Friday, June 14, 2024

मोह की परतंत्रता!

 किशन चंद अपने पुत्र माधव से अथाह प्रेम करता था।  वह उसके मोह में लगभग अंधा ही था। माधव शहर में पढ़ने के लिए गया; तब भी वह यही चाहता था कि माधव गांव में खेती-बाड़ी करे। कुछ कारोबार कर ले, पर शहर में न जाए। परंतु माधव तो शहर की चकाचौंध से बहुत आकर्षित था।

 उसने शहर में रहकर पढ़ाई की। फिर उसकी नौकरी भी शहर में लग गई। उसका विवाह भी हो गया था। उसकी पत्नी रजनी भी एक कंपनी में नौकरी करती थी। रजनी कुछ अजीब प्रकृति की लड़की थी। उसे ऐशो आराम पसंद था। काम को वह हाथ भी नहीं लगाना चाहती थी। सज-धज कर ऑफिस जाती;  और वापस आने पर आराम फरमाती। घर के कामों को कौन करें; इस विषय पर दोनों में नोंक झोंक होती रहती थी। 

माधव के दो बच्चे भी हुए। तब माधव की मां कुंती ने घर को पूरी तरह संभाला। घर को संभालना रजनी को इतना पसंद आया कि वह सोचने लगी कि इन्हें अपने साथ ही रख लेते हैं। उसने अपने मन की बात माधव को कही। उसने माधव से आग्रह किया कि वह अपनी मां को शहर में अपने साथ रख ले। 

माधव अपनी मां के पीछे पड़ गया कि वह उनके साथ शहर में ही रह जाए। माधव की मां कुंती बहुत सीधी और परिश्रमी महिला थी।  लेकिन उन्हें अपना गांव ही पसंद था। शहर में वह परेशान हो जाती थी। फिर गांव में अपने पति की देखभाल अपने घर की जिम्मेदारी सब उसी के ऊपर थी। कुंती ने यह भी समझ लिया था कि उसकी बहू रजनी कामचोर है। वह उसको अपनी नौकरानी के रूप में देख रही है। इस बात को समझते हुए उसने माधव के पास जाने से इनकार कर दिया था।

 इस बात से माधव और उसकी पत्नी बहुत नाराज हो गए। माधव ने अपने माता-पिता से बातचीत कम कर दी। वह हर बात में गुस्सा और नाराजगी दिखाता। वह अधिक बोलता नहीं था बस माता-पिता को ऐंठ  दिखाता था। अब माता-पिता भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे। वह बेटे की बदतमीजी को नजर अंदाज कर देते। वे सोचते कि शहर में कितनी परेशानी से वह रह रहा होगा; इसलिए झल्लाता है। कोई बात नहीं। वह ठीक-ठाक रहे; इतना बहुत है। वे भी माधव से ज्यादा बात नहीं करते थे। और गांव में खुशी-खुशी जी रहे थे। लेकिन मन में माधव के लिए मोह बहुत होने के कारण, कभी-कभी खिन्न हो जाते थे। 

किशन चंद, माधव को कई बार गांव बुला चुका था; पर वह टाल-मटोल कर देता था। एक बार ऐसा हुआ कि माधव की पत्नी रजनी, के किसी रिश्तेदार के यहां विवाह के अवसर पर, रजनी को बुलाया गया। रजनी का गांव भी माधव के गांव के पास ही था। तब माधव ने सोचा कि कुछ छुट्टियां लेकर पहले विवाह में चले जाएंगे। और फिर दो-चार दिन अपने पिता के पास भी ठहरकर वापस आ जाएंगे।

 किशनचंद का तो खुशी का ठिकाना न था। उसने सोचा कि माधव पहले यहां आएगा फिर ससुराल के यहां विवाह में जाएगा। विवाह के बाद माधव फिर कुछ दिन यही रखेगा। बहुत आनंद रहेगा। किशन चंद की पत्नी भी बहुत प्रसन्न थी। 

विवाह के पहले दिन माधव गांव पहुंचा। लेकिन अपने गांव नहीं पत्नी के गांव पहुंचा और वहीं रुक गया। उसने माता-पिता को बता दिया कि वह रजनी के गांव विवाह में आ गया है; और वहीं ठहरा हुआ है। किशन चंद और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए। वे दोनों उससे मिलने उसकी ससुराल ही चल दिए। लेकिन वहां पहुंचकर बहुत वे हैरान हुए; क्योंकि माधव और उसकी पत्नी रजनी ने उनसे कोई खास बातचीत नहीं की। बल्कि वे दोनों तो उनके  वहां से आने से परेशान लग रहे थे। खैर, वे दोनों अपने गांव वापस आ गए।

