Saturday, December 6, 2025

सत्तर का सुख

 सत्तर मधुमास ही बीते हैं; 

यह जीवन, अब उपवन जैसा।

फूलों से लदी, सभी क्यारी,

यह जीवन; मधु मधुबन जैसा।

 

प्रसुप्त चेतना जगी अभी;

थिरका अब सांसों में प्रवाह।

भूले भूले से जीवन में,

चेतनता जागी बन उछाह।


अब गाती वसुधा मंगल धुन, 

यह जलधि हिलोरे लेता है।  

नभ बरसाता, उद्दीप्त तेज;

तब पवन ऊर्जा भरता है।


पुलकित प्राणों में मंद-मंद, 

सद्भाव संचरित होता है।

नव आशाओं की सरगम में, 

उल्लास प्रस्फुटित होता है।


जीवन अब अधिक स्पष्ट हुआ; 

अब मौन प्रेरणा आती हैं।

निज जीवन है, बहुमूल्य बहुत;

यह सोच, स्फुरित कर जाती है। 


 सोया जीवन अब जागा है। 

 भीतर माधुर्य, भरा है अब।

 जंजाल व्यर्थ थे, पल-पल के,

 अंतर्आलोक जगा है सब। 


पाथेय बना पिछला जीवन,

अनजाने, मूक, अग्रपथ का।

दृढ़ निश्चय संबल होगा अब,

नित जर्जर होते इस रथ का।


मन बने सबल, क्या और चाह?

जीवन से अधिक अपेक्षा क्यों?

पूरे हों सब कर्तव्य तो फिर,

धर दें ये चदरिया, ज्यों की त्यों!






Tuesday, December 2, 2025

श्वान संरक्षण

 बंगाल के नवद्वीप शहर में एक सार्वजनिक शौचालय के बाहर नवजात शिशु पडा हुआ था। उसके चारों तरफ एक सुरक्षा चक्र था। जानते हैं किसका? सड़क के कुत्तों का। जी हां! उन कुत्तों ने उस नवजात शिशु के चारों ओर घेरा बनाकर उसे सुरक्षा प्रदान की हुई थी। ऐसा लग रहा था, मानो वह उन्हीं का अपना बच्चा हो! पूरी रात वे ऐसे ही खड़े रहे; जब तक कि वहां कोई व्यक्ति नहीं आ गया।

रात भर लोगों को किसी नन्हे शिशु के क्रंदन की आवाज आती रही। लेकिन सभी ने सोचा कि किसी घर के अंदर ही कोई बच्चा रो रहा है।

 भोर होने से पहले ही राधा भौमिक, सार्वजनिक शौचालय में निवृत्त होने के लिए गई। वह हैरान हुई यह देखकर, कि वहां कुत्तों का घेरा था। जब उसने घेरे के बीच में से झांका; तो एक नन्हा शिशु वहां लेटा हुआ था। उसने आगे बढ़कर वह बच्चा अपनी गोद में उठा लिया। कुत्तों ने भी उसे वह बच्चा उठाने दिया। जब वह बच्चा उठा चुकी और कुत्तों ने देखा कि वह सुरक्षित है तो वे वहां से चले गए। 

राधा ने अपनी बहू प्रीति को बुलाया और उसे वह बच्चा पकड़ा दिया। प्रीति तुरंत उसे पास के महेश गंज अस्पताल में ले गई। वहां के डॉक्टरों ने उस शिशु को कृष्णा नगर सदर अस्पताल में पहुंचा दिया। बच्चे के माथे पर थोड़ा खून था। परंतु डॉक्टर ने कहा कि वह जन्म के समय ही रहा होगा। बच्चे को जन्म के एक-दो घंटे के अंदर ही बेसहारा छोड़ दिया गया था। पुलिस वालों ने आसपास पूछताछ भी की। लेकिन कुछ पता न चला। उन्होंने उस बच्चे को बाल कल्याण समिति की सुरक्षा में भेज दिया।

वहां के लोग इस घटना से बहुत हैरान थे। लेकिन तभी उन्हें नौ वर्ष पहले कोलकाता में हुआ एक और किस्सा याद आ गया।  तब भी गली के कुत्तों ने एक नवजात कन्या शिशु को कौवों से बचाया था। उन्होंने तब तक उस शिशु को बचाए रखा, जब तक कि लोग उस कन्या को अपनी सुरक्षा में लेने के लिए नहीं आ गए।

