यह जीवन पुष्प सुकोमल है
मानव मधुकर मकरंद तू पी
ले आश्रय सुखद सुगंधि में
इस जीवन का पल-पल तू जी
है मूल्यवान यह कोमल रस,
तुझको लगता है सुलभ प्राप्य?
तूने तप किया कई जन्मों;
तब पाया जीवन, अहोभाग्य!
यह कुसुम नहीं मुरझाएगा;
सत्य नहीं, यह मिथ्या है
मुकुलित कब तक रह पाएगा?
यह तुझ पर निर्भर करता है
तू एक घूंट में ही लेकर
पूरा रस ही पी डालेगा
तो जीवन रूपी प्रिय प्रसून
कैसे अस्तित्व संभालेगा
धीरे-धीरे इसके रस का
अंतर्मन से आस्वादन कर
कुछ तर्क लगा, कुछ रख विवेक
चंचल मन में परिवर्तन कर
यह पुष्प मिला वरदान तुझे
इसके रस का अमृत तू चख
पर खिला रहे यह चिर वेला,
यह सोच। हृदय में धैर्य भी रख।
जल्दी क्यों है? क्या और काम?
तुझको जाना किस और धाम?
यह सुंदर पुष्प मिला तुझको
कर धीरज से मकरंद पान
अब धीरज रखकर ही पीना
जीवन का मधुर सुधा रस तुम
नादानी होगी आतुरता
मुरझाएगा अनमोल कुसुम
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