मादा चीता के चारों शावक थोड़े बड़े हो गए थे। अब उन्हें शिकार करना भी सीखना था। जंगल में घूमते घूमते अचानक उन्हें नन्हे गाय के बछड़े दिखाई दिए और वे उसके पीछे चल दिए। शिकार करने के लिए उनमें से एक-दो बछडों को उन्होंने घायल भी कर दिया।
चीता बच्चों को यह मालूम ही नहीं था कि वह जंगल से बाहर आ गए हैं। वह उनकी सीमा के बाहर का इलाका है।
ग्रामीणों ने जब यह देखा तो वह आग बबूला हो गए। उन्होंने चीतों को पत्थर मारने शुरू कर दिए। उनकी मां, मादा चीता भी उनके पीछे-पीछे थी। उसने जब यह देखा तो वह बच्चों के साथ वापस जंगल में चली गई।
यद्यपि वन विभाग के अधिकारियों ने ग्रामीणों को भी वहां से हटाया और उन्हें अपने बछड़े संभालने के लिए कहा। उन्होंने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि अब वे प्रयत्न करेंगे कि चीते दोबारा जंगल से बाहर न निकले।
अनिल वन विभाग में ही नियुक्त एक कर्मचारी था। उसे जंगली जानवरों से बहुत प्यार था। उसने चीता शावकों को पत्थर खाते हुए देखा तो उसे बहुत बुरा लगा। उसने सोचा कि इन चीतों को थोड़ा प्यार भी देना चाहिए। चीते के बच्चे कितने परेशान हो गए होंगे; यह सोचकर उसने योजना बनाई कि किसी प्रकार से उनकी घबराहट मिटाई जाए।
वन विभाग के वरिष्ठ कर्मचारियों के जाने के बाद उसने अपनी बोतल का पानी एक प्लेट में डालकर चीतों के सामने रख दिया और इंतजार करने लगा। चीते के बच्चे अनिल से थोड़ा बहुत परिचित तो थे ही। वे धीरे-धीरे उस प्लेट के पास आए और मज़े में पानी पीने लगे।
इस घटना को किसी ने अपने कैमरे में कैद कर लिया और इसका वीडियो वायरल हो गया। जब यह वीडियो वन विभाग के वरिष्ठ प्रबंधकों ने देखा, तो उन्हें अनिल पर बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसे निलंबित कर दिया। उनका कहना था कि पशुओं से प्यार करना तो अच्छी बात है; परन्तु जंगली पशुओं को अपनी सीमा का आभास होना चाहिए। अगर वे सीमा से बाहर गांव की तरफ आएं तो उन्हें प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। अनिल ने ऐसा करके इस नियम का उल्लंघन किया था। इसीलिए उसे नौकरी से निलंबित कर दिया गया।
अनिल को पशु पक्षियों से प्यार था। लेकिन उसके प्यार जताने पर, इस प्रकार का प्रहार होगा; ऐसा उसने सोचा भी नहीं था।