Saturday, July 6, 2024

मूक अभिव्यक्ति

 सांस जब थिरकती हैं 

 अपने सुर ताल में

 दर्शन तब होता है 

मन दर्पण संजोता है 

अपने ही बिम्ब को

 अपने ही भाल में।


 मायावी कारीगर

 तंतु तंतु बुनता है 

रूप रंग चुनता है

 कंपन भर देता है

 सृष्टि विशाल में।


 कितना हितकारी है

 किसके सिर भारी है

कौन कभी उलझा नहीं 

पल-पल के रचित घटित

 मायावी जाल में।


 कुंठा जब दूर हुई

सरलता का साथ मिला

 पाया तब विश्व विदित 

व्यापक उस नायक को

 निज मन विशाल में।

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