जीवन में कुछ अलग और अपने ही बल बूते पर करने का, मुझे हमेशा से ही चाव रहा है । फिर चाहे उस कार्य में सामाजिक मान्यताएँ , परम्पराएँ और औपचारिकताएं भी ताक पर रखनी पडें, तो मैं अक्सर परवाह नहीं करती । बस जो ठान लिया वह करके ही रहती हूँ । यद्यपि कई बार अच्छे परिणाम भी हाथ नहीं लगते , परन्तु मन की संतुष्टि अवश्य होती है ।
जैसे ही पता चला कि भाई का रिश्ता पक्का हो गया है ; मेरी प्रसन्नता का पारावार न रहा । बात यह थी की भाई तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थे । बाउजी के आग्रह पर वे भाभी को पसन्द करने के लिए उनके साथ भी चले गए ; लेकिन उनका कहना था कि वे केवल बाउजी की बात रखने के लिए ही वहाँ जा रहे हैं और अधिक संभावना इस बात की थी कि वे इनकार ही करेंगे । इसीलिए हममे से और कोई तो वहाँ गया ही नहीं ! जब भाई वापिस घर आए और हमसे विचार विमर्श किया तो इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनकार करना तो ठीक नहीं रहेगा । इनकार करने का कोई कारण भी नहीं था । भाभी ग्रेजुएट थीं और सुन्दर भी । वास्तव में तो भाभी के चमचमाते सुन्दर दांतों वाली मुस्कुराहट ने भाई का मन मोह लिया था ! कारण जो भी हो; पर बात पक्की हो गई ।
उस समय तो मैं भाभी को देखने नहीं गई ; परन्तु अब तो बड़ी उत्सुकता थी कि भाभी कैसी दिखती है । उनकी सुन्दरता के विषय में पता तो चल गया पर रूप को निहारने का अवसर तो मिला ही नहीं ! अब यह तो कहा जा नहीं सकता था कि जल्दी ही भाभी से मिलवा दो । औपचारिकताएं कितनी होती ! भाभी के परिवार वालों पर कितना भार पड़ता ! वे कितने परेशान होते ! शायद भाभी को भी अटपटा लगता ; बार बार सकुचा कर ससुराल वालों के सामने बैठना !
भाभी को देखने की मन में बहुत ही तीव्र इच्छा थी । आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है । Social anthropology की पढ़ाई करते समय कुछ प्रोजेक्ट work होते थे । उसमे survey करने होते थे । वैयक्तिक तौर पर पूरी जानकारी के लिए हमे स्वयं व्यक्तियों से मिलकर जानकारियाँ प्राप्त करनी होती थी । इसी को ध्यान में रखकर मैंने भाभी से मिलने की एक युक्ति सोची और उसे कार्यान्वित करने का पक्का इरादा बना लिया । किसी को बता तो सकती नही थी । इस कार्य को तो सभी मना ही करते ; यहाँ तक कि भाई भी !
मैंने सोचा , मिलने के बाद भाई को बताउंगी तो भाई हैरान भी हो जाएँगे और रोमांच से भरपूर किस्सा सुनकर खुश भी होंगे । शादी होने के बाद जब वे भाभी को बतायेंगे तो खूब मज़ा आएगा । उनके परिवार वाले भी अचरज में पड़ जाएँगे कि ये कैसी ननद है जो चुपके से भाभी से मिल गई और किसी को पता भी नहीं चला !
