Wednesday, June 25, 2025

बिन बुलाया मेहमान!

 रांची से साठ किलोमीटर की दूरी पर सुबर्णरेखा नदी के किनारे एक गांव है; जिसका नाम है मरदु।

पूरण चंद महतो इसी गांव का एक किसान था। सुबह चार-पांच बजे के करीब वह अपने मवेशियों को चराने के लिए बाहर ले जाना चाहता था। वह बाहर अहाते में आया और अपनी बेटी सविता को बोला,"जा! सब पशुओं को बाहर निकाल ला।"

 सविता अंदर गई तो उसकी चीख़ की आवाज आई, "बाबा! बाघ!!"

उनके कमरे में सात फुट लंबा एक बाघ, कोने में चुपचाप बैठा  था। कमरे का एक ही दरवाजा था। कमरे में पूरन चंद की दो बेटियों के अलावा मेहमान भी सो रहे थे। पूरणचंद की पत्नी और बेटा एक शादी में सम्मिलित होने के लिए पास के गांव में गए थे।

 चीख की आवाज सुनकर सभी एकदम उठ खड़े हुए और कमरे के एक कोने में सिमट गए। तभी बाघ भी शायद डर गया और उसने एक खिड़की से दूसरे कमरे में छलाँग लगा दी। और वहां खड़ा हो गया। वास्तव में कमरे की खिड़की बहुत बड़ी थी, और उसमें लोहे की जाली भी नहीं थी; इसीलिए वह आराम से कूद पाया।

 पूरणचंद ने सबको घर के बाहर आने के लिए कहा।  जैसे ही सब बाहर आ गए तो पूर्ण चंद ने घर का लोहे वाला दरवाजा बाहर से बंद करके ताला लगा दिया।

इस गांव में तेंदुए वगैरह तो अक्सर घरों के आसपास, कभी-कभी आ ही जाते थे।  लेकिन यह पहली बार था, कि कोई बाघ घर के अंदर घुस गया हो।

 जिला अधिकारियों को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने जंगल के अधिकारियों को खबर कर दी। वे तुरंत एक टीम के साथ इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आ गए। उच्च अधिकारी भी इस ऑपरेशन को सुपरवाइज करने के लिए वहां पहुंच गए। पूरे मकान को जालियों से ढक दिया गया।

भीड़ को इकट्ठा न होने देने के लिए आदेश जारी कर दिए गए। फिर भी लगभग एक हजार के करीब गांव वाले वहां इकट्ठे हो गए थे। उनकी सुरक्षा करना भी इन अधिकारियों का कर्तव्य था। 

शाम के लगभग चार बजे 'पलामू टाइगर रिजर्व' से एक टीम, इस गांव में आई। रांची का जंगल विभाग भी उनका साथ दे रहा था। इन सब ने मिलकर उस बाघ को पकड़ने का प्रयत्न किया। यह एक नर बाघ था; जो कि लगभग पांच साल का था। 

इस पूरी टीम ने उसके लिए एक रेस्क्यू गाड़ी का इंतजाम किया हुआ था। लेकिन पहले इस बाघ को पिंजरे में लाना जरूरी था।  पिंजरे में कोई शिकार रखते; उसके पहले ही वह बाघ इस पिंजरे में आ गया, और पकड़ा गया।

 उसके बाद उसे बेहोश करना जरूरी था; जिससे कि उसे कोई चोट या खरोंच न लग जाए। बेहोशी की एक गोली से काम न चला। दो गोलियां चलानी पड़ी। तब कहीं जाकर वह बेहोश हुआ। शाम को लगभग सात बजे इस टाइगर को रांची के 'भगवान बिरसा चिड़ियाघर' में ले जाया गया। वहां पर उस बाघ के बहुत से टेस्ट हुए।  

झारखंड के वन विभाग के वार्डन ने कहा, "यदि बाघ शारीरिक रूप से बिल्कुल ठीक होगा; तो हम इसे टाइगर रिजर्व में छोड़ देंगे। इसके गले में एक रेडियो कॉलर भी डाल देंगे; जिससे कि इसके बारे में मालूम होता रहे, कि यह कहां घूम रहा है?"

"कहीं ऐसा न हो कि यह बिन बुलाया मेहमान, फिर किसी के घर में जाकर, दोबारा सरप्राइज दे!" वह हंसते हुए बोला।

Sunday, June 22, 2025

सुहाना सफ़र!

 "मैंने ट्रेन की बुकिंग कर ली है और उत्कल को भी बता दिया है।" कंप्यूटर के स्क्रीन को देखते हुए ऋचा बोली।

 मैंने कहा, "ठीक है। कब की टिकट कराई है?"

 उसने कहा,  "नवरात्रि के आसपास की ही टिकट बुकिंग कराई है।" अचानक वह बोली, "अरे यह क्या? यह तो एग्जीक्यूटिव क्लास की बुकिंग हो गई! मैंने तो फर्स्ट क्लास एसी की बुकिंग कराई थी।"

मैंने पूछा, "दोनों के टिकटों के किराए में कितना अंतर है?"

 "किराए में तो कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। परंतु यह सब कैंसिल करके दोबारा से टिकट बुकिंग करनी पड़ेगी।"

 वास्तव में कंप्यूटर पर काम करना, ऋचा को बिल्कुल पसंद नहीं है। थोड़ी देर में सभी काम समाप्त करके वह कंप्यूटर को तुरंत बंद कर देना चाहती है।

 मैंने कहा, "ठीक है। किराए में ज्यादा अंतर नहीं है तो एग्जीक्यूटिव क्लास की बुकिंग ही ठीक है। पता तो चलेगा कि एग्जीक्यूटिव क्लास में क्या खास बात होती है?" 

"चलो ठीक है।" ऋचा ने कहा।"बुकिंग तो हो गई है। अब आगे की तैयारी करती हैं।"

 उत्कल को भी उसने टिकट की टाइमिंग्स और शेड्यूल भेज दिया। रुद्रांश की छुट्टियां तो थी ही; उत्कल ने भी छुट्टियां ले ली। जाने की सभी तैयारियां हो गई। और आखिर वह दिन भी आ पहुंचा, जब हम स्टेशन पर खड़े थे।

 काठगोदाम एक्सप्रेस धीरे-धीरे स्टेशन की तरफ आ रही थी। अपना एग्जीक्यूटिव क्लास का डिब्बा ढूंढ कर हम उसमें चढ़ गए। अभी डिब्बा बिल्कुल खाली ही था। अपनी सीट नंबर देखकर हम अपनी अपनी सीटों पर बैठ गए। लगेज भी ऊपर रख दिया। धीरे-धीरे लोग हमारे कोच में आने लगे और वह गाड़ी का डिब्बा भरना शुरू हो गया।

गाड़ी चल पड़ी। थोड़ी देर बाद ही डिब्बे के अंदर एक व्यक्ति ढेर से गुलाब हाथ में लिए आता हुआ दिखाई दिया। उसने झुक झुक कर सबके हाथ में एक-एक गुलाब दिया और अभिवादन किया। 

"अच्छा, तो यह बात है! एग्जीक्यूटिव क्लास में सबसे पहले अभिवादन के साथ सबके हाथ में गुलाब पकड़ाए जाते हैं।" मैंने सोचा।

वैसे एग्जीक्यूटिव क्लास में ज्यादातर अभिजात्य वर्ग के लोग प्रतीत हो रहे थे। कोच में ज्यादातर शांति ही थी।  लोग धीरे-धीरे बात कर रहे थे। तभी नाश्ते का समय हो गया। इसीलिए चाय कॉफी और दूसरे खाने पीने के समान हमारे सामने आने लगे।हमने उनका पूरा मज़ा लिया।

 ट्रेन की खिड़की से जो नज़ारे दिखते हैं; वह तो लगभग हमेशा एक ही तरह के होते हैं। धान की फसल बड़ी-बड़ी हो गई थी। किसी किसी जगह तो धान पककर बिल्कुल सुनहरी हो चला था। और कटाई के लिए तैयार था। 

वैसे ट्रेन की खिड़की के पास बैठो तो ऐसा ही लगता है कि बाहर देखते ही जाओ; बस देखते ही जाओ। नजर हटाने का तो बिल्कुल मन नहीं करता। हां; झपकी आ जाए तो और बात है।

 बीच-बीच में चॉकलेट आदि के पैकेट बेचने वाले भी आ रहे थे रुद्रांश को बहुत मजे आ रहे थे क्योंकि उसे चॉकलेट पसंद भी है और उसके पापा चॉकलेट दिलवाने के लिए हमेशा तैयार भी रहते हैं।  दोपहर के लंच में ऑप्शंस थी। मुझे तो परांठे ही खाने थे। दक्षिण भारतीय खाने से शायद पेट तो भर जाता; पर मन पूरा पूरा न भर पाता। मतलब यह है कि क्षुधा तृप्ति का एहसास न हो पाता।

खाते पीते और गप्पे मारते हुए आखिर काठगोदाम स्टेशन भी आ गया। यही तो हमें उतरना था और वह उसे ट्रेन का आखरी पडाव भी था। तो वहां से उतर कर हमने टैक्सी ली। हमने नैनीताल में होटल स्टर्लिंग में पहले से ही बुकिंग कर ली थी। टैक्सी वाला बहुत चुस्त था। वह तुरंत हमें हमारे होटल में ले गया

 टैक्सी रुकी, तो वहां अभिवादन के लिए दो महिलाएं खड़ी थी। जिन्होंने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और बुरांश का शरबत पेश किया। बुरांश वहां के लोकल फूल होते हैं जिनका कि बहुत ही स्वादिष्ट शर्बत उन्होंने बना रखा था। हमें यह अच्छा लगा कि यहां के लोग कितनी आत्मीयता से मेहमानों का स्वागत-सत्कार करते हैं।

उन्होंने हमें कमरों की चाबियां दे दी और हमने वहां हमारा सामान ले जाकर रख दिया। हमने थोड़ी देर विश्राम किया। मैं तो थोड़ी देर लेट ही गई। लेकिन लेटने का मन नहीं कर रहा था। बाहर बहुत ही सुंदर दृश्य था। चारों तरफ पहाड़ थे और बादल तो नीचे-ऊपर घूम रहे थे। ऐसा लग रह लग रहा था कि पहाड़ और बादल आपस में आंख मिचौनी खेल रहे हैं। ऋचा ने कहा, "चलो नैना देवी के दर्शन कर आते हैं।"

 मैंने कहा, "मैं तो आराम करूंगी। तुम तीनों नैनीताल जाकर नैना देवी के दर्शन कर आओ।"

ये तीनों चले गए। मैं तो बालकोनी में बैठ गई। मैंने अपने लिए चाय मंगवाई और बहुत देर तक सामने का दृश्य निहारती रही। हमारा कमरा काफी ऊंचाई पर था। वहां से नीचे का बहुत सुंदर नज़ारा दिख रहा था। वहां के चौकीदारों ने नीचे थोड़ी बहुत सब्जियां भी उगा रखी थीं। उनके साथ एक उनका छोटा सा कुत्ता भी था। वह दुम हिलाता, इधर-उधर घूम रहा था। सब कुछ बहुत अच्छा लग रह लग रहा था। उन्होंने सीढ़ी नुमा खेती कर रखी थी। वे कभी नीचे से ऊपर जा रहे थे और कभी ऊपर से नीचे आ रहे थे।

 चाय पीते-पीते मैंने फोन पर महेश से भी बात की। वह मेरा सहकर्मी था जो कि उत्तराखंड का ही  निवासी था। उसने मुझे विस्तार से बताया कि मुझे किस-किस तरह क्या-क्या वहां देखना चाहिए। उसे वहां के बारे में भली प्रकार से सब मालूम था। क्योंकि वह वहीं रह चुका था और उसने पढ़ाई भी वहीं से की थी। उसने पूरे नैनीताल के बारे में अच्छे से बताया और जिम कॉर्बेट पार्क के बारे में भी बताया क्योंकि हम वहां भी जाने वाले थे।

इधर जब ये तीनों वापस आए तो बहुत ही खुश थे। वहां की एक मार्केट से इन्होंने शॉपिंग भी की। एक सुंदर सा शॉल और साथ में तीन-चार और चीज भी खरीद कर लाए थे। रुद्रांश तो खुशी से फूला नहीं समा रहा था। एक तो मौसम बढ़िया और उस पर बिना रोक-टोक के पूरी मस्ती; फिर और क्या चाहिए!

 हमने सोचा कि डिनर कमरे में नहीं मंगाएंगे; बल्कि डिनर के लिए होटल के रेस्टोरेंटे में ही चले जाएंगे। उनका मेन्यू दिल्ली के व्यंजनों से बहुत ही अलग था। हमने अंदाज से थोड़ा ही खाना मंगवाया; यह सोचकर कि पसंद आया, तो वही खाना फिर मंगवा लेंगे। खाना वास्तव में बहुत अच्छा था और हमने मन भर के खाना खाया।

सफर की थकान हो, और पेट भरा हुआ हो, तो तुरंत नींद आती है। हम भी अपने-अपने कमरों मे बिस्तर पर लेटते ही सो गए। मैं और ऋचा तो सो ही गए। लेकिन रुद्रांश और उत्कल ने अपने कमरे में टीवी पर क्रिकेट मैच देखा। वे देर से सोए।

सवेरे उठी तो हल्की-हल्की ठंडक हो चुकी थी। शाल ओढ़कर मैंने बाहर खिड़की में देखा तो बड़ा ही अद्भुत नजारा था। सवेरे का सूर्य उस हल्की-हल्की ठंड में बहुत भला प्रतीत हो रहा था। बादल सूर्य के ऊपर नहीं बल्कि हमारे पास थे। बड़ा मजा आ रहा था। पीछे सूर्य, आगे बादल और पहाड़; बहुत ही अद्भुत दृश्य था। ऋचा ने वेटर से चाय मंगवा ली। जब तक हम चाय पी कर चुके, तब तक रुद्राक्ष और उत्कल भी उठ चुके थे। 

 फिर हम सभी साथ-साथ बाहर घूमने के लिए निकल पड़े। सवेरे-सवेरे की नर्म धूप, पक्षियों की चहचहाहट, हल्की-हल्की ठंड और बिल्कुल शुद्ध हवा; सभी बहुत ही अनुपम लग रहा था। जीवन का असली आनंद तो यहीं था। थोड़ी बहुत सैर के बाद हम वापस आ गए। हमने होटल के रेस्टोरेंट में सवेरे के बफेट का आनंद लिया। वह होटल तो शानदार था ही; उसका खाना भी लाजवाब था। वहां के कर्मचारियों में बहुत शालीनता थी।

नहा धोकर हम नैना देवी के दर्शन के लिए चल पड़े। वहां से थोड़ी ही दूर पर नैनी झील थी; जहां कि नैना देवी का मंदिर है। संयोग की बात है; कि उस दिन वहां हवन का भी आयोजन था। भीड़ होने के बावजूद भी हमें बहुत अच्छे दर्शन हुए। मंदिर में दर्शन करने के पश्चात, हम वहां की लोकल मार्केट में सैर-सपाटे के लिए निकल गए। 

बहुत बड़ी मार्केट है वहां पर! वहां इतना सारा सामान था और इतना अच्छा लग रह लग रहा था कि समझ नहीं आ रहा था क्या खरीदें और क्या छोड़ें?  दिल कर रहा था सभी चीज खरीद ली जाएं। पर ऐसा तो हो नहीं सकता था। इसीलिए सर्दियों के कुछ कपड़े और कुछ सजावट का सामान खरीदा। साथ ही वहां के मशहूर मसाले तो लेने ही थे!

इतनी देर घूमने के बाद भूख तो लगती ही! वहां के एक लोकल रेस्टोरेंट में बैठकर हमने वड़ा और डोसा आर्डर किया। बहुत ही अच्छी प्रिपरेशन थी। खाने में मजा ही आ गया। वहीं पास की एक दुकान में बड़ी सुंदर-सुंदर मामबत्तियां थी।  वास्तव में वे मोमबत्ती तो लगी नहीं रही थी। मोम से उन्होंने सुंदर-सुंदर फल और रोजमर्रा इस्तेमाल करने वाली वस्तुएं और पशु पक्षी इत्यादि ऐसी ऐसी चीजें बना रखी थी; जो लग ही नहीं रहा था कि मोम की बनी हुई हैं। वे वास्तविक जान पड़ती थीं। उसमें से हमने कुछ संतरे, तरबूज की फांके और ऐसी चीजें लीं, जो कि बिल्कुल वास्तविक प्रतीत हो रहीं थीं। हमने सोचा कि यह गिफ्ट के तौर पर वे बहुत अच्छी रहेंगी।

नैनी बहुत ही सुंदर झील है। झील के पीछे की पर्वत श्रृंखला बहुत ही सुंदर लगती हैं। और झील में तैरती हुई नावों का तो कहना ही क्या! बिल्कुल ही ऐसा प्राकृतिक दृश्य है जैसे की चित्र में बना होता है। मैंने तो वहां बहुत सी फोटो खींची। वहां से हटने का मन ही नहीं कर रहा था। लेकिन हमें तो जिम कॉर्बेट पार्क भी जाना था। इसीलिए मजबूर होकर वहां से हम निकल पड़े।

पहाड़ों पर गोल-गोल घूमती हुई गाड़ियां जब चलती हैं; तब भी बड़ा आनंद आता है यद्यपि डर भी लगता है। लेकिन नज़ारा इतना खूबसूरत होता है कि सब डर निकल जाता है। ऊपर देखो, तो स्वच्छ आसमान पर्वत और बहते हुए झरने; और नीचे की तरफ देखो तो बहुत ही खूबसूरत घाटियां और नदियां।  झील चारों तरफ पहाड़ों पर बने हुए सुंदर मकान बहुत ही मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करते हैं। 

ड्राइवर हमें सबसे उंचे ऐसे स्थान पर ले गया; जहां से हम भारत की सबसे ऊंची चोटी को देख सकते थे। बहुत दूर से वह बर्फ से ढकी हुई चोटी बहुत ही सुंदर लग रही थी। उसने बताया कि जब बादल नहीं होते; तब यह बिल्कुल साफ नजर आती हैं। मन कर रहा था कि उस स्थान पर खड़े उसे देखते ही रहें और नजर न हटाएं। लेकिन अंधेरा ढलने वाला था और हमें जिम कॉर्बेट पार्क दिन ढलने से पहले ही पहुंच जाना था। रात होने पर जंगली जानवर भी सड़क पार करने के लिए आ जाते हैं। ड्राइवर ने बताया कि दिन-दिन में ही जाना उचित रहेगा। तो हम फुर्ती से कार में आ बैठे और ड्राइवर ने चुस्ती से गाड़ी चलाई और हमें जिम कॉर्बेट पार्क पहुंचा दिया।

 वहां का रिज़ॉर्ट तो कल्पना से ज्यादा सुंदर था। जो हमें कमरे मिले थे वह भी बहुत सुंदर ढंग से बने हुए थे। सांझ ढलने वाली थी और हमें भूख भी लग रही थी। हम रिजॉर्ट के ओपन रेस्टोरेंट में बैठ गए। वहां सामने पहाड़ थे और एक नदी भी बह रही थी। वहां के वेटर ने मैन्यू कार्ड लाकर दिया कि हमें क्या आर्डर करना है।  हम सबको गरमा गरम पकौड़ों का बहुत मन कर रहा था। हमने एक प्लेट पकौड़े और कॉफी का आर्डर दे दिया।

 वह पकौड़े और काॅफी लाया। पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट बने थे। हमने कहा, "एक प्लेट पकौड़े और ले आओ।"  

मन भर कर पकौड़े खाने के बाद हमने उसे बिल लाने को कहा। लेकिन वेटर ने कहा कि आज के दिन आप हमारे स्पेशल कस्टमर हैं। इसीलिए आपसे बिल नहीं लिया जाएगा। यह सुनकर तो हमारी प्रसन्नता द्विगुणित हो गई। क्योंकि इतने स्वादिष्ट पकौड़े और काॅफी; वह भी बिल्कुल फ्री! वास्तव में मुफ्त का मज़ा कुछ अलग ही होता है!

तभी वहां एक व्यक्ति आया। वह गिटार बजाने लगा और गाना भी गाने लगा। वह बहुत अच्छा गाना गा रहा था और गिटार भी अच्छा बजा रहा था। सामने नदी बह रही थी। लोग राफ्टिंग भी कर रहे थे। पीछे ऊंचे पहाड़ थे। सूरज ढलने को था। यह सारा दृश्य बहुत ही मनोरम लग रहा था। नैसर्गिक सुंदरता में मानवीय कलात्मकता का पुट वातावरण को बेजोड़ बना देता है।

अब हम अपने कमरों में जाने के लिए उठे। रेस्टोरेंट से कमरे तक का नजारा भी बहुत सुंदर था। ढेर से पेड़ पौधे, बीच में झूले और सुंदर सीढ़ियां; बहुत लुभावनी लग रही थी। वहां की हवा की भीनी-भीनी सुगंध भी मन को सम्मोहित करती प्रतीत हो रही थी।

कमरे में जाकर हमने कुछ देर टीवी देखा और आराम किया। उसके बाद हम रात को फिर उसी रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए गए। वहां का शेफ बहुत ही कुशल था। हम जो भी ऑर्डर दे रहे थे; वे सभी व्यंजन बड़े स्वादिष्ट बनाए गए थे। यद्यपि घर की तुलना में बाहर का खाना स्वादिष्ट हो, या जरूरी नहीं है। परन्तु वह शेफ तो घर के खाने से भी अधिक स्वादिष्ट; फिर भी  घर जैसा, खाना बना रहा था। खाने में वसा की मात्रा बहुत कम थी और मसालों का बिल्कुल सही अनुपात था।

मैं जब सुबह उठी, तो मैंने देखा कि ऋचा तो कमरे में नहीं है। फिर मैंने दूसरे कमरे में देखा, तो रुद्राक्ष भी अकेला सो रहा था। मैं समझ गई कि ऋचा और उत्कल सवेरे घूमने के लिए चले गए हैं। इतने सुंदर नज़ारे और शुद्ध हवा हो और नींद जल्दी खुल जाए; तो सैर करने का मन करता ही है। 

मैं भी नित्य कर्म से निपटी और घूमने के लिए तैयार हो गई। जब ऋचा और उत्कल वापस आए ; तो मैं रुद्रांश को लेकर घूमने के लिए निकल पड़ी। हम पूरे रिसोर्ट में घूमे। रुद्रांश ने तो खूब झूले झूले। बड़ा मज़ा आया। वहां पेड़ों के नीचे बहुत से कौन्स बिखरे पड़े थे। हमने बहुत से कौन्स इकट्ठे किए और रंग-बिरंगे तरह-तरह पत्थर भी! छोटे छोटे पत्थर भी वास्तव में बहुत सुंदर दिख रहे थे। रुद्रांश कह रहा था, "मैं अपने फ्रेंड्स को यह सभी गिफ्ट के तौर पर बांट दूंगा।"

हम वापस आए तो ऋचा ने कहा, "जल्दी-जल्दी ब्रेकफास्ट कर लो मम्मी! हमें सफ़ारी पर भी जाना है।"

 ब्रेकफास्ट के बाद जब हम वापिस आए, तो सफारी गाड़ी तैयार खड़ी थी। उस पर चढ़ने में मुझे ज्यादा दिक्कत नहीं आई। यद्यपि वह काफी ऊंची थी। अब हम सफारी के सफर के लिए तैयार थे। सफ़ारी के सफर में सभी को यही उत्सुकता होती है कि कोई ना कोई शेर जरूर देखने को मिल जाएगा।

 हमारे साथ जो गाइड था वह बहुत बातूनी था। वह कह रहा था कि लोग इसी आशा में सफारी करते हैं कि शायद शेर देखने को मिलेगा ही मिलेगा। लेकिन अगर शेर के पंजों के निशान भी देखने को मिल जाए वह भी बहुत बड़ी किस्मत होती है। वह कह रहा था कि अगर बिल्कुल प्रभात में सफारी करो, तो पंजे के निशान भी देखने को मिल जाते हैं। लेकिन दिन की सफारी में शेर अक्सर छिपे हुए बैठे रहते हैं और पंजों के निशान तो गाड़ी के टायरों से मिट ही जाते हैं। फिर भी अगर किस्मत है तो शायद कोई शेर देखने को मिल ही जाए। 

वह हमें सभी तरह के पेड़ों के बारे में बता रहा था। पक्षियों की आवाजों के बारे में भी और हिरण भी दिखा रहा था जो कि बहुत दूरी पर बैठे थे। शेर की आहट पाने पर, पक्षियों के व्यवहार के परिवर्तन के बारे में भी वह बता रहा था। उसने यह भी बताया कि शेर की ऊंची दहाड़ सुनने से ही घबराहट हो सकती है। उसने पेड़ के तने के ऊपर पंजे से खुरची हुई छाल दिखाई। उसने बताया कि यह उसने अपना बाउंड्री का निशान बनाया है। शेर जगह जगह पेड़ों के नीचे इसी तरह पंजों से  खुरच खुरच कर अपने निशान बनाते हैं।

वहां पर एक पेड़ का ठूंठ था।  गाइड ने बताया कि यह शेर का सिंहासन है। यहां पर आकर वह बैठता है। मैं बहुत हैरान हुई। ऋचा ने कहा, "ये मजाक कर रहे हैं।" वह भी हंस पड़ा। उसने यह भी कहा कि शेरनियों के नाखून जल्दी बढ़ते हैं। इसीलिए वह ज्यादा पंजों को घिसती है। हो सकता है लेडिस के भी नाखून ज्यादा बढ़ते हों। तभी तो उन्हें नाखून तराशने की अधिक आवश्यकता होती है! ऋचा मुस्कुराई। मैं भी समझ गई कि वह मज़ाक ही कर रहा है।

एक जगह गाड़ी रुकवा कर गाइड ने बड़े ध्यान से आवाजें सुनीं। उसने कहा, "यहां पर बार्किंग डीयर आवाज़ निकाल रहा है। हो सकता है, यहां शेर हो!" वह आवाज हिरण की आवाज जैसी नहीं लग रही थी।  कुछ अजीब सी आवाज ही लग रही थी। थोड़ी बहुत कुत्ते से भी मिलती थी। शायद इसीलिए इस हिरण का नाम "बार्किंग डियर" था। आवाज बहुत करुणा भरी थी। या तो वह हिरण  घायल होकर पड़ा हुआ था। या फिर शेर ने उसे पकड़ा हुआ था।

 हमारे आसपास भी पांच-छः सफारी गाड़ियां वहां आकर रुक गई थीं। हमने सोचा अब तो शायद शेर देखने को मिल ही जाएगा। पर उस हिरण की आवाज काफी देर तक लगातार आती रही। हमें शेर दिखाई नहीं दिया। गाइड ने कहा, "हो सकता है वह चुपचाप उसको दूर ले जाने की करने की कोशिश कर रहा हो और वह हिरण घायल होकर शायद ऐसी आवाज निकल रहा है। पर क्योंकि हम सब लोग यहां पर हैं तो शेर छुपा ही रहेगा।" फिर धीरे-धीरे सभी सफारी गाड़ियां चल पड़ी। लेकिन शेर के दर्शन नहीं होने थे; तो नहीं हुए। शेर आख़िर राजा होता है, जंगल का! उसके दर्शन सुलभ हो जाएँ, तो वह राजा किस बात का?

 इसके बाद हमने वहीं पर जिम कॉर्बेट म्यूजियम देखा; जो कि बहुत ही लाजवाब  था। वास्तविक मृत शेर वहां पर अलग शीशे के बॉक्स में बंद थे। वे बिल्कुल जीवित ही जान पडते थे। उनके बारे में यह भी लिखा हुआ था कि वे शेर किस तरह से मारे गए या फिर प्राकृतिक तौर पर स्वयं मर गए। इसके बाद म्यूजियम में उन्होंने बड़ी सुंदर फिल्म दिखाई; जिसमें कि तरह-तरह के जानवरों की जंगल में विभिन्न गतिविधियां दिखाई गई। वह फिल्म भी बड़ी रोचक थी।

 इसके बाद जो उन्होंने दिखाया वह तो अद्वितीय था। 3D फिल्म के माध्यम से बिल्कुल ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे हम भी उसी जंगल में शामिल हों। हिरण आ जा रहे थे शेर भी आ रहे थे। जब हम हाथ से उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे थे तो वह रुक भी रहे थे। बहुत अच्छा इफेक्ट था। एक बार तो एक सांप एकदम पेड़ की डाली से हमारी तरफ आ गया। हमें ऐसा लगा जैसे यह हमारे ऊपर ही बैठ जाएगा। परन्तु वह तो 3D फिल्म थी।

 वहां म्यूजियम में जिम कॉर्बेट के बारे में भी बहुत जीवंत मूर्तियां  बनाकर वास्तविकता का परिचय देने की चेष्टा की गई थी। वहां पर पुस्तकें भी मिल रही थी जो कि जिम कॉर्बेट के जीवन पर आधारित थीं। और कुछ जंगली जानवरों पर हमने एक दो पुस्तकें भी वहां से खरीदीं।

अब हम थक गए थे। वापस अपने रिसोर्ट में आए। कमरे में जाने की बजाय सीधा रेस्टोरेंट की तरफ चल दिए। वहां हमने मज़ेदार खाना खाया। और सैर करते-करते वापिस अपने कमरे की ओर आने लगे। एक जगह गेमिंग रूम था। रुद्रांश ने कहा, "इस रूम में जरूर जाएंगे।"

 वहां तरह-तरह के गेम्स रखे हुए थे। मैंने भी कुछ-कुछ गेम्स खेलने की कोशिश की। रुद्रांश तो वहां सब तरह के गेम्स ही खेल कर देख रहा था। तीरंदाजी, टेबल टेनिस इत्यादि खेल वह अपने पापा के साथ खेले जा रहा था। उसका मन ही नहीं था कि वहां से वापस आए। पर हमें तो वापस आकर सोना भी था।

बच्चों की यह विशेष बात होती है कि उन्हें थकावट महसूस ही नहीं होती। और यदि थकावट होती भी है तो बहुत जल्दी उतर जाती है। लेकिन बड़ों के साथ ऐसा नहीं होता। थकावट उतारने के लिए निश्चित टाइम पर सोना बहुत जरूरी होता है।

अगले दिन दोपहर तक हमें अपना पूरा सामान पैक कर लेना था। लेकिन तब तक का पूरा टाइम हमारे पास बचा हुआ था; रिसोर्ट में घूमने के लिए या कहीं और भी जाने के लिए।

 हमने निश्चय किया कि कहीं और जाना भी है तो रिजॉर्ट को छोड़ने के बाद भी जा सकते हैं इसीलिए पूरी रिजॉर्ट में अच्छी तरह घूम लिया जाए। वहां का वातावरण और दृश्य बड़े ही मनमोहक थे। इसीलिए पूरी रिजॉर्ट घूमने के बाद हम रेस्टोरेंट में लंच के लिए चले गए। 

शेफ ने हमें बहुत ही बढ़िया लंच खिलाया। मेरा उस शेफ से मिलने का भी बहुत मन था। उन्होंने हमसे पूछा कि आपको हमारा खाना कैसा लगा? तो हमने कहा कि इतना स्वादिष्ट खाना तो सचमुच बहुत अच्छा शेफ  ही बना सकता है। मैंने कहा, "मुझे तो उसे शेफ से मिलना है।"

 उन लोगों ने कहा, "ठीक है। आप बैठिए। हम अभी शेफ को  बुलाकर लाते हैं।"

 वे लोग शेफ को बुलाकर ले आए। मैंने कहा, "बेटा आपने बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाया। मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करना चाहती हूं।"

 वह बहुत ही खुश हुआ। उसने हाथ जोड़कर मेरी प्रशंसा स्वीकार की। इसके बाद उन्होंने उत्कल से कहा, "हम आपका इंटरव्यू लेना चाहते हैं। हम यह वीडियो अपनी वेबसाइट पर भी डालेंगे। आपको कोई एतराज तो नहीं।"

 उत्कल ने स्वीकृति दे दी। उसके बाद उन्होंने उत्कल से भी अपने रिसोर्ट के बारे में अपने विचार प्रस्तुत करने को कहा। उन्होंने उस वार्तालाप का एक वीडियो बना लिया। वे लोग हमसे बहुत ही खुश थे।

 हमने अपना सामान पैक किया और स्टेशन जाने के लिए टैक्सी बुला ली। हमें रामनगर स्टेशन जाना था। लेकिन रास्ते में भी एक दो दर्शनीय स्थल थे। हमने टैक्सी ड्राइवर को कह दिया कि ये जगहें दिखाते हुए ही हमें स्टेशन ले जाना। वह भी तैयार हो गया। उसने रास्ते में हमें एक प्रसिद्ध प्रपात दिखाया। पर उसने कहा कि अभी आप यहां पर उतरेंगे तो समय अधिक लग जाएगा। इसीलिए वह झरना हमने दूर से ही देख लिया।

अभी हम आगे बढ़ ही रहे थे। सांझ ढल चुकी थी। तभी ऐसा लगा कि सड़क के किनारे का रिफ्लेक्टर जोर-जोर से हिल रहा है। मैंने आसपास देखा हवा नहीं चल रही थी। मैंने कहा, "बिना हवा चले, सड़क के किनारे का, ये इतना मज़बूत रिफ्लेक्टर जोर-जोर से क्यों हिल रहा है?"

  ड्राइवर ने कहा, "आप ध्यान से देखिए। उसके पीछे हाथियों का झुंड है। एक तरुण हाथी उस रिफ्लेक्टर को पड़कर जोर-जोर से हिला रहा है। वह उससे खेल रहा है।  उसे उखाड़ना चाहता है।" 

 मैंने गौर से देखा कि वहां पीछे हाथियों का झुंड था। उस सांझ के छुटपुटे ने अपने ही वर्ण के उन हाथियों को, छिपा सा लिया था। वे हाथी शायद सड़क पार करना चाहते थे। उस ड्राइवर ने पूछा, "यहां रुकना है? हम इस झुंड को अच्छे से देखें क्या?"

  लेकिन मैंने सुना था कि वहां हाथी पीछे भी पड़ जाते हैं। मुझे लगा कि यहां रुकना ठीक नहीं। फिर रात भी तो होने वाली है और सड़कें घुमावदार हैं। 

मैंने ड्राइवर से कहा, "नहीं! नहीं! आप जल्दी ही यहां से ले चलें।" 

बाद में रुद्रांश और ऋचा ने कहा, "आपने इतनी फटाफट वहां से टैक्सी क्यों भगा ली? हम थोड़ी देर हाथियों को भी देख लेते।"

मैंने कहा, "मुझे यह उचित नहीं जान पड़ा। कहीं हाथी हमारे पीछे पड़ जाते तो? वहां के तो रास्ते भी घुमावदार होते हैं। टैक्सी भगाने भी मुश्किल हो जाती।"

 परन्तु टैक्सी वाला कह रहा था कि ऐसी बात नहीं है। हम थोड़ी देर तो हाथियों को देख ही सकते थे।

ज़ोरों की भूख लग रही थी। इसीलिए हम रास्ते के एक रेस्टोरेंट में रुक गए। पूरा रेस्टोरेंट खाली पड़ा था। उस रेस्टोरेंट में, कम से कम बीस टेबल्स तो होंगी ही! उनमें से एक टेबल पर हम सभी बैठ गए। तभी वहां का वेटर मेन्यू कार्ड लेकर आया।  वह वेटर था या मालिक; यह तो पता नहीं। पर वह अकेला ही उस रेस्टोरेंट में काम कर रहा था। हमने दाल मखनी और नान का ऑर्डर दे दिया। उसके बाद हम प्रतीक्षा में बैठ गए। 

 हमें लगा कि उसने पहले हमारे लिए दाल मखनी कुकर में बनाई। उसके बाद गरम-गरम नान बनाकर; वह बड़ी देर बाद हमारे लिए खाना लेकर आया। चलो, यह तो अच्छा हुआ वह खाना बिल्कुल ताज़ा बना हुआ था। वरना रेस्टोरेंट में तो अक्सर बासी खाना ही मिलता है। 

खाना खाने के बाद हमें रामनगर स्टेशन पर जाना था।  लेकिन अभी तो काफी समय बचा था। ड्राइवर ने बताया कि यहां एक साल पहले बहुत बड़ा हनुमान मंदिर बना है। हमने सोचा क्यों न हनुमान जी के दर्शन कर लिए जाएं। वह हमें हनुमान मंदिर पर ले गया। वास्तव में बहुत ही शानदार हनुमान मंदिर बना हुआ था। हम बिल्कुल ठीक समय पर पहुंचे; क्योंकