसा है?"

  ऋचा ने कहा, "वह अमृतसर में ही प्रेक्टिस कर रहा है।"

शिखा ने कहा, "एक दिन प्रोग्राम बनाते हैं उससे मिलने का।"

 ऋचा बोली, "मन तो मेरा भी बहुत है। पर समय ही नहीं मिल पा रहा।" 

शिखा का कहना था, "समय तो निकालने से निकल ही जाएगा। चलो प्रोग्राम बनाते हैं। हम  अपने-अपने परिवारों के साथ चलते हैं।"

 दस-पन्द्रह दिन बीतते बीतते शिखा ने प्रोग्राम बना ही लिया। उसने जो समय बताया उससे ऋचा भी सहमत हो गई। बच्चों की उसे समय छुट्टियां भी पड़ रही थी। आखिर अमृतसर जाने का प्रोग्राम बन ही गया। 

तय हुआ कि हम शताब्दी में अमृतसर जाएंगे। होटल की बुकिंग पहले ही कर ली थी। एक कमरा शिखा ने अपने लिए बुक कराया और दो कमरे हमारे लिए बुक करा दिए। सब प्रोग्राम निश्चित होने पर हमने जाने की तैयारी शुरू कर दी। 

एक दिन पहले सभी सामान पैक कर लिया। अब मैं बहुत उत्साहित थी कि वह जो मैंने सोचा था अब वह होने जा रहा है। भोर में ही उठकर हम सब स्टेशन जाने के लिए के लिए टैक्सी में बैठे। बिल्कुल ठीक समय पर टैक्सी ने हमें रेलवे स्टेशन पहुंचा दिया। दस मिनट के बाद शताब्दी एक्सप्रेस धीरे-धीरे स्टेशन पर आती दिखाई दी।

 डिब्बे के अंदर चढ़ते ही देखा तो शिखा हमारे स्वागत के लिए खड़ी थी। उसने पतली सी शॉल ओढ़ रखी थी। रेलगाड़ी का डिब्बा वातानुकूलित होने के कारण उसमें में अच्छी खासी ठंडक थी। उसने अपने पति और बच्चों से हमारा परिचय कराया। उसके बाद हम अपने अपने स्थान पर बैठ गए। 

शिखा के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा नवीं कक्षा का छात्र है। और छोटा बेटा प्रथम कक्षा में पड़ता है। अपने-अपने स्थान पर बैठने के बाद शिखा और ऋचा तो एक ही सीट पर आ बैठीं और गपशप करने लगीं। शिखा का बेटा एक ड्राइंग की बुक पर पेंसिल से बहुत सुंदर ड्राइंग बना रहा था। मैं भी अपनी सीट पर बैठकर बाहर खिड़की से बाहर दृश्य देखने लगी। मुझे रेलगाड़ी में बैठकर खिड़की से बाहर देखने में बहुत आनंद आता है। बाहर खेत और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां मेरे दिल को बहुत आकर्षित करती हैं। रेलगाड़ी चलते-चलते कब मुझे झपकी आ गई; मुझे पता ही नहीं चला।

 अचानक नींद खुली तो देखा कि चाय और नाश्ता दिया जा रहा है। मैंने भी चाय के साथ बिस्कुट का आनंद लिया। उधर देखा तो शिखा का बेटा बड़ी सुंदर कलाकृति बना रहा था। ध्यान से देखा तो पता चला वह हिटलर का चित्र बना रहा है। मैं बहुत प्रभावित हुई। छोटा सा बच्चा और इतना सुंदर चित्र! वह बहुत ही सजीव चित्र लग रहा था। शिखा ने मुझे बताया कि यह पेंसिल से चित्र बनाने में बहुत रुचि लेता है और तरह-तरह के चित्र बनाता रहता है।

शिखा आकर मेरे पास बैठ गई और मुझसे बातें करने लगी। उसे पिछली बातें बहुत याद आ रही थी। उसने कहा, "आंटी आपके हाथ के परांठे तो मुझे भूलते नहीं है। मैं कभी आऊंगी आपके पास परांठे खाने के लिए।"

 उसने शिकायत भी की कि आपको कभी मेरी याद नहीं आई।  कभी आप मेरे घर भी नहीं आई हो। मैंने कहा, "जरूर आऊंगी ऋचा के साथ मैं सोनीपत अवश्य आऊंगी।"