भाभी के घर का पता तो मालूम पड़ ही गया था । Survey के लिए पूरा खाका एक रजिस्टर पर तैयार करके मैंने एक बैग में डाला और जाने के लिए बस पकड ली । जिस बस स्टाप पर मुझे उतरना चाहिए था , उससे पहले वाले स्टाप पर मैं उतर गई । कारण ये था कि मुझे पूरी तरह तो पता ही नहीं था कि कहाँ पर उतरना है ; और चुपके चुपके यह काम करना था , तो घर में पूछती भी किससे ? खैर ! जैसे तैसे वहाँ पर लोगों की सहायता लेते हुए मैं दरवाजे तक जा ही पहुँची ।
मुख्य द्वार खुला था और आँगन में एक कम उम्र की महिला अपनी दो छोटी बच्चियों के साथ चारपाई पर बैठी कुछ काम कर रही थी । पहले तो कुछ क्षण मैं चुपचाप खडी रही । मैंने सोचा ये शायद भाभी की भाभी हैं । अगर मैं अपनी भाभी का नाम लेकर इनसे कुछ पूछूँ , तो पता नहीं क्या प्रतिक्रिया होगी ? कहीं ये मुझ पर शक करें और भाभी को न बुलाएँ ? फिर तो आना ही व्यर्थ हो जाएगा । कहीं कुछ गडबड न हो जाए । कुछ गलत हो गया तो बाउजी बहुत गुस्सा करेंगे । मुझे लगा की मैं व्यर्थ में ही यहाँ आ गई ; चुपचाप वापिस चले जाना चाहिए । तभी कान में आवाज़ आई ," हाँ ! किससे मिलना है ? "
मैं भी जल्दी से बोल गई ,"कृष्णा से ।"
"आओ बैठो । अभी बुलाती हूँ ।"
मैं अंदर आँगन में बिछी चारपाई पर बैठ गई । मुझे यह कल्पना ही नहीं थी कि इतने सरल तरीके से एक आगन्तुक को कोई अपने आँगन में बिठा सकता है । मैंने सोचा कि इनकी भाभी बहुत सरल और सीधी है । नहीं तो मुझसे तरह तरह के प्रश्न पूछती । उसके बाद शायद घर के अन्दर आने देती ।
उन्होंने नीचे से ही आवाज़ लगाई ,"गुड्डी को नीचे भेज दो ।"
ऊपर से किसी स्त्री ने मुझे देखा और पूछा ," हाँ ! क्या काम है ? "
मैंने कहा ," मैं सर्वे के लिए आई हूँ । कृष्णा का सर्वे करना है । प्लीज़ उन्हें भेज दीजिए ।"
मैं कुछ देर तो सांस रोके बैठी रही । सोचा ,"पता नहीं क्या होगा ? अब जो हो देखा जाएगा । जब ऊखल में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना !"
थोड़ी देर में सलवार कमीज़ पहने एक सौम्य व्यक्तित्व सीढियों से नीचे उतरता हुआ दृष्टिगोचर हुआ । मैं पल भर के लिए तो मूर्तिवत हो गई । सोचा ही न था कि इतनी सरलता से दर्शन हो जाएँगे । तभी भाभी की आवाज़ सुनाई दी ," हाँ ! क्या पूछना है ?"
एकदम मेरी तन्द्रा टूटी ," आपके educational और दूसरे details का सर्वे है । आप प्लीज बैठ कर बता दीजिए ।"
भाभी ने सभी प्रश्नों का उत्तर दिया और मैं लिखती गई । कनखियों से भाभी को बार बार देखती भी जाती थी । मन कह रहा था , " भाभी हैं तो बहुत सुन्दर ; और सरल भी हैं । भाई का चुनाव तो वाकई काबिले तारीफ़ है ।"
उन्होंने पूछा ,"और क्या प्रश्न है ?"
मैंने कहा ," और कुछ नहीं पूछना । अब आप नीचे साइन कर दीजिए ।"
भाभी ने मेरे हाथ से पैन लिया और अपने हस्ताक्षर कर दिए । अब तो मैं और भी खुश हो गई । मैंने सोचा ," इस हस्ताक्षर को संभाल कर रखूँगी । यह तो अमूल्य पूंजी है ।"
मैंने खड़े होते हुए कहा ," अब मैं चलती हूँ ।" भाभी ने गर्दन हिलाकर सहमति भी दे दी ; परन्तु मन तो वहां कुछ देर और रुकने का कर रहा था । भाभी की ओर मुस्कुराकर देखते हुए मैं धीरे धीरे दरवाजे की तरफ आई और भाभी ऊपर वापिस चली गई ।
मैं जल्दी से बस स्टाप पर आई । घर वापिस आने की बस पकड़ी । भाई अभी आफिस से घर वापिस आए नहीं थे । मैं बड़ी बेसब्री से घड़ी देखते हुए भाई का इन्तजार कर रही थी । ऐसा लग रहा था कि घड़ी रूक गई है । छह बजने के बाद जब भाई घर आए तो मैंने माँ और बाउजी से छिपकर सारी बात भाई को बताई और भाभी के साइन भी दिखाए । मैंने कहा ," भाई ! शादी के बाद जब भाभी को यह सब बताएँगे तो कितना मज़ा आएगा !" मैंने सोचा था कि भाई बहुत खुश और रोमांचित होंगे और यह टॉप secret शादी तक नहीं खुल पाएगा । परन्तु भाई तो कुछ चिंतित दिखाई दिए । वे बोले ," नहीं ; ऐसे तो अच्छा नहीं लगता । शादी से पहले ही बता देना चाहिए ।"
मेरा तो चेहरा उतर गया । मुझे तो अपना सारा adventure व्यर्थ होता नजर आ रहा था । लेकिन मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी । उनका निर्णय स्वीकार्य न होने का तो प्रश्न ही नहीं था । दो तीन दिन बाद जब उन्होंने अपने ससुराल वालों को यह सब बताया तो वे सब हैरान हो गए । विवाह के दिन तो सब मुझसे मजाक भी कर रहे थे ; " आज भी कोई सर्वे है क्या ?"