ये घटनाएं वास्तव में बहुत विस्मय और उत्सुकता से भरी हुई हैं। 

गली के आवारा कुत्तों को हम परेशानी का कारण मानते हैं। हम यही मानकर चलते हैं कि यह कुत्ते अचानक काट सकते हैं। यह तो हम कल्पना ही नहीं कर सकते कि वे किसी नवजात मानव शिशु को ऐसे ही छोड़ देंगे। ऐसा लगता है कि सद्योजात मानव शिशु को तो शायद वे खा ही जाएंगे। यह बहुत अधिक आश्चर्य का विषय है कि उन मूक प्राणियों में सामूहिक रूप से, इतनी दया, करुणा और ममता एक इंसान के बच्चे के लिए विद्यमान थी। प्रकृति में जीव-जंतुओं का व्यवहार कभी-कभी तर्क और बुद्धि के परे होता है।

Monday, December 1, 2025

जीवन का आस्वादन

 यह जीवन पुष्प सुकोमल है 

 मानव मधुकर मकरंद तू पी

 ले आश्रय सुखद सुगंधि में

 इस जीवन का पल-पल तू जी 


 है मूल्यवान यह कोमल रस,

 तुझको लगता है सुलभ प्राप्य?

 तूने तप किया कई जन्मों;

 तब पाया जीवन, अहोभाग्य!


 यह कुसुम नहीं मुरझाएगा;

 यह सत्य नहीं, यह मिथ्या है

 मुकुलित कब तक रह पाएगा?

 यह तुझ पर निर्भर करता है 


 तू एक घूंट में ही लेकर 

 पूरा रस ही पी डालेगा

 तो जीवन रूपी प्रिय प्रसून

 कैसे अस्तित्व संभालेगा?


 धीरे-धीरे इसके रस का 

अंतर्मन से आस्वादन कर

 कुछ तर्क लगा, कुछ रख विवेक

 चंचल मन में परिवर्तन कर 


 यह पुष्प मिला वरदान तुझे 

 इसके रस का अमृत तू चख

 पर खिला रहे यह चिर वेला,

 यह सोच। हृदय में धैर्य भी रख।


 जल्दी क्यों है? क्या और काम?

 तुझको जाना किस और धाम?

 यह सुंदर पुष्प मिला तुझको

 कर धीरज से मकरंद पान  


अब धीरज रखकर ही पीना

जीवन का मधुर सुधा रस तुम

 नादानी होगी आतुरता

 सत्वर कुम्हलेगा सौम्य कुसुम


नींद की समस्या

 किसी किसी को यह समस्या आ जाती है कि रात को नींद नहीं आती। रात को नींद अच्छी आए, इसके लिए ज़रूरी है कि दिन में बिल्कुल भी न सोया जाए। दिन में यथाशक्ति शारीरिक श्रम किया जाए। सवेरे जल्दी उठना और रात को जल्दी सोना भी नींद न आने की समस्या को दूर करता है।

 सवेरे उठने के बाद एक गिलास पानी पिएं। उसके बाद नित्य कर्म से निवृत्त होकर हल्का-फुल्का व्यायाम और प्राणायाम करें। अनुलोम-विलोम और भ्रामरी; ये दो प्राणायाम तो अवश्य ही करें। प्राणायाम करने से पहले नाक में एक-एक बूंद बादाम का तेल डाल लें। हल्का सा बादाम का तेल माथे पर भी लगा लें।

 सवेरे का नाश्ता भारी नहीं होना चाहिए। दोपहर के भोजन में दो कच्ची प्याज अवश्य ही खाएं। दोपहर के भोजन के कुछ देर बाद, द्राक्षासव का सेवन करें। रात को खाने में प्याज की सब्जी हो, तो बहुत अच्छा रहेगा। रात का भोजन, सोने से लगभग दो घंटे पहले कर लें। रात का भोजन भी हल्का-फुल्का ही रखें। 

रात को खाने के बाद बहुत अधिक पानी न पिएं, न ही कोई अन्य तरल पदार्थ लें। इसके अलावा रात के भोजन के बाद किसी भी प्रकार की मिठास वाले पदार्थ, कॉफी, चाय इत्यादि भी नहीं लेनी चाहिए। यह सब नींद में व्यवधान डालने वाले कारक होते हैं। आशावादी दृष्टिकोण रखें। मन में नकारात्मकता न आने दें। सोने से पहले, दस-पन्द्रह मिनट अनुलोम विलोम प्राणायाम कर लें। इससे नींद अच्छी आती है।