 उसके पति भी बड़े सरल स्वभाव के लग रहे थे। थोड़ी देर में ही रेलगाड़ी में लंच दिया गया। बहुत अच्छा खाना था। आलू के परांठे मैंने दही के साथ खाए। मज़ा आ गया। यद्यपि घर जैसे परांठे तो नहीं थे; परंतु फिर भी बहुत स्वादिष्ट थे। धीरे-धीरे आखिरकार हमारी रेलगाड़ी अमृतसर पहुंच ही गई।

उत्कल को अमित ने पहले ही फोन कर दिया था। वह कह रह कह रहा था कि तुम सब होटल पहुंचो। मैं भी अपनी कार लेकर वहीं आ रहा हूं। हमारा होटल रेलवे स्टेशन के बिल्कुल पास था। हम थोड़ी देर में ही अपने होटल पहुंच गए। अपने कमरों में सामान आदि रखने के बाद हम फ्रेश हो गए।

तभी अमित अपनी पत्नी के साथ आता हुआ दिखाई दिया। कितने ही दिनों के बाद देखा था अमित को। बिल्कुल ही वैसा का वैसा लग रहा था जैसा मैंने उसे बेंगलुरु में देखा था। उसने आदरपूर्वक मेरे पैर छुए। वह बोला, "आंटी! आप कमजोर हो गई हो।" 

मैंने कहा, "बेटा! यह उम्र का तकाजा है। यह सब तो चलता ही रहेगा। अपनी पत्नी से तो परिचय करवाओ।"

 अपनी पत्नी को मिलवाते हुए उसने कहा, "मेरी वाइफ है डिंपी और यह मेरा बेटा है।"

 उन दोनों ने भी मेरे पैर छुए। प्यार की और गले भी मिले। उसकी पत्नी भी बहुत अच्छी लग रही थी। उसका बेटा आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था। शिखा, उसके पति, ऋचा और  उत्कल भी बहुत दिनों बाद अमित से मिले थे। अमित शिखा की बहुत खिंचाई किया करता था। यहां भी वह शुरू हो गया। शिखा भी उसकी बातों से चिढ़ती नहीं बल्कि मज़े लेती है।

 ऋचा ने हंसते हुए कहा, "तेरी पुरानी आदतें गई नहीं!"

अमित हंस पड़ा। फिर वह बोला, "तुम सब रेडी हो जाओ। मेरे घर चलना है।"

 लेकिन ऋचा ने कहा कि हमें तो बड़ी जोर की भूख लगी हुई है।

 "कोई बात नहीं।" अमित बोला, "मैं तुम्हें बहुत बढ़िया ढाबे में खाना खिलाऊंगा। चलो! मेरी और मेरी वाइफ की कार बाहर ही खड़ी है।"

वह हमें एक ढाबे में ले गया। मैंने ढाबे का नाम देखा, 'केसर दा ढाबा'। मुझे याद आ गया कि एक बार मैंने इस ढाबे का प्रोग्राम टेलीविजन में देखा था जिसमें विनोद दुआ ने वहां के खाने की बहुत तारीफ की थी। मैं अमित से कहा यह तो बड़ा मशहूर ढाबा है। अमित ने कहा, "हां आंटी! एक बार विनोद दुआ ने भी यहां खाना खाया था।" 

मैंने कहा, "हां! वही मुझे भी याद आ गया। उसका प्रोग्राम 'ज़ायका इंडिया का' जिसमें वह कहता था हम अपने लिए नहीं देश के लिए खाते हैं।"

  अमित बोला, "हां आंटी! इस ढाबे के बारे में मशहूर है कि इसकी वही दाल तब से चलती आ रही है जब से ढाबा शुरू हुआ था।"

 मैंने कहा, "मुझे भी वह प्रोग्राम याद आ गया।"

 अमित बोला, "चलो आंटी! आपको यहां की वही दाल खिलाते हैं।"

 हम अंदर गए, तो वहां बड़ी अच्छी व्यवस्था थी। यद्यपि वहां और बहुत से लोग थे लेकिन फिर भी हमारे लिए एक टेबल खाली मिल ही गई। हम सब मेज के चारों तरफ बैठ गए और अपनी पसंद मिलकर व्यंजन मंगवाने प्रारंभ किया। अब जब मेज पर खाना आया तो वह इतना स्वादिष्ट था कि रुक ही नहीं जा रहा था। सभी चटपट खाने के मजे लेने लगे। एक के बाद एक व्यंजन आते गए और सब हाथ साफ करते गए। 

सबसे आखिर में अमित ने कहा, "अब मीठे में क्या खाना है?"

