Friday, June 20, 2025

त्वचा और एलोवेरा

 त्वचा पर पिंपल्स, रिंकल्स, acne, खारिश या rashes हैं या त्वचा काली पड़ गई है। गर्दन,कोहनी, उंगलियां या हाथ काले हो जाने पर, इन सभी का एक ही उपचार है; एलोवेरा!

 एलोवेरा के गूदे को बादाम रोगन, तिल का तेल, नारियल का तेल; इनमें से किसी एक तेल में अच्छी तरह मिला लें। जब यह एक पेस्ट की तरह बन जाए तो इसे प्रभावित स्थान पर लगा लें।

चेहरे पर या बालों में अगर खुश्की या खुजली है या फिर रूसी हो गई है; तब भी एलोवेरा को तेल में अच्छी तरह मिलाकर बालों में लगाने से वह ठीक हो जाती है।

कायाकल्प तेल और एलोवेरा मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से खाज, खुजली, पाइल्स, फिशर, फिस्टुला आदि समस्याएं भी ठीक हो जाती हैं।

कैसी विडंबना?

 जेल में मुलाकात का वक्त हो गया था। जय सिंह अपने मित्र से मिलने वहां गए थे। उनके मित्र नरेश और उसकी पत्नी, दोनों ही जेल में थे।

 जब मिलने का समय हुआ तो जयसिंह उनके पास गए। उन्होंने कहा, "बहुत दुःख की बात है कि आपको यहां जेल आना पड़ा। परन्तु मैं तो हैरान हूं कि ऐसा क्या हो गया कि आप जेल के अंदर बंद हो गए?"

 नरेश की पत्नी रीमा की आंख में तो आंसू ही आ गए। वह कुछ बोल न पाई। लेकिन नरेश ने बताया कि यह सब उनकी गलती नहीं है। वे तो बिना किसी कसूर के ही जेल में बंद हो गए हैं।

 जय सिंह बोले, "आखिर ऐसा क्या हुआ? कुछ तो आपने किया ही होगा, जिसकी वजह से आप जेल में बंद हो गए हैं। मुझे तो जब पता चला तभी से मैं सोच रहा हूं कि आपसे मिलकर पूछूं कि आखिर बात क्या हुई?"

 नरेश बड़े दुखी मन से बोले, "आप तो बहुत सालों से हमसे मिल नहीं पाए। इसीलिए आपको कुछ पता ही नहीं है। दो साल पहले हमने अपने बेटे का विवाह निश्चित किया था। वह लड़की बड़ी सुंदर और सुशील थी। लेकिन मेरे बेटे ने किसी और लड़की को पसंद किया हुआ था। वह हमारी बिरादरी की भी नहीं थी; इसीलिए हम उसे अपने बेटे का विवाह नहीं करना चाहते थे। पर क्योंकि हमारा बेटा उससे ही शादी करना चाहता था, इसीलिए उसकी खुशी के लिए हमने उस लड़की से अपने बेटे की शादी कर दी।

 कुछ समय तो सब ठीक-ठाक रहा। लेकिन तीन-चार महीने के बाद ही वह लड़की हमारे बेटे से लड़ने लगी। हमारा बेटा भी गुस्से के स्वभाव वाला है। वह भी खूब गुस्सा करता। मेरे बेटे की और उसकी बहू की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। दोनों ही लड़ते रहते थे। हमने सोचा कि यह हमारे सामने लड़ते होंगे। हम यहां से चले जाएंगे तो शायद उनकी लड़ाई खत्म हो जाएगी।  इसीलिए हमने निश्चय किया कि उनको वह मकान देकर हम दूसरे मकान में शिफ्ट हो जाते हैं। 

हम दूसरे मकान में रहने के लिए चले गए। लेकिन उनकी लड़ाइयां खत्म न हुई। लड़की ने मेरे बेटे पर केस कर दिया। उसने मेरे बेटे पर तो केस किया ही साथ में हम दोनों को भी दहेज मांगने की आरोप में गिरफ्तार करवा दिया। 

अब मेरा बेटा अलग जेल में बंद है; क्योंकि उसके ऊपर तो उस लड़की ने हत्या की साजिश का आरोप भी लगा दिया है। लेकिन मेरे और मेरी पत्नी के ऊपर प्रताड़ना का आरोप लगाया गया है। उस लड़की का कहना है कि दहेज के लालच में हमने अपनी बहू को बहुत प्रताड़ित किया।" 

इसके बाद में नरेश कुछ देर चुप रहा। फिर उसने कहा, "क्या करूं,जय सिंह? मैं और मेरी पत्नी तो चाहते भी नहीं थे कि हमारा बेटा उस लड़की से शादी करे। यह सब भाग्य का खेल है कि बच्चे की मर्जी से शादी करवाने के बाद भी हमें यह परिणाम देखना पड़ा। अब तुम ही बताओ जय सिंह भैया, मेरा क्या कसूर है?"

 जेल में मिलने का समय समाप्त हो चुका था। जय सिंह जेल से वापस आते समय यही सोच रहा था कि नरेश बिल्कुल निर्दोष होते हुए भी भाग्य की कठपुतली बना हुआ है। यह तो हास्यास्पद हो गया कि जिस लड़की से वह अपने बेटे की शादी कराना भी नहीं चाहता था; उसकी वजह से वह स्वयं आज जेल में बंद है। यह कैसी विडंबना है?


Saturday, June 14, 2025

मॉक ड्रिल

  विद्यालय की असेंबली में घोषणा हो चुकी थी कि आज सायरन बजेगे और सभी को निर्देशानुसार मॉक ड्रिल का अभ्यास करना है। यह युद्ध के पहले का पूर्व अभ्यास था।

 सभी सभी विद्यार्थी पूरी तरह से तैयार थे। अचानक सायरन बज उठा। उस समय अध्यापिका कक्षा में पढ़ा रही थी। एकदम सभी विद्यार्थी कान में अंगुली लगाकर अपने अपने डेस्क के नीचे जा छिपे। एक अध्यापक इन बच्चों की फोटो खींच रहा था अंश बोला, "यार! जब युद्ध का सायरन बजेगा, तो क्या यह फोटो खींचेंगे?"

 दूसरा विद्यार्थी हंसने लगा। तभी अध्यापिका ने उन्हें डांट लगाई।  पार्थ ने कहा, "असली सायरन बजेगा तो क्या यह अध्यापिका इसी तरह कुर्सी पर बैठी रहेंगी?"

 वह धीरे-धीरे बोल रहा था और साथ बैठा रुद्रांश हंस रहा था।  वे दोनों कान में उंगली लगाए, चुपचाप एक दूसरे को देख कर हंस रहे थे। साथ में बैठा हुआ अंश तो इतना डर गया था कि उसने बस्ते के अंदर अपना मुंह छुपा कर ज़िप बंद कर ली थी।

 एक बच्चा दोनों डेस्कों की लाइनों के बीच में लेट गया था। पीटी टीचर ने उसे डांट लगाकर डेस्क के नीचे किया।  सभी बच्चे नीचे बैठे-बैठे बोर हो चुके थे; और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। रुद्रांश ने कहा, "यार पार्थ! बड़ी बोरियत हो रही है। तेरे पास कुछ है क्या?"

  पार्थ ने जेब से पॉपकॉर्न निकाले और वे दोनों चुपके-चुपके पॉपकॉर्न खाने लगे।  मॉक ड्रिल लंबी खिंच गई थी।  विराज  डेस्क के नीचे के नीचे झपकी ले रहा था। एक बच्चे ने अपने बैग में से सभी पुस्तक निकालकर इधर-उधर फेंक दी। उसने कहा कि हमला होने पर यह पुस्तक भी हमले में जल जाएगी और पढ़नी नहीं पड़ेगी। 

तभी मॉक ड्रिल समाप्ति की घंटी बज गई। अध्यापिका ने सभी बच्चों को कहा, "मॉक ड्रिल खत्म हो गई है। अब सभी बच्चे अपने-अपने डेस्क पर बैठ जाओ।"

 पार्थ और रुद्रांश गप्पे मारते हुए, पॉपकॉर्न खाने में इतने मग्न थे कि उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं दिया। वे बड़े मज़े में डेस्क के नीचे बैठे, पॉपकॉर्न खाए जा रहे थे।  टीचर ने दोनों बच्चों को कान पकड़कर बाहर निकाला और खूब डांट लगाई। यह देखकर कक्षा के सभी बच्चों को बड़ा मजा आया। 

Wednesday, June 11, 2025

पंक्चर वाली सिंहनी

 गिर में देवलिया सफारी पार्क है। यहां पर एक सिंहनी अचानक हमला करती है। किसी शिकार पर नहीं, बल्कि रबड़ के टायर पर!

 जी हां! इसने, इस अद्भुत कला में महारथ हासिल कर ली है। वह रबड़ के टायर में अपने पंजे का नाखून घुसा कर उसे फुस्स कर देती है।  

जैसे ही यहां पर कोई सफारी गाड़ी खड़ी दिखाई देती है तो वह उसके चारों तरफ पहले सूंघती है और फिर चुपचाप, उसके टायर को अपने पैने नाखून घुसा कर फ्लैट कर देती है। इसीलिए इस सिंहनी का नाम "पंक्चर वाली सिंहनी" पड़ गया है। 

जंगल के अधिकारी बताते हैं कि वह शायद टायर को सूंघकर अंदाज़ा लगाती है कि कहीं उस पर, शहर के कुत्तों या किसी अन्य पशु की गन्ध तो नहीं? टायर पर लगी ऐसी गन्ध को, वह किसी अन्य जानवर द्वारा अपने क्षेत्र की सीमा का उल्लंघन या अतिक्रमण मानती है। ऐसा पाने पर, वह उत्तेजित होकर, टायर को पंजों से नोच देती है। 

वह रोज ऐसा नहीं करती। परन्तु कभी-कभी खड़ी हुई सफारी गाड़ियों के टायर पंक्चर हो जाते हैं। जब भी कोई टायर पंक्चर हुआ मिलता है, तो सब समझ जाते हैं कि यह किसने किया है? उसी "पंक्चर वाली सिंहनी" ने!

 वही तो है असली खुराफाती शातिर!

Tuesday, June 10, 2025

बंदर और सांप

 कसौली जाते समय रास्ते में एक छोटी सी दुकान दिखाई पड़ी जिसमें एक दुकानदार सांप को लहरा रहा था; जिसने अपना फन खड़ा किया हुआ था। वह बिल्कुल जिंदा सांप लग रह लग रहा था। इस दुकान के पास जाकर हमने देखा कि वह सांप लकड़ी के छोटे-छोटे गोलाकार टुकड़ों से बनाया गया है। 

उसकी पूंछ, धड़ और सांप का फन, इतनी सुंदर ढंग से बनाए गए थे कि वह वास्तविक सांप लग रह लग रहा था। अतः हमने सोचा कि इस सांप को खरीद ही लिया जाए। दुकानदार को पैसे देकर हमने वह सांप पैक करने के लिए कहा। उसके पास डिब्बे वगैरह तो थे नहीं; इसीलिए उसने एक अखबार के बड़े से कागज में सांप को रखा और उसे लपेटकर हमें पकड़ा दिया।

 आगे चले तो पेड़ों के ऊपर बहुत सारे बंदर बैठे हुए थे। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांगे लगा रहे थे। 

अचानक एक बंदर हमारे पास आया और वह पैकेट झपटकर ले गया, जिसके अंदर सांप था। जब बंदर ने पैकेट छीना तो एकदम झटका महसूस हुआ। लगा कि क्या हो रहा है? पर दूसरे ही क्षण एक बंदर को पैकेट हाथ में लिए पेड़ पर बैठे हुए पाया।  यह सब अकस्मात् ही हो गया।

 वह पैकेट लेकर ऊपर पेड़ पर जाकर बैठ गया। उसने सोचा होगा कि शायद इसमें खाने का समान है। यह सोचकर उसने पैकेट को खोला। 

 जैसे ही उसने पैकेट खोला तो उसे एकदम सांप दिखाई दिया। वह इतना वास्तविक सांप लग रह लग रहा था कि वह बंदर एकदम घबरा गया और पैकेट फेंक कर और वहां से भाग खड़ा हुआ। 

सांप पेड़ के नीचे आकर गिर गया। यह सब देखकर हमें बड़ी हंसी आई; क्योंकि बंदर के चेहरे पर वास्तविक भय था। उसके हाव-भाव से लग लग रहा था कि वह कितना घबरा गया है! 

बंदर ने भी सांप को वास्तविक समझ लिया था, यह सोचकर हमें बड़ा मजा आया।

Monday, June 9, 2025

मनमोहना, बड़े झूठे!

 बेंगलुरु से वापस आते समय राजधानी एक्सप्रेस में एक युवक मेरे पास आया। उसने बड़ी विनम्रता से मुझसे पूछा कि सबसे ऊपर वाली बर्थ क्या आपकी है?

 मैंने कहा, "हां। वह मेरे लिए आरक्षित है।" उस युवक ने मुझे बताया कि सबसे नीचे की बर्थ उसके लिए आरक्षित है। क्या मैं उसकी बर्थ से अपनी बर्थ बदल सकती हूं? मैंने सहर्ष उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

मुझे इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी? मैं नीचे वाली बर्थ पर ही आराम से सो सकती थी। ऊपर चढ़ना दूभर हो जाता। उस युवक को ऊपर वाली बर्थ ही सोने के लिए ठीक लग रही थी।इसके बाद उसे युवक ने अपना समान ऊपर के बर्थ पर रखा और वह नीचे मेरे साथ सीट पर बैठ गया। 

वह केरल का रहने वाला युवक था। उसकी नौकरी दिल्ली के दिल्ली के कर्नाटका बैंक में लग गई थी। वह बहुत प्रसन्न था। उसने बताया कि नौकरी लगने से वह खुश तो है लेकिन दिल्ली में उसके पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं है। उसे होटल में ही रहना पड़ेगा। बाद में वह कोई रहने का स्थान ढूंढ लेगा।

 मुझे बातचीत करते हुए वह युवक बहुत अच्छा लगा वह बिल्कुल सीधा और प्रतिभाशाली युवक था। लेकिन उसे हिंदी नहीं आती थी वह या तो अंग्रेजी बोल सकता था और या मलयालम। तो मैंने उसे अंग्रेजी में ही बातें की। 

उसके पास दिल्ली में रहने के लिए कोई स्थान नहीं था। अतः मैंने सोचा क्यों न इस युवक को अपने घर का एक कमरा किराए पर दे दूं। कुछ टाइम मेरे पास रहकर यह फिर अपनी व्यवस्था स्वयं कर लेगा। ऐसा सोचकर मैंने उसे कहा कि तुम कुछ टाइम के लिए मेरे कमरे में रह सकते हो। वह बहुत खुश हुआ। उसने यह प्रस्ताव बहुत सरलता से स्वीकार कर लिया।

  दिल्ली पहुंचने के बाद एक सप्ताह बाद वह युवक मेरे पास आया और उसने कहा, "मैं आपके कमरे में रहना चाहता हूं। मैं कब से रहने आ जाऊं?" 

 मैंने उससे कहा कि तुम कभी भी आ सकते हो। वह अगले दिन ही अपना सामान लेकर मेरे पास रहने आ गया। वह सारा दिन बैंक में ही रहता था। बस रात को वहां सोता था।  कभी-कभी मेरे साथ टेलीविजन के प्रोग्राम्स देख लेता था।

 एक दिन टीवी में एक गायिका का विभिन्न रागों पर संगीत सुना रही थी।  उसने एक गाना सुनाया, "मनमोहना, बड़े झूठे!" वह युवक बड़े ध्यान से यह गाना सुन रहा था। मैंने पूछा, "क्या तुम जानते हो कि इसका अर्थ क्या है?"

 उसने कहा, "हां हां मुझे पता है।" वह इंग्लिश में ही बोल रहा था "आफ कोर्स आंटी! आई नो द मीनिंग ऑफ़ दिस सॉन्ग।"

 मैंने पूछा, "ठीक है। तो बताओ इसका क्या मीनिंग है?"

 उसने बड़ी सहजता से कहा, "इसका मतलब है कि हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत झूठे हैं। ही इस ए लायर!" 

मुझे बहुत हंसी आई। मैंने कहा, "इसका यह मतलब है?"

 उसे युवक ने कहा, "हां आंटी! इसका यही मतलब है। लेकिन आप हंस क्यों रही हैं?"

 तब मैंने उसे समझाया, "इसका मतलब है, मनमोहन अर्थात कृष्ण जी, बहुत झूठे हैं। इस गाने में गोपी कृष्ण जी को कह रही है कि कृष्ण जी बड़े झूठे हैं।  इसीलिए वह कह रही है; मनमोहना बड़े झूठे!"

 वह बड़ा हैरान हुआ। उसने कहा, "मनमोहन सिंह जी, हमारे प्रधानमंत्री को नहीं कह रहे?"

 मैंने कहा, "नहीं। कृष्ण जी को भी मनमोहन कहते हैं। यहां पर गोपी उन्हीं को संबोधित कर रही है" 

जब उसे पूरी बात समझ आ गई तो वह भी हंसने लगा और फिर उसने उस गाने का भी पूरा आनंद लिया।

Thursday, June 5, 2025

मुलेठी या खैनी?

 प्रदीप और ओमपाल को लगातार खांसी आ रही थी। बार-बार खांसी आने से वे दोनों परेशान हो रहे थे। आजकल कोरोना संक्रमण भी बहुत बढ़ गया है। इसीलिए मैंने सोचा कि उनकी खांसी किसी प्रकार रुक जाए तो अच्छा होगा।

वास्तव में घर में रंग रोगन का काम हो रहा था और यह दोनों कारीगर बर्जर कंपनी से आए हुए थे। यह दोनों बहुत सुंदरता से घर को पेंट करने में लगे हुए थे। बिल्कुल मौन रहकर सधे हुए हाथों से वे निरंतर कार्यरत थे। लेकिन उनकी खांसी उन्हें बहुत परेशान कर रही थी। 

 मेरे पास मुलेठी का पिसा हुआ पाउडर रखा था। उसमें थोड़े बहुत नन्हे नन्हे तिनके थे। और बाकी पाउडर के रूप में मुलेठी पिसी हुई रखी थी। मैंने थोड़ा सा पाउडर, करीब चुटकी भर, ओमपाल को दिया। मैंने उसे पाउडर को देते हुए कहा कि यह चूसने से तुम्हारी खांसी ठीक हो जाएगी।

 ओमपाल ने हाथ बढ़ाकर हथेली पर थोड़ा सा पाउडर ले लिया और दूसरे हाथ की उंगलियों से उसे टक टक करके सिर्फ तिनके के मुंह में रखे और बाकी पाउडर झाड़कर फेंक दिया। मुझे बहुत हंसी आई और मैं हैरान भी हुई। मैंने कहा, "यह क्या किया? असली दवाई तो इस पिसे हुए पाउडर में ही है।"

 प्रदीप को भी हंसी आ गई। उसने कहा, "यह खैनी खाता है। खैनी को हथेली पर रखता है। दूसरे हाथ से उसे दो-तीन बार ठक-ठक कर तिनके मुंह में रख लेता है और बाकी चूना झाड़ देता है। इसीलिए इसने मुलेठी के पाउडर को भी इसी तरह का समझ लिया। और सिर्फ तिनके मुंह में डाल लिए।"

 मुझे हंसी आ रही थी। मैंने कहा,  "प्रदीप! तुम्हें पता है यह मुलेठी क्या चीज है?"

 उसने कहा, "हां। मैं जानता हूं। मुझे पहले भी किसी ने यह दी थी और इससे मेरी खांसी रुक गई थी। मुझे पता है कि इसे पूरा चुटकी भर मुंह में ही डालना होता है। सिर्फ तिनके नहीं।"

 मैंने प्रदीप को भी चुटकी भर मुलेठी का चूरा दिया क्योंकि उसे भी तो खांसी आ रही थी। लेकिन ओमपाल ने मुलेठी के चूरे के साथ जो किया वह देखकर तो हंसी रुक ही नहीं रही थी। अब तो ओमपाल भी सब कुछ समझता हुआ मुस्कुरा रहा था।