5-6 दिन बाद माधव, रजनी और बच्चे किशन चंद के घर आए। उन्हें बहुत अच्छा लगा। लेकिन माधव परेशान था। उसका एक बच्चा बीमार था। माधव की मां भी बच्चों के लिए चिंतित थी। वह माधव के लिए बढ़िया खाना बना चुकी थी। लेकिन बच्चे के लिए उसने खिचड़ी भी बनाई। बच्चा खिचड़ी खा नहीं रहा था। रजनी भी उसे खिलाने की कोई कोशिश नहीं कर रही थी। उसने एक कमरे में सारा सामान बेतरतीब, फैलाकर कर रख दिया था और वहां कमरे को बंद करके आराम कर रही थी। माधव भी कमरे में चला गया।

 बच्चे कुछ खा नहीं रहे थे। थोड़ी देर में बाहर आकर माधव और रजनी ने तो खाना खा लिया; पर बच्चों को कुछ भी नहीं खिलाया। किशन चंद और उसकी पत्नी ने जब उन्हें खाना खिलाने के लिए कहा, तब माधव बेरुखी से बोला कि उन्हें शहर का ही खाना पसंद है। वह आपके घर का खाना नहीं खाएंगे।

 किशन चंद और उसकी पत्नी बहुत हैरान हुए माधव चार दिन तक अपने माता-पिता के घर रहा लेकिन उसने अपने माता-पिता से कोई बात न की। वह स्मार्टफोन पर ही व्यस्त रहता था बात-बाद में गुस्सा करता था। वह अधिकतर कमरे में रजनी के साथ ही बंद रहता। वे पति पत्नी अपने बच्चों को नहलाते तक नहीं थे। और न ही उनकी देखरेख कर रहे थे। सब कुछ अजीब सा हो रहा था।

 वापस जाने के एक दिन पहले माधव के बड़े बच्चे को जोर से उल्टियां आई और उसे तेज बुखार भी हो गया। किशन चंद और उसकी पत्नी घबरा गए। उनके घर बुखार की दवाई रखी थी। लेकिन माधव और उसकी और रजनी बच्चों को दवाई न देना चाहते थे। वे डॉक्टर के पास भी ले जाने को तैयार नहीं थे। वे  कह रहे थे, कि बच्चा बिना दवा के ही ठीक हो जाएगा।

 किशन चंद और उसकी पत्नी बहुत हैरान हुए यह देखकर कि बुखार में भी, माधव और उसकी पत्नी, बच्चों की कोई देखभाल नहीं कर रहे हैं; बल्कि अपने कमरे में बंद है। किशन चंद की पत्नी बच्चों के लिए, पानी फलों का जूस और न जाने क्या-क्या खिलाने-पिलाने का प्रयत्न कर रही थी। परंतु बच्चा कुछ लेने को तैयार ही नहीं था। 

किशन चंद को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब  क्या हो रहा है। कहीं बच्चे को कुछ हो गया तो? यह सोचकर वह और उसकी पत्नी बहुत घबरा रहे थे। माधव को तो शहर वापस जाना ही था। वह उसी अवस्था में बच्चों को लेकर वापस शहर चला गया। ऐसा लगता था कि उसे न तो माता-पिता की कोई चिंता है; और न ही बच्चों की।  ऐसा भी हो सकता है कि वह अपनी मां कुंती के, शहर में न आने का, विरोध कर रहा हो। और झल्लाहट दिखा रहा हो। लेकिन किशन चंद और कुंती को यह सब नहीं समझ आया।

 माधव ने शहर पहुंचकर पिता को बताया कि बच्चे ठीक है। बच्चे का बुखार ठीक हो गया है। बच्चों को गांव में रहना पसंद नहीं है। और वह भी गांव नहीं आना चाहता। 

किशन चंद सोच रहा था कि माधव कितना बदल चुका है। इतने वर्षों में उसमें बहुत बदलाव आ गया है। वह पहले वाला माधव नहीं है; जिससे कि उसको इतना मोह था।