एक राज़ की बात बताऊँ ; पहली मुलाकात के भाभी के वो साइन, मैंने अपने विवाह तक बहुत संभाल कर रखे थे । मुझे वो अपनी अमूल्य निधि लगते थे ।
जैसे ही पता चला कि भाई का रिश्ता पक्का हो गया है ; मेरी प्रसन्नता का पारावार न रहा । बात यह थी की भाई तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं थे । बाउजी के आग्रह पर वे भाभी को पसन्द करने के लिए उनके साथ भी चले गए ; लेकिन उनका कहना था कि वे केवल बाउजी की बात रखने के लिए ही वहाँ जा रहे हैं और अधिक संभावना इस बात की थी कि वे इनकार ही करेंगे । इसीलिए हममे से और कोई तो वहाँ गया ही नहीं ! जब भाई वापिस घर आए और हमसे विचार विमर्श किया तो इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनकार करना तो ठीक नहीं रहेगा । इनकार करने का कोई कारण भी नहीं था । भाभी ग्रेजुएट थीं और सुन्दर भी । वास्तव में तो भाभी के चमचमाते सुन्दर दांतों वाली मुस्कुराहट ने भाई का मन मोह लिया था ! कारण जो भी हो; पर बात पक्की हो गई ।
उस समय तो मैं भाभी को देखने नहीं गई ; परन्तु अब तो बड़ी उत्सुकता थी कि भाभी कैसी दिखती है । उनकी सुन्दरता के विषय में पता तो चल गया पर रूप को निहारने का अवसर तो मिला ही नहीं ! अब यह तो कहा जा नहीं सकता था कि जल्दी ही भाभी से मिलवा दो । औपचारिकताएं कितनी होती ! भाभी के परिवार वालों पर कितना भार पड़ता ! वे कितने परेशान होते ! शायद भाभी को भी अटपटा लगता ; बार बार सकुचा कर ससुराल वालों के सामने बैठना !
भाभी को देखने की मन में बहुत ही तीव्र इच्छा थी । आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है । Social anthropology की पढ़ाई करते समय कुछ प्रोजेक्ट work होते थे । उसमे survey करने होते थे । वैयक्तिक तौर पर पूरी जानकारी के लिए हमे स्वयं व्यक्तियों से मिलकर जानकारियाँ प्राप्त करनी होती थी । इसी को ध्यान में रखकर मैंने भाभी से मिलने की एक युक्ति सोची और उसे कार्यान्वित करने का पक्का इरादा बना लिया । किसी को बता तो सकती नही थी । इस कार्य को तो सभी मना ही करते ; यहाँ तक कि भाई भी !
मैंने सोचा , मिलने के बाद भाई को बताउंगी तो भाई हैरान भी हो जाएँगे और रोमांच से भरपूर किस्सा सुनकर खुश भी होंगे । शादी होने के बाद जब वे भाभी को बतायेंगे तो खूब मज़ा आएगा । उनके परिवार वाले भी अचरज में पड़ जाएँगे कि ये कैसी ननद है जो चुपके से भाभी से मिल गई और किसी को पता भी नहीं चला !
भाभी के घर का पता तो मालूम पड़ ही गया था । Survey के लिए पूरा खाका एक रजिस्टर पर तैयार करके मैंने एक बैग में डाला और जाने के लिए बस पकड ली । जिस बस स्टाप पर मुझे उतरना चाहिए था , उससे पहले वाले स्टाप पर मैं उतर गई । कारण ये था कि मुझे पूरी तरह तो पता ही नहीं था कि कहाँ पर उतरना है ; और चुपके चुपके यह काम करना था , तो घर में पूछती भी किससे ? खैर ! जैसे तैसे वहाँ पर लोगों की सहायता लेते हुए मैं दरवाजे तक जा ही पहुँची ।
मुख्य द्वार खुला था और आँगन में एक कम उम्र की महिला अपनी दो छोटी बच्चियों के साथ चारपाई पर बैठी कुछ काम कर रही थी । पहले तो कुछ क्षण मैं चुपचाप खडी रही । मैंने सोचा ये शायद भाभी की भाभी हैं । अगर मैं अपनी भाभी का नाम लेकर इनसे कुछ पूछूँ , तो पता नहीं क्या प्रतिक्रिया होगी ? कहीं ये मुझ पर शक करें और भाभी को न बुलाएँ ? फिर तो आना ही व्यर्थ हो जाएगा । कहीं कुछ गडबड न हो जाए । कुछ गलत हो गया तो बाउजी बहुत गुस्सा करेंगे । मुझे लगा की मैं व्यर्थ में ही यहाँ आ गई ; चुपचाप वापिस चले जाना चाहिए । तभी कान में आवाज़ आई ," हाँ ! किससे मिलना है ? "
मैं भी जल्दी से बोल गई ,"कृष्णा से ।"
"आओ बैठो । अभी बुलाती हूँ ।"
मैं अंदर आँगन में बिछी चारपाई पर बैठ गई । मुझे यह कल्पना ही नहीं थी कि इतने सरल तरीके से एक आगन्तुक को कोई अपने आँगन में बिठा सकता है । मैंने सोचा कि इनकी भाभी बहुत सरल और सीधी है । नहीं तो मुझसे तरह तरह के प्रश्न पूछती । उसके बाद शायद घर के अन्दर आने देती ।
उन्होंने नीचे से ही आवाज़ लगाई ,"गुड्डी को नीचे भेज दो ।"
ऊपर से किसी स्त्री ने मुझे देखा और पूछा ," हाँ ! क्या काम है ? "
मैंने कहा ," मैं सर्वे के लिए आई हूँ । कृष्णा का सर्वे करना है । प्लीज़ उन्हें भेज दीजिए ।"
मैं कुछ देर तो सांस रोके बैठी रही । सोचा ,"पता नहीं क्या होगा ? अब जो हो देखा जाएगा । जब ऊखल में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना !"
