टिंकू को बुखार था। वह कुछ भी खा पी नहीं रहा था। बुखार भी उतरने का नाम नहीं ले रहा था।
राधा के तीन बच्चों में से, टिंकू बीच वाला बेटा था। सबसे छोटा बेटा रिंकू, खिलौनों से खेल रहा था और सबसे बड़ा बेटा बंटी, होम वर्क कर रहा था।
दादी बाहर से आई, तो उसके हाथ में सेब से भरा थैला था। दादी को टिंकू के बुखार की बहुत चिंता थी। उसने राधा से टिंकू के बुखार के बारे में पूछा। राधा ने बताया कि टिंकू कुछ खा पी नहीं रहा है। दादी ने राधा को सेब देते हुए कहा, "इसे यह सेब काटकर खिला दे। इसे अच्छा लगेगा। मुंह का स्वाद कड़वा हो रहा होगा; जायका बदल जाएगा।"
राधा ने प्लेट मे सेब रखा और छीलना शुरू किया। रिंकू ने जब यह देखा, तो झटपट खिलौने छोड़कर, मां के पास आकर खड़ा हो गया। राधा प्लेट में छिले हुए सेब काट कर, फांकें रख रही थी। साथ-साथ टिंकू को भी खिला रही थी। टिंकू की तबीयत ठीक नहीं थी। वह धीरे-धीरे सेब खा रहा था। लेकिन रिंकू जल्दी-जल्दी प्लेट से उठाकर, सेब की फांकें, गपा-गप कर रहा था। यह सब देखकर, बंटी भी, वहीं आकर खड़ा हो गया। वह देखता रहा। जब सब खत्म हो गया, तो वह फिर से होमवर्क करने लगा।
रात को, बंटी दादी के साथ बिस्तर पर लेटा, तो दादी बोली, "देख बंटी! तेरी मम्मी ने, रिंकू को सेब खाने के लिए, बिल्कुल भी मना नहीं किया। बेचारा टिंकू तो सेब की एक दो फांक ही खा पाया। बता मुझे, कि तेरी मम्मी को, रिंकू को, डांट लगानी चाहिए थी कि नहीं?"
"पता नहीं दादी।" बंटी उदासीन भाव से बोला, "मुझे तो मम्मी ने सेब की, एक भी फांक नहीं दी।"
No comments:
Post a Comment