 उसकी आंखों में पिछले चार दिन चलचित्र की तरह घूमने लगे माधव का गुस्सा, बच्चों के प्रति लापरवाही और उसकी पत्नी का व्यवहार। और फिर बच्चों का बीमार पडना, उनका भूखा रहना। एक दिन एक-एक बात उसके दिल पर आघात कर रही थी। ठंडे दिमाग से उसने स्थिति को समझने की कोशिश की। वह समझ गया कि भविष्य में भी, बच्चे गांव में जाकर, बीमार तो पड़ेंगे ही। और उनकी देखभाल भी कोई नहीं करेगा। फिर  से यदि किसी बच्चे को,  यहां आकर फिर बुखार हो गया, तो कुछ भी हो सकता है; यह सोचकर वह सिहर गया।  

फिर उसने सोचा कि, माधव को, अब शहर में रहने की आदत पड़ चुकी है। पहले वह पहले वाला माधव नहीं रह गया है। उसका व्यक्तित्व बदल चुका है। माता-पिता के साथ सामंजस्य करने में उसे बड़ी कठिनाई हो रही है। फिर माधव की अपनी व्यक्तिगत समस्याएं भी हैं; जो कि शायद वह उससे साझा भी नहीं करना चाहता।

 वह गांव में आकर खुश न रह पाएगा। वह बहुत परेशान हो जाएगा। उसकी पत्नी और बच्चे भी परेशान होंगे। वह शहर में ही रहे, इसी में माधव की और उसकी अपनी भलाई है। 

उसने एक निर्णय लिया। किशन चंद ने पास रखा मोबाइल फोन उठाया, बेटे का नंबर मिलाया और कहा, "बेटा माधव! तुम जहां भी रहो, खुश रहो। अब मैं तुम्हें गांव में आने के लिए कभी नहीं कहूंगा। तुम शहर में रहने के आदी हो चुके हो अब तुम गांव में आते हो तो तुम्हें भी परेशानी होती है और तुम्हारे परिवार को भी परेशानी होती है। मैं नहीं चाहता कि तुम या तुम्हारा परिवार किसी भी तरह से दुखी हो। तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है। इसीलिए अब तुम शहर में ही रहो। गांव में मत आना। जब तुम्हारे बच्चे बड़े हो जाए ,और अगर मैं जिंदा रहूं; तभी गांव आना। तब तक गांव में, मेरे घर मत आना।" यह कहकर किशनचंद ने मोबाइल फोन बंद कर दिया। 

उसे समझ आ चुका था, कि उसका बेटे के अंदर बहुत मोह है। लेकिन बेटे का व्यक्तित्व बदल चुका है। वह अपने दायित्व निभाने में, बहुत अधिक व्यस्त हो चुका है। अब उसे गांव आने में कोई रुचि नहीं है; बल्कि उसे परेशानी ही महसूस होती है। बेटे के लिए ज्यादा मोह में पडना, उसके अपने लिए भी हितकारी नहीं है। 

वास्तव में अधिक मोह भी परतंत्रता का ही एक रूप है। अधिक मोह में पडना, अपनी स्वतंत्रता को खो देने के समान है। मनुष्य ही इसी मोह की, परतंत्रता को ओढ़े रहता है। जबकि आम जीव जगत में, एक समय के बाद कोई भी प्राणी मोह नहीं रखता। 

इसीलिए अब उसे अपना मोह भंग करना होगा। और अपने को अपने लिए हितकारी कार्यों में लगाना होगा। उसे अपने स्वास्थ्य  के ऊपर भी अधिक ध्यान देना होगा। बेटा, अपनी चिंता कर रहा है। वह बड़ा हो चुका है। वह कोई छोटा अबोध बालक नहीं है; जिसके मोह में पडा जाए। 

अब वह स्वयं बूढ़ा हो चुका है। इसीलिए बेटे की चिंता को छोड़, उसे अपनी स्वयं की भी चिंता करनी चाहिए। इस प्रकार से वह स्वयं भी अधिक सुखी रह सकेगा। 

उसे लगा कि वह अपनी सुध बुध बिसार बैठा था। अब उसे अपनी सुध वापिस आई है। वह स्वयं ही झूठे मोह में फंस गया था। मोह की परतंत्रता को उतार फेंकने के बाद, वह अब वह स्वयं को बंधन मुक्त अनुभव कर, खुलकर सांस ले रहा था। लगता था; जैसे सिर पर से, कोई भारी बोझ उतर गया।

No comments:

Post a Comment