थोड़ी देर में सलवार कमीज़ पहने एक सौम्य व्यक्तित्व सीढियों से नीचे उतरता हुआ दृष्टिगोचर हुआ । मैं पल भर के लिए तो मूर्तिवत हो गई । सोचा ही न था कि इतनी सरलता से दर्शन हो जाएँगे । तभी भाभी की आवाज़ सुनाई दी ," हाँ ! क्या पूछना है ?"
एकदम मेरी तन्द्रा टूटी ," आपके educational और दूसरे details का सर्वे है । आप प्लीज बैठ कर बता दीजिए ।"
भाभी ने सभी प्रश्नों का उत्तर दिया और मैं लिखती गई । कनखियों से भाभी को बार बार देखती भी जाती थी । मन कह रहा था , " भाभी हैं तो बहुत सुन्दर ; और सरल भी हैं । भाई का चुनाव तो वाकई काबिले तारीफ़ है ।"
उन्होंने पूछा ,"और क्या प्रश्न है ?"
मैंने कहा ," और कुछ नहीं पूछना । अब आप नीचे साइन कर दीजिए ।"
भाभी ने मेरे हाथ से पैन लिया और अपने हस्ताक्षर कर दिए । अब तो मैं और भी खुश हो गई । मैंने सोचा ," इस हस्ताक्षर को संभाल कर रखूँगी । यह तो अमूल्य पूंजी है ।"
मैंने खड़े होते हुए कहा ," अब मैं चलती हूँ ।" भाभी ने गर्दन हिलाकर सहमति भी दे दी ; परन्तु मन तो वहां कुछ देर और रुकने का कर रहा था । भाभी की ओर मुस्कुराकर देखते हुए मैं धीरे धीरे दरवाजे की तरफ आई और भाभी ऊपर वापिस चली गई ।
मैं जल्दी से बस स्टाप पर आई । घर वापिस आने की बस पकड़ी । भाई अभी आफिस से घर वापिस आए नहीं थे । मैं बड़ी बेसब्री से घड़ी देखते हुए भाई का इन्तजार कर रही थी । ऐसा लग रहा था कि घड़ी रूक गई है । छह बजने के बाद जब भाई घर आए तो मैंने माँ और बाउजी से छिपकर सारी बात भाई को बताई और भाभी के साइन भी दिखाए । मैंने कहा ," भाई ! शादी के बाद जब भाभी को यह सब बताएँगे तो कितना मज़ा आएगा !" मैंने सोचा था कि भाई बहुत खुश और रोमांचित होंगे और यह टॉप secret शादी तक नहीं खुल पाएगा । परन्तु भाई तो कुछ चिंतित दिखाई दिए । वे बोले ," नहीं ; ऐसे तो अच्छा नहीं लगता । शादी से पहले ही बता देना चाहिए ।"
मेरा तो चेहरा उतर गया । मुझे तो अपना सारा adventure व्यर्थ होता नजर आ रहा था । लेकिन मैं कुछ कर भी तो नहीं सकती थी । उनका निर्णय स्वीकार्य न होने का तो प्रश्न ही नहीं था । दो तीन दिन बाद जब उन्होंने अपने ससुराल वालों को यह सब बताया तो वे सब हैरान हो गए । विवाह के दिन तो सब मुझसे मजाक भी कर रहे थे ; " आज भी कोई सर्वे है क्या ?"
एक राज़ की बात बताऊँ ; पहली मुलाकात के भाभी के वो साइन, मैंने अपने विवाह तक बहुत संभाल कर रखे थे । मुझे वो अपनी अमूल्य निधि लगते थे ।
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