सुबह नाश्ते के आधा घंटा बाद और रात के खाने के आधा घंटा बाद, एक-एक मेधावटी का सेवन करें।

Sunday, November 30, 2025

सतरंगी अनुभूतियां

 सुबह उठी, तो बहुत थकावट महसूस हो रही थी। लग रहा था कि समय कम है; और काम अनेक! अक्सर एक दिन में एक काम निपटाया जाए; उसी में ही सारा दिन व्यतीत हो जाता है। शरीर की ऊर्जा की भी एक सीमा निश्चित होती है। उससे ज्यादा काम करने पर शरीर प्रतिरोध करता है।

 बात यह थी कि मुझे वार्षिक जीवन प्रमाण पत्र बैंक में देना था। वह भी एक बैंक में नहीं, बल्कि दो बैंकों में। दोनों बैंक काफी दूरी पर हैं। यद्यपि बैंकों में पैदल ही जाया जा सकता है; पर मुझे लग रहा कि थकान बहुत अधिक हो जाएगी। मैंने निर्णय किया कि आवश्यक दस्तावेज लेकर, मैं एक बैंक का काम निपटाकर घर वापस आ जाऊंगी।

 घर से निकली, तो थके-थके से कदम लग रहे थे। मंदी-मंदी धूप थी और हल्की-हल्की ठंड भी। चलना अच्छा तो लग रह रहा था; लेकिन यही महसूस हो रहा था कि एक बैंक का काम ही निपट पाएगा। उसके बाद में घर आ जाऊंगी। 

 जैसे-जैसे बैंक की ओर गई थकान का अनुभव कम होने लगा। रास्ते में एक विद्यालय पड़ता है। वहां विद्यालय के द्वार पर खडी एक युवा लड़की ने मुझे रोक लिया। उसने पूछा, "क्या आप बीमा करना चाहती हैं?"

 मैंने कहा, "अभी मैं बता नहीं सकती। पहले बच्चों से बात करूंगी। तब तुम्हें बता सकती हूं।"

 उसने मुझे अपना कार्ड दे दिया और अनुग्रह किया कि मैं उससे ही बीमा कराऊं। मैंने मुस्कुराकर उससे कार्ड ले लिया। अब मैं आगे बढ़ी। मैंने सोचा यह कितना प्रयत्न कर रही है कि इसे कोई ग्राहक मिल जाए और इसका काम आगे बढ़े। प्रयत्नशील तो होना ही चाहिए।

 यही सोचती सोचती आगे चलती गई। आगे चलते-चलते रास्ते में कुछ बुजुर्ग व्यक्ति मिले। जो काफी बड़ी उम्र के लग रहे थे। बहुत  संभ्रांत परिवार के लग रहे थे। वे कार में भी जा सकते थे। लेकिन वे पैदल ही जा रहे थे। मैंने सोचा यह जब ये बुजुर्ग बड़े मजे में हंसते हुए, बातें करते हुए अपने काम के लिए चलकर जा रहे हैं; तो मैं पैदल क्यों नहीं चल सकती? वास्तव में शारीरिक शक्ति तो आवश्यक है ही। लेकिन यदि मन में भी शक्ति का संचार हो जाए तो तन की शक्ति द्विगुणित हो जाती है। जब मेरे तन में शक्ति संचरित हुई, तो मैं रास्ते के तरह-तरह के नज़ारों का मज़ा लेते हुए, धीरे-धीरे अपने बैंक तक पहुंच गई। अब तक शरीर की थकावट काफ़ूर हो चुकी थी।

 मैंने सोचा यह था कि बैंक में काफी भीड़ भड़क्का होगा। घंटा दो घंटा तो बैठना ही पड़ेगा। तब नंबर आएगा। तभी अपना काम निपटा पाऊंगी। लेकिन मैं हैरान हुई देखकर, कि वह बैंक लगभग खाली था। जहां मुझे जीवन प्रमाण पत्र देना था वह काउंटर तो बिल्कुल ही खाली था। मुस्कुराते हुए वहां के क्लर्क ने मेरा फॉर्म लिया। उसका नंबर अपने कंप्यूटर में डाला। मेरी फोटो अपने फोन से खींची। तुरंत मेरा जीवन प्रमाण पत्र सर्टिफाई हो गया। वाह! क्या स्पीड थी? मज़ा आ गया!

 मैं वहां खड़ी हुई अचंभा कर रही थी; कि कितनी फुर्ती से काम हो गया। तभी मेरे सामने एक महाशय आए। बोले, "आप यहां कैसे?"

 मैंने भी उन्हें पहचानने की कोशिश की। मैंने कहा, "अरे आप मिस्टर वोहरा है?"

वे बोले, "हां! हां! मैं वही हूं।"

 बात यह थी कि उनकी पत्नी संतोष वोहरा मेरे साथ ही अध्यापिका थी। उन्हें देखे मुझे लगभग पंद्रह वर्ष तो हो ही गए होंगे।  आज बड़े दिनों बाद उन्हें देखा तो थोड़ा पहचानने में दिक्कत आई। वे बहुत खुश मिजाज व्यक्ति हैं। परन्तु आज कुछ मायूस से लग रहे थे। मैंने पूछा, "सब ठीक-ठाक तो है न?"

 उन्होंने बताया कि उन्हें ब्लड कैंसर हो गया है। यह सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। उनकी उम्र करीब लगभग 77 वर्ष की होगी। उनका बेटा और बहू डॉक्टर हैं। उनका इलाज बहुत कामयाब डॉक्टर से चल रहा है। लेकिन फिर भी वह कह रहे थे कि बचने की उम्मीद ज्यादा नहीं है। मैंने उनसे अपनी सहकर्मी संतोष वोहरा के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि उसकी पैर की हड्डियों में भी दर्द होता है और भी कई परेशानी चल रही हैं। यह बात सुनकर मुझे बहुत ही अफसोस हुआ। कहां तो मैं प्रसन्न हो रही थी कि मेरा बैंक का काम चुटकियों में निपट गया था; और कहां मुझे दुःख हो रहा था कि मेरी सहकर्मी और उनके उसके पति इतनी परेशानी में हैं। 

खैर! हम वहां बैठ गए। हमने थोड़ी देर बातें की। वे कह रहे थे कि हमारी शादी की पचासवीं सालगिरह है। हमारे पचास साल लड़ाई झगड़े में ही बीते। मुझे हंसी आ गई। मैंने कहा, "आप बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं। आप तो संतोष को बहुत प्यार करते हैं।  उसके गले में हाथ डालकर, आप कहते थे: "मेरी तोशी! मेरी तोशी! मुझे सब याद है।"

 वे भी हंसने लगे। उन्होंने कहा, "आप घर क्यों नहीं आती हो? संतोष आपको बहुत याद करती है। आप घर आओ। मैं पकोड़े अपने हाथ से बनाकर आपको खिलाऊंगा और साथ में चाय भी पिलाऊंगा।"

 मैंने कहा, "हां! मैं जरूर आऊंगी। मुझे संतोष के हाथ के परांठे भी खाने हैं। दिसंबर में तो आप अपनी शादी की पचासवीं वर्षगांठ मना ही रहे हैं। तभी आऊंगी।"

 उन्होंने कहा,"नहीं आपको पहले भी आना है। पता नहीं, वर्षगांठ में मना पाऊंगा कि नहीं।" 

मैंने सांत्वना देते हुए कहा, "आप ऐसा मत बोलिए। आप कम से कम सौ वर्ष तक जिंदा रहेंगे। आप मेरी सलाह मानिए। एक बार ऋषिकेश में पतंजलि अवश्य हो आइए। आगे भगवान की इच्छा पर छोड़ दीजिए।"

  यह बोले,"ठीक है। मैं वहां ज़रूर जाऊंगा।" 

उस बैंक से बाहर निकलते समय मैं सोच रही थी कि वर्षों तक हम नहीं मिले। अचानक ही पता चल रहा है कि इनको कितनी बीमारियां हो गई हैं। मिलते-जुलते न रहो तो किसी का पता ही नहीं चलता। मैं सोच रही थी कि ब्लड कैंसर होते हुए भी वे स्वयं बैंक में आए हैं और अपना कार्य करवा रहे हैं। और किसी को अपने साथ लेकर नहीं आए। इनमें तो बहुत अधिक दृढ़ इच्छा शक्ति है। इस बात से मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैंने निर्णय किया कि मैं दूसरे बैंक में भी यहां से पैदल ही जाऊंगी। 

चलते-चलते मैं अपने दूसरे बैंक तक भी पहुंचने वाली थी कि रास्ते में भूख लगी। मैंने केले खरीदे। अभी एक केला निकालकर खाने ही वाली थी कि सामने से एक व्यक्ति आ गया उसने कहा, "मैंने आज सवेरे से कुछ नहीं खाया। मैं अपना ठेला लगाने ही वाला था कि मेरे सिलेंडर की गैस खत्म हो गई। लेकिन मुझे भूख बहुत जोर से लगी है और मेरे पास पैसे भी नहीं है। आप कुछ खिला दीजिए।"

 मैंने अपने हाथ का केला उसके हाथ में दे दिया। मैं आगे चल दी। मैंने सोच रही थी कि बेचारे को कितनी परेशानी हो रही होगी। परन्तु मैं कर ही क्या सकती थी। मुझे तो दूसरे बैंक भी जाना था। मैंने दूसरे केले को निकाल कर खाया। जिससे कुछ भूख शांत हुई। 

तभी चलते-चलते बैंक भी आ गया। मैं अंदर गई। बैंक के अंदर घुसते ही मेरे सामने एक हर्ष मिश्रित विस्मय था। मेरे विद्यालय की एक छात्रा वहां काउंटर पर खड़ी थी। मुझे देखते ही उसने मुझे एकदम पहचान लिया। उसने मेरा अभिवादन किया। मुझे उसकी शक्ल थोड़ी बहुत जानी पहचानी लगी; परन्तु नाम बिल्कुल याद नहीं आया। मैंने कहा, "बेटा! तुम तुम्हारा क्या नाम है?"

 उसने कहा, "मैं चंचल हूं। आप मुझे पढ़ाते थे; मुल्तान नगर स्कूल में।"

 मैंने कहा, "हां कुछ-कुछ याद तो आया। लेकिन तुम्हारा नाम याद नहीं आ रहा था"

 मुझे बड़ी खुशी हुई कि उसकी बैंक में परमानेंट जॉब लग गई थी। उसने पूछा, "मैम! आपके लिए क्या कर सकती हूं?" 

मैंने कहा, "मुझे जीवन प्रमाण पत्र देना है।" 

उसने तुरंत मेरे जीवन प्रमाण पत्र के फार्म भरवा कर सबमिट कर दिए। मुझे एक एफ डी भी करवानी थी। वह भी काम उसने चटपट कर दिया। मैं तो हैरान ही हो गई कि बैंक में कार्यरत, मेरे द्वारा पढ़ाई गई छात्रा का मुझको कितना अधिक लाभ हुआ! उसने पांच मिनट में ही सारा काम निपटा दिया। 

एक तो मुझे उससे मिलकर ही बड़ी खुशी हुई थी कि मेरी छात्रा इस बैंक में नौकरी पर लगी हुई है। अब उसने मेरे काम को भी पांच मिनट में ही निपटा डाला तो खुशी द्विगुणित हो गई। मैंने बचे हुए केले उसके बैग में डालते हुए कहा, "बेटा! यह मेरी ओर से तुम्हारे लिए।"

 यह देखकर तो वह बहुत ज्यादा खुश हो गई।  उसने कई बार मुझे थैंक यू मैम, थैंक यू मैम, कहा। उसकी प्रसन्नता ने मेरी प्रसन्नता भी बढा दी। उसने यह भी बताया कि उसकी क्लास के अधिकतर बच्चे बहुत बढ़िया जॉब पर लग गए हैं। दस बारह बच्चे तो सरकारी बैंकों में ही कार्यरत हैं। कोई विद्यार्थी अमेरिका भी चला गया है। कुछ बच्चे दुबई में भी हैं।

 बैंक से बाहर निकलते समय मैं सोच रही थी कि मेरी पढ़ाई हुई छात्रा की अच्छी जॉब लग गई है। कितनी खुश थी वह! मेरा काम भी उसने गजब की स्फूर्ति से कर दिया। मुझे इस बात की भी प्रसन्नता थी कि उसकी क्लास के बहुत से बच्चों ने काफी अच्छे मुकाम हासिल कर लिए थे। वास्तव में, सरकारी विद्यालयों में, बच्चे जिस पृष्ठभूमि से आते हैं; उनके लिए ये उपलब्धियां प्राप्त करना सरल नहीं होता।

इस समय मैं दिन की पिछली सब बातें भूल कर प्रसन्नता और गर्व से भर गई। उन बच्चों के बारे में सोचने लगी जो उसकी क्लास में थे। सोचते सोचते आगे बढ़ी तो रास्ते में पतंजलि स्टोर था। मुझे याद आया मुझे हिंग्वाष्टक चूर्ण भी लेना है। पतंजलि स्टोर बेसमेंट में है। मैं नीचे उतरी तो काउंटर वाली लड़की सामने ही खड़ी थी। उसने मुस्कुरा कर मेरा अभिवादन किया और पूछा, "मैम! आप क्या लेना चाहती हैं?" मैंने बताया कि मुझे  हिंग्वाष्टक चूर्ण चाहिए, तो वह चुस्ती के साथ काउंटर पर चूर्ण ले आई और उसने पेमेंट भी करवा दी। वह लड़की भी अपनी आत्मीय बन गई है। मैं गाया बगाया वहां जाती ही रहती हूं। इसीलिए वह मुझे अच्छे से पहचानती थी।

 अब मैं बाहर निकली तो मैंने सोचा कि अभी समय बहुत अधिक नहीं हुआ है। क्यों न मधुजी से मिल दिया जाए। वे मेरे साथ ही एक विद्यालय में पढ़ातीं थीं। उनसे मिले भी काफी समय बीत चुका था। फोन पर ही बातचीत होती थी। कुछ दिनों पहले उन्होंने निर्णय लिया था कि वे एक बड़ा सत्संग करवायेंगी। जिसमें सभी विद्यालय की सहेलियों को बुलाएंगी। इसके लिए उन्होंने मुझे फोन भी किया था। उनका घर रास्ते में ही पड़ता था। इसीलिए मैं तुरंत उनके घर भी पहुंच गई।

 वे हैरान हो गईं मुझे देखकर! मैं अकस्मात ही जो उनके घर पहुंच गई थी। आलू बैंगन की सब्जी बनाने के लिए वे अभी बैगन काट ही रही थी। मैंने कहा, "चलो मैं आपके साथ-साथ ही सब्जी कटवा देती हूं। बीच-बीच में बातें भी करते रहेंगे।" 

 उन्होंने कहा, "नहीं। तू बैठ। सब्जी तो बनती रहेगी। मैं चाय बनाती हूं। तू चाय पी।"

 उनकी चाय हमेशा प्यार से भरी हुई होती है।  चुस्कियां लेते हुए मैंने नमकीन का आनंद भी उठाया। खूब गपशप हुई। कई पुराने किस्से याद आ गए; कुछ खट्टे कुछ मीठे। 

फिर उन्होंने कहा, "तुझे सत्संग में जरूर आना है। सभी सहेलियां मिलेंगी। पहले चाय पकौड़े खाएंगे। फिर खूब सत्संग करेंगे। बाद में जम के खाना खाएंगे। मैंने हलवाई बुला रखा है। जरूर जरूर आना है।" मैंने पक्का वायदा किया कि मैं अवश्य ही आऊंगी। 

उनके साथ बीते सभी खट्टे मीठे अनुभव याद करते हुए मैं वापस घर पहुंच रही थी। रास्ते में कबाड़ी वाले की दुकान दिखाई दी। यद्यपि अक्सर उसकी दुकान में काफी व्यस्तता नज़र आती है।  लेकिन आज वह कबाड़ी वाला बिल्कुल ही खाली बैठा था। मैंने सोचा यह अच्छा मौका है। अखबारों की रद्दी तो इकट्ठी हो ही गई है। अभी निपटा देती हूं। 

मैंने उसको कहा,"भैया! जल्दी से मेरे घर रेहडी भेज दो। अखबार की रद्दी देनी है।" 

उसने मेरे साथ ही एक रेहडी वाले को भेज दिया। वह रद्दी उठा ले गया और सारी रद्दी बिक गई। 

 लो, यह काम भी कब से टल रहा था और यह भी आज ही निपट गया। काफी संतुष्टि का अनुभव हुआ। आज मैं आधे दिन में ही कई काम कर पाई थी, और मुझे कोई थकावट भी महसूस नहीं हुई। 

 यकीनन ऐसा कोई दिन कभी-कभी ही आता है; जिसमें इतनी विभिन्न प्रकार की अनुभूतियों का समावेश एक ही दिन में हो जाए। इसमें हर्ष, सुख, दुःख, चिंता, करुणा, गर्व, आश्चर्य, प्रेम, संतुष्टि आदि सभी प्रकार की अनुभूतियाँ शामिल थीं। जीवन की पूर्णता का एहसास कराने वाला, एक अलग ही दिन था यह!

वास्तव में देखा जाए तो हमारा पूरा जीवन ही विभिन्न प्रकार की सतरंगी अनुभूतियों के रस में आप्लावित है। केवल आवश्यकता है, जीवन में उमंग से परिपूर्ण आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की। जब हम सजगता से हर पल को निहारते हैं; तो उस पल में घुली हुई प्रत्येक अनुभूति हमें बहुत कुछ प्रदान कर जाती है।

Sunday, November 23, 2025

लौट आईं स्मृतियां!

 रिखीराम अंबाला जा रहा था। रास्ते में सड़क पर उसका एक्सीडेंट हो गया। वह बच गया। लेकिन उसकी याददाश्त जाती रही। उसके परिवार वालों ने उसको ढूंढने की बहुत कोशिश की। पर उसका कुछ पता न लगा। 

वास्तव में वह जिंदा था। लेकिन अपने परिवार से 1600 किलोमीटर दूर था। वहां किसी ने उसको बचा लिया था। उसे अपनी पिछली जिंदगी की सभी बातें विस्मृत हो गई थी। वह अपना नाम तक नहीं बता पा रहा था। इसीलिए उसे बचाने वाले ने उसका नाम रवि चौधरी रख दिया था। उसने नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू की। वह मुंबई  चला गया वहां उसने कुछ दिनों कुछ काम किया।

 फिर वह नांदेड़ काम के लिए चला गया।उसे एक कॉलेज में  नौकरी मिल गई। उसने एक लड़की संतोषी से विवाह भी कर लिया। उसके तीन बच्चे हुए। उसे अपने पिछले जीवन का कुछ भी याद नहीं था। लेकिन कुछ ही महीने पहले की बात है कि उसका एक और एक्सीडेंट हो गया। उसका सिर टकराया। ज्यादा चोट नहीं आई। लेकिन अचानक उसकी पिछली स्मृतियां वापस आ गई। उसे पिछले समय के बचपन के चित्र देखने लगे। उसे अपने शहर 'सातों' के पहाड़ दिखने लगे। वह बड़ा हैरान और परेशान हुआ। 

 उसने इन चित्रों की स्मृतियों को अपनी पत्नी को बताया। उसकी पत्नी ने सलाह दी कि अपनी कॉलेज के छात्रों से यह बात पूछे। वे शायद खोज कर कुछ बता पाएं। उसने अपने कॉलेज के एक विद्यार्थी को ऑनलाइन 'सातों' गांव को ढूंढने के लिए कहा। जब उस विद्यार्थी ने 'सातों' गांव ढूंढ कर, उसके एक कैफे में फोन घुमाया, तो पता चला कि वह वहां सचमुच ही रहता था। वहां पर उसका नाम रिखी राम था। 

इसके बाद रिखीराम हिमाचल प्रदेश के उसी गांव में वापस आया। वह अपने बच्चों और पत्नी को साथ लेकर आया। उसके माता-पिता की तो मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन उसके भाई-बहन उसे पहचान गए। वे अवाक् थे, लेकिन प्रसन्न भी! उनकी आंखों में हर्ष मिश्रित आंसू आ गए। गांव वालों ने माला पहनाकर उसका स्वागत किया। यह बहुत ही भावुक मिलन था। 

यह अद्भुत बात है, कि जो घटनाएं हम फिल्मों में पर्दे पर देखकर काल्पनिक समझते हैं; वह जीवन में प्रत्यक्ष रूप से घटित हुई।

Saturday, November 22, 2025

सरल जीवन; सरल शरीर!

 स्वस्थ रहना है तो सरल जीवन की और चलना होगा। जिस सरलता से हमारे पूर्वज जीवन व्यतीत करते थे; हमें उसी राह पर चलना होगा। उनके खान-पान में बहुत सरलता थी। वह क्षेत्रीय स्तर पर उगे हुए खाद्य पदार्थ ही खाते थे। हमें भी अपने ही क्षेत्र में उगे हुए खाद्य पदार्थों का ही सेवन करना चाहिए। हम उन्हें सरलता से पचा पाते हैं। दूसरे अपरिचित क्षेत्र के खाद्य पदार्थ पचाने में हमारे शरीर को असुविधा होती है। साथ ही हमें मौसमी फल सब्जियां ही खानी चाहिएं। मौसम के अनुकूल फल सब्जियां, हमारा शरीर आराम से पचा पाता है। हमारे पूर्वज हर समय खाते नहीं रहते थे। खूब शारीरिक परिश्रम किया करते थे। सोने से काफी देर पहले, वे दिन का आखिरी भोजन कर लेते थे। हमें भी ऐसा ही करना होगा।

  सवेरे का प्रथम भोजन थोड़ा बहुत शारीरिक परिश्रम करने के बाद ही खाना चाहिए; फिर चाहे वह थोड़ा बहुत व्यायाम हो या फिर शारीरिक काम। दिन का आखिरी भोजन सोने के लगभग तीन-चार घंटे पहले हो जाना चाहिए। खाने के बीच में अंतराल भी होना चाहिए। ऐसा नहीं की हर दो घंटे में कुछ भी खा रहे हैं। हमें सब्जियां और सलाद ज्यादा खानी चाहिए। वास्तव में हमें सजग रहकर भोजन करना चाहिए। भोजन करते समय यह अवश्य सोचना चाहिए कि यह भोजन मेरे शरीर को बीमारियां देगा; या फिर यह भोजन मेरे शरीर की बीमारियों से लड़ेगा।

हमारी आंतों में लगभग 30 से 70 ट्रिलियन बैक्टीरिया होते हैं। इनका मुख्य भोजन वही है जो कि हम सलाद और सब्जियों के रूप में खाते है। यदि हम इन बैक्टीरिया का भोजन नहीं खाते तो यह बैक्टीरिया भूखे होने पर पहले आंत की अंदर की  चिकनी परत को खाते हैं। बाद में आंतों को भी अंदर से खाना शुरू कर देते हैं। इससे आंतों में घाव होने शुरू हो जाते हैं। और बुरे टॉक्सिंस हमारे खून में पहुंचने शुरू हो जाते हैं। इस तरह बीमारियों की शुरुआत हो जाती है। यदि हम इन बैक्टीरिया को उचित भोजन देते रहेंगे तो ये  स्वयं भी संतुष्ट रहेंगे और हमारे लिए उचित विटामिनों का निर्माण करते रहेंगे। जिससे हम भी स्वस्थ रहेंगे। है न दोनों के ही फायदे की बात!

 हमें सबसे अधिक सब्जियां और फल खाने चाहिएं, उससे कम दाल और सबसे कम कार्बोहाइड्रेटस्। हमारे शरीर का लीवर अगर ठीक रहेगा तो हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। लीवर को सभी पाचक तंत्र के अवयवों की मां कहा गया है। कारण यह है कि मां सभी को आराम से सुलाकर, बाद में सभी काम निपटाकर, स्वयं आराम करती है। पहले सभी ऑर्गन्स अपना काम कर लेते हैं; और आराम करते हैं। सबसे बाद में लिवर आराम करता है। लिवर को भी कम से कम चार पांच घंटे का आराम अवश्य ही चाहिए। इसीलिए हमें बीच-बीच में नमकीन इत्यादि भी नहीं खाने चाहिए।

 जितना हम घर का बना सादा खाना खाएंगे उतना ही हमारा स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। हमें प्रयत्न करना चाहिए कि बाहर से बना हुआ खाना कम से कम खाएं। बाहर से बने भोजन की विश्वसनीयता इतनी अधिक नहीं हो सकती जितनी कि स्वयं बनाए हुए भोजन की। प्रोसैस्ड फूड तो कतई नहीं खाने चाहिएं। इसके अतिरिक्त प्रयत्न करना चाहिए कि हर घंटे शारीरिक गतिशीलता भी बनी रहे।  ऐसा न हो कि हम बहुत देर तक आराम से बैठे ही रहे।

 जब हम दो खानों के बीच में अंतराल रखते हैं; तो उससे हमारे शरीर में पहले से संचित खाना भी काम में आता है। जिससे कि दो प्रक्रियाएं बड़ी अच्छी होती हैं। एक का नाम है ऑटो फैजी और दूसरे का नाम है माइटो फैजी। इन प्रक्रियाओं से ऐसी कोशिकाएं  खत्म हो जाती हैं; जो कि अनियंत्रित रूप से बढ़ती है। यदि यह प्रक्रियाएं न हो, तो ये कोशिकाएं नियंत्रण से बाहर चली जाती हैं। इसी से कैंसर होने की भी संभावना भी हो सकती है।

खाने पर नियंत्रण रखने से व स्वस्थ जीवन शैली अपनाने से कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि रुक जाती है। और कैंसर की संभावना भी न के बराबर होती है। इसीलिए स्वस्थ रहना है तो समय से खाएं। दो आहारों के बीच में उचित अंतराल रखें। सरल आहार ही करें। और हां शरीर को क्रियाशील अवश्य रखें। सरल जीवन शैली अपनाने से शरीर में भी सरलता रहती है। कोई जटिलता नहीं आती।