 सब ने अपनी अपनी पसंद बताई। बच्चों को तो आइसक्रीम ही अच्छी लगती है। अमित ने कहा कि यहां की फिरनी भी बहुत मशहूर है। मुझे याद आ गया। मैंने कभी बचपन में फिरनी खाई थी। मैंने कहा, "भई मुझे तो फिरनी ही खिलाओ।"

 अमित ने फिरनी मंगवाई। छोटे से मिट्टी के सकोरे में फिरनी जमी हुई थी; जिसके ऊपर चांदी का वर्क भी लगा हुआ था। लकड़ी की चम्मच से जब पहले स्कूप मुंह में डाला तो वह मुंह में जाते ही पिघल गया। कितना स्वादिष्ट अनुभव था। बहुत ही स्वादिष्ट खिरनी थी। मैंने तो अमित से कहा कि मेरे लिए एक खिरनी का सकोरा और मंगवाओ।

 हम मन भर कर खा पी चुके तो अमित ने कहा चलो अब होटल के बाहर एक ग्रुप फोटोशूट हो जाए। "केसर दा ढाबा" पर हम सभी ने एक फोटो शूट करवाया। एक क्या; कई फोटो ली गई। आखिर, रोज-रोज मिलना तो मिलना होता नहीं! अब ये फोटो ही हमारी स्मृतियों में रहने वाली थीं।

 "अब सीधा मेरे घर ही चलना है। चाय वही जाकर ही पियेंगे।" अमित ने अनुग्रह किया। हम सब भी तैयार हो गए। क्योंकि सभी बच्चे अमित की मम्मी से भी मिलना चाहते थे और उसका घर भी देखना चाहते थे। अमित की मम्मी भी इन बच्चों के पास बेंगलुरु में आई थीं। उन्होंने भी बच्चों को बहुत स्वादिष्ट खाने बनाकर खिलाए थे। उनके साथ अमित की चाची भी बेंगलुरु में आई थीं।तो बच्चों का मन था कि उन सभी से मिलें।

 अमित के घर पहुंचने पर उसकी मम्मी और चाची ने हमारा बहुत स्वागत किया।  वह मुझे गले मिली। सभी बच्चों को उन्होंने बहुत प्यार किया वे हमें घर के अंदर ले गई अमित का घर बहुत सुंदर बना हुआ था। वह हमें ड्राइंग रूम में ले गए। बहुत शालीनता के साथ ड्राइंग रूम की साज सज्जा की गई थी। वहां सब आराम से बैठ गए और गपशप करने लगे। तभी अमित की पत्नी डिंपी सबके लिए चाय और नाश्ता ले आई।

 अमित की पत्नी भी बहुत हंसमुख है। वह एक विद्यालय में अध्यापिका है लेकिन उस दिन उसने हमारे लिए छुट्टी ली हुई थी। अमित के पिता की और चाचा की बैंक में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। पर अब वे रिटायर हो चुके थे। अमित के पिताजी बहुत अच्छा हारमोनियम बजाते थे। और गाते थे। शायद अमित उनसे ही गाना सीखा होगा। हमने अमित के पिता से अनुरोध किया कि वह हारमोनियम पर कुछ सुनाएं। अमित के पिता ने बहुत अच्छा एक भजन हारमोनियम पर सुनाया।

अमित को याद आया कि रुद्रांश भी तो हारमोनियम अच्छा बजाता है। उसने रुद्रांश को हारमोनियम पर कुछ बजाने के लिए कहा।  रुद्रांश ने हारमोनियम पर एक बहुत अच्छा भजन सुनाया। उसे सुनकर अमित सबसे ज्यादा खुश हुआ। उसने कहा, "भाई! मैं तो सिर्फ गाता ही हूं। तुम तो हारमोनियम बजाते भी हो। यह कितनी बढ़िया बात है।" 

 अमित का गाना सुनने के लिए तो हम सब बेचैन थे ही। अमित भी पूरी तरह तैयार था। उसने कराओके लगाकर मोहम्मद रफी का एक बहुत ही बढ़िया गाना हमें सुनाया। वाह! क्या समां बंध गया था! हम सब मंत्र मुग्ध होकर उसका गाना सुनते रहे। उसके बाद उसकी मां ने भी एक बहुत अच्छा गाना सुनाया। वे भी बहुत ही अच्छा गाती है।अमित की चाची ने भी एक सुंदर गीत सुनाया। यानि उनके यहां सबके सब गाने के शौकीन हैं। अमित के बेटा की अगले दिन परीक्षा थी। वह ऊपर पढ़ने के लिए चला गया था। लेकिन डिंपी उसे बुला लाई और उसने भी एक बहुत खूबसूरत गाना सुनाया। बहुत मजा आया। वहां पर तो गाने बजाने की महफिल ही लग गई थी। उसके बाद अमित ने सभी को अपना पूरा घर अंदर से दिखाया।

जलपान के  बाद अमित की मां ने पूछा, "आप आपका यहां पर क्या-क्या प्रोग्राम है? 

मैंने कहा, "एक तो मैं अमृतसर में अमित से मिलने आई थी। और दूसरा मुझे स्वर्ण मंदिर देखना है।" 

उन्होंने बताया कि स्वर्ण मंदिर  में अंदर दर्शन करने तो बहुत मुश्किल होते हैं।

 मैंने कहा, "कोई बात नहीं। बाहर की परिक्रमा ही कर लेंगे।" उन्होंने कहा, "यह ठीक रहेगा। तभी अमित का बेटा बोल उठा, "हमने तो अभी तक दर्शन नहीं किया जबकि हम तो यहीं रहते हैं। वहां दर्शन करने बहुत मुश्किल है।"

 मैं हंस पड़ी। मैंने कहा, "ठीक है। हम तो बाहर से ही परिक्रमा करके आ जाएंगे।"

 अमित ने बताया, "यहां पर शाम को बाघा बॉर्डर पर बहुत अच्छा प्रोग्राम होता है। वह तो आपको जरुर देखना चाहिए। बुकिंग में कुछ दिक्कत जरूर होती है; लेकिन वह मैं अरेंज करवा दूंगा।"

  हम वहां पर जलियांवाला बाग भी देखना चाहते थे। अमित ने की मां ने भी सहमति जताई। वे बोलीं,  "हां! यह सब दर्शनीय स्थल तो आपको देखने ही चाहिए। उसके बाद उन्होंने बड़े प्यार से सबको विदा किया। अमित की पत्नी डिंपी ने शिखा और ऋचा को बहुत सुंदर फुलकारी वाली चुन्नियां भी भेंट की। फुलकारी पंजाब की मशहूर कढ़ाई की एक शैली है। ऋचा तो डिंपी को अपना गिफ्ट पहले ही दे चुकी थी। 

हम होटल वापस आ गए। हमने प्रोग्राम बनाया कि हम सवेरे सवेरे ही स्वर्ण मंदिर के दर्शन के लिए चल देंगे। शायद हमें दर्शन हो जाएं।  शिखा इस बात के लिए तैयार नहीं थी। वह कह रही थी कि मैं सवेरे सवेरे नहीं उठ पाऊंगी। 

इसीलिए केवल हम चारों का हीं सवेरे जाने का प्रोग्राम बना। हम सवेरे 3:00 बजे ही उठ गए।  जल्दी  नहा धोकर स्वर्ण मंदिर की ओर गए।  वहां पहले ही बहुत लोग आ चुके थे। हम भी लाइन में लग गए। लाइन बहुत धीरे-धीरे आगे खिसक रही थी। हमें उम्मीद थी कि हम दर्शन कर पाएंगे। शायद 1 घंटे के बाद या 2 घंटे के बाद नंबर आ ही जाएगा। धीरे-धीरे हम भी खिसकते खिसकते आगे बढ़ने लगे। 

लेकिन मंदिर के पास आते-आते तक एक और साइडलाइन से लोग अंदर आने लगे। वे हमारी लाइन में नहीं थे। लेकिन अलग ही कोई रास्ता था। जिससे कि वह अंदर चलते जा रहे थे। हमारी लाइन तो आगे खिसकनी ही बंद हो गई ऐसा लगा कि हम तो शायद खड़े ही रहेंगे । लाइन बिल्कुल रुक सी गई थी। थोड़ी देर के बाद रुद्रांश के पेट में दर्द होने लगा। अब हम परेशान हो गए। हम बीच में से ही लाइन से निकलकर बाहर की तरफ आ गए और सरोवर के पास जाकर बैठ गए। हमें लगा कि अंदर जाकर दर्शन करना तो बहुत मुश्किल है। इसीलिए बाहर से ही हमने गुरुद्वारे के दर्शन किए।

 बहुत सुंदर गुरुद्वारा था और उसकी ऊपर का गुम्बद सोने से मढा हुआ था। वह सूरज की रोशनी में जगमगा रहा था। पास ही सरोवर था। हम थोड़ी देर वहीं बैठे रहे। फिर मैंने ऋचा से कहा कि यहां का प्रसाद तो लेना ही चाहिए। 

ऋचा ने कहा, "अभी उत्कल और रुद्रांश कडा प्रसाद ले आएंगे।

 वह दोनों प्रसाद लाने गए। लेकिन तभी एक महिला और उसकी बेटी हमारे पास आए। उन्होंने अपने हाथ से हमें गुरुद्वारे का प्रसाद दिया। उन्होंने कहा कि हमने प्रसाद ज्यादा ले लिया था। आप भी यह प्रसाद ले लो।

 मुझे बहुत खुशी हुई कि प्रसाद मुझे अपने आप ही मिल गया। हमने थोड़ा प्रसाद खाया और थोड़ा शिखा उसके पति और बच्चों के लिए रख दिया।

 हम जब होटल वापस आए तो ब्रेकफास्ट का समय हो चुका था। शिखा उसके पति और बच्चे वहां पहले ही बैठे हुए थे। होटल में बफे सिस्टम था। बहुत सा ब्रेकफास्ट का सामान रखा था। नॉर्थ इंडियन, साउथ इंडियन, पंजाबी छोले भटूरे आदि सब व्यंजन थे। हमने मन भर के ब्रेकफास्ट किया। उसके बाद मैं देखने गई कि कौन-कौन से पेय पदार्थ वहां उपलब्ध हैं।

वहां ठंडे पर पदार्थ बीते और गर्म भी। मुझे नाश्ते में ठंडे पेय पदार्थ ज्यादा पसंद नहीं हैं। मैं एक प्याला चाय लेकर वापस आ रही थी। इधर शिखा का छोटा बेटा गोल-गोल घूम रहा था। मेरी नजर सीधी अपने प्याले पर थी। मैंने उसे देखा ही नहीं और वह मुझे टकरा गया। यह तो अच्छा हुआ कि बच्चे पर चाय नहीं गिरी। चाय मेरी साड़ी पर गिरी। इसके बाद में अपने रूम में साड़ी बदलने के लिए चली गई। ऋचा ने चाय कमरे में ही भिजवा दी। उसके बाद हमने थोड़ा आराम किया।

 तभी अमित का फोन आया कि वह हमारे होटल पर आ रहा है। वह  एक और मशहूर ढाबे का खाना खिलाना चाहता था। हमने उसे मना भी किया।  हम होटल में खा लेंगे पर वह बहुत जोर दे रहा था। थोड़ी देर बाद उसकी पत्नी और अमित कार लेकर आ गए। 

अब वह जिस होटल में ले गया था वह भी बहुत शानदार होटल था। बहुत मजेदार खाना था। खाना खाने के बाद उसने कहा कि अब तुम लोग रेडी हो जाओ। हम वाघा बॉर्डर देखने जाएंगे। वह होटल में हमारे साथ आया। मैंने तो बाघा बॉर्डर जाने से मना कर दिया क्योंकि मुझे थोड़ी थकान महसूस हो रही थी। ये सभी वाघा बॉर्डर चले गए। मैंने कमरे में ही आराम किया।

 वाघा बॉर्डर का कार्यक्रम देखने के बाद जब सभी वापिस आए तो मेरा रात का सोने का टाइम हो गया था। मैं तो सो गई लेकिन इन सब ने एक कमरे में बैठकर पूरी महफिल जमाई। गाने गाए खाने खाए और मजे किए। अमित ने भी उन सबको एक बहुत सुंदर गीत सुनाया; चिट्ठीए चिट्ठीए चिट्ठीए.......। उस गाने को रिकॉर्ड भी गया किया गया। मैंने भीअगले दिन वह रिकॉर्ड गाना सुना। अमित की तो आवाज में ही जादू है। उसका गाना सुनते समय कोई भी स्वयं को भूल जाता है; और उसके गाने में ही खो सा जाता है। 

बच्चों ने भी रातभर महफिल का पूरा लुत्फ उठाया और मनपसंद खाने मंगवाए और खाए। उसके बाद ये लोग बड़ी देर से सोए। अगले दिन हमें जलियांवाला बाग देखने के लिए जाना था। अमित की पत्नी को छुट्टी नहीं मिली थी। उसे स्कूल जाना था। इसीलिए अमित और उसकी पत्नी अगले दिन नहीं आए। 

अगले दिन सुबह ही नाश्ते के बाद हम जलियांवाला बाग देखने के लिए निकल गए। जलियांवाला बाग देख कर मन सिहर उठता है। वहां अभी भी गोलियों के निशान हैं। उसे देखकर लगता है कि उस समय लोगों की कितनी दुर्दशा हुई होगी! किस प्रकार बेरहमी से उन्हें सभी दरवाजे बंद करके अंदर ही अंदर  गोलियों से भून दिया गया था। वहां एक बड़ा कुआं भी था। जिसके अंदर लोग बचने के लिए जा गिरे थे। हर देशवासी को जलियांवाला बाग तो देखना ही चाहिए। उसे देखकर पता चलता है कि हमारी आजादी के लिए आम लोगों ने भी कितनी मुश्किलें उठाईं। 

इसके बाद हम म्यूजियम देखने गए लेकिन म्यूजियम तो उस दिन बंद था। इसीलिए हम म्यूजियम नहीं देख पाए। वहीं बैठकर हमने आइसक्रीम का मजा लिया और इधर-उधर शॉपिंग करने के लिए चले गए। बाजार में हमने सामान तो कुछ ज्यादा नहीं खरीदा लेकिन इधर-उधर घूमते घूमाते शाम हो चली थी। इसलिए हम वापिस होटल में आ गए और वहीं हमने रात को डिनर किया। खाना बहुत स्वादिष्ट था। अमृतसर के छोले भटूरे बहुत मशहूर हैं।  मैंने तो मन भर कर छोले भटूर खाए। 

हमारी ट्रेन सुबह जल्दी ही दिल्ली के लिए रवाना होनी थी। इसीलिए हम रात को जल्दी ही सो गए। सवेरे उठकर होटल में ही ब्रेकफास्ट किया और जल्दी यह स्टेशन की ओर चल दिए। वहां पर हमारी शताब्दी एक्सप्रेस पहले से ही खड़ी हुई थी। हम ट्रेन में चढ़कर बैठ गए दस मिनट बाद रेल गाड़ी चलना शुरू हुई। धीरे-धीरे गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी। अब हम वापिस दिल्ली की ओर जा रहे थे। थकावट भी थी और रात की नींद भी पूरी नहीं हुई थी। बड़ी जोरों से झपकियां आ रही थीं। 

अभी एक छोटी सी झपकी ली ही थी कि ट्रेन में सवेरे का ब्रेकफास्ट आ गया। ब्रेकफास्ट खत्म हुआ तो शिखा का बड़ा बेटा मेरे पास आकर बैठ गया। उससे बातें करके मुझे बहुत अच्छा लगा। वह बडा ही समझदार और प्रतिभाशाली बच्चा है। थोड़ी देर बाद जब बह गया तो मुझे नींद आ गई और मैं सो गई। जब आंख खुली तो खिड़की से बाहर धान के खेत नजर आ रहे थे। धान पकने को तैयार थी। उसका रंग सुनहरी भूरा हो चला था।

रेलगाड़ी में दोपहर का लंच खाने के बाद मेरे पास शिखा आकर बैठ गई थी। दिल्ली पहुंचने का समय होने वाला था। गाड़ी धीरे-धीरे चलती जा रही थी। शिखा काफी अनुग्रह कर रही थी कि मैं उसके घर अवश्य ही आऊं। मैंने भी उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया। दिल्ली के स्टेशन पर उतरते ही शिखा की कार और ड्राइवर तो पहले ही तैयार खड़े थे। उसके ससुर ने सोनीपत से ही उनके लिए कर भिजवा दी थी। हमने भी बाहर निकल कर टैक्सी ली और घर आ गए। भूख नहीं थी; लेकिन थकान थी।चटपट चाय बनाकर पीयी गई। फिर हम ने बिस्तर में आराम किया।

अमित ने जो गाने गाए, उसकी हमने वीडियो रिकॉर्डिंग कर ली थी। बार-बार सुनने का मन कर रहा था। स्वर्ण मंदिर की छटा भी हमने फोन के कमरे में कैद कर ली थी। वास्तव में बहुत ही सुंदर और अद्भुत है स्वर्ण मंदिर; और उसका परिसर! अकस्मात् किसी ने आकर स्वर्ण मंदिर का जो प्रसाद हमें अमृत सरोवर के पास दिया था; वह वास्तव में अमृत तुल्य स्वादिष्ट था। अमृतसर का पूरा अनुभव मन को भा गया। हो भी क्यों न? आखिर मेरे लिए ये सभी अमृतसर की बहुमूल्य सौगातें हैं!