Friday, September 13, 2024

मज़े करो!

 अरे भई! यही एक जीवन मिला है, मनुष्य का! कल हम रहे, ना रहे; क्या भरोसा? जितनी जल्दी हो सके, पूरा मजा ले लो जिंदगी का!

 ऐसा बहुत से लोगों का दृष्टिकोण होता है। मुझे कई बार यह सुनने को मिलता है। तब यह समझने में कठिनाई होती है, कि मज़ा क्या है? क्या मज़ा विश्राम को या फिर इधर-उधर घूमने को या फिर उद्देश्यहीन कार्य करने को कहते हैं? शायद ये तो, बिल्कुल भी अर्थ नहीं हो सकते मज़े के। तो क्या मज़े का अर्थ आनंद के संदर्भ में लिया जाए? मेरा मानना यह है कि मज़े शब्द का पर्याय आनंद अवश्य हो सकता है। लेकिन आनंद कब मिल सकता है?

 कदाचित् आनंद की उपलब्धि तभी हो सकती है; जबकि हम अपने आप से पूरी तरह संतुष्ट हो। और, अपने आप से पूरी संतुष्टि तभी प्राप्त हो सकेगी; जबकि हमने अपने सभी कर्तव्य ईमानदारी से निभाए हों। हमें तनिक भी संदेह न हो, कि हमने अपनी क्षमता के अनुसार अपने कर्तव्य निभाने में कोई भी कोर-कसर बाकी छोडी।

 मुझे लगता है, कि कुछ हमारे कुछ कार्य प्रकृति हमें करने के लिए प्रेरित करती है, और बाकी कार्य परिस्थितियों के वशीभूत होकर हमें करने होते हैं। हम ऐसा सोचते हैं, कि हम अपनी पसंद के अनुसार कार्य कर सकते हैं। लेकिन हमारी कर्तव्य निष्ठा में हमारी पसंद का प्रतिशत बहुत ही नगण्य है। आप कह सकते हैं कि अपनी विद्या और व्यवसाय चुनने के लिए आप स्वतंत्र हैं। शायद यह भी अर्ध सत्य ही है। हमारी बुद्धि ,शारीरिक क्षमता और आपके आसपास की परिस्थितियों की, इस विषय में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

 फिर आपने अपने अनुसार कुछ चुनाव कर भी लिए; तब भी आप कितनी सार्थकता और स्वतंत्रता से, उसे विकसित कर पाएंगे; यह भी प्रकृति और आपकी परिस्थितियों ही निर्धारित कर पाएंगे। चाहे जो भी हो; प्रकृति द्वारा और परिस्थितियों द्वारा दिए गए कार्य को अपनी क्षमता और दक्षता अनुसार करने में हम पूरी तरह स्वतंत्र है। हम इस बात के लिए भी पूरी तरह स्वतंत्र है; कि उस कर्तव्य को हम अपने मन में प्रसन्न होते हुए, निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं। 

एकनिष्ठ होकर, यदि हम प्रसन्नतापूर्वक अपने कार्य को करते हुए, अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करते हैं; तो सम्भवतः, उस कार्य को करने में हमें पूरी संतुष्टि मिलती है। जब हम पूरी तरह संतुष्ट होते हैं, तभी हमें आनंद की अनुभूति भी अवश्य होती है। वास्तविक आनंद तो, पूरे समर्पण से, अपने लिए निर्धारित कार्य करने में ही है। मन में संतोष होना ही वास्तविक मज़े हैं। पूरी मेहनत के बाद जो भौतिक उपलब्धियां मिलती है, वे तो खुशी प्रदान करती ही है; लेकिन जो मानसिक और आत्मिक उपलब्धियां प्राप्त होती है वही वास्तविक आनंद है; और मज़े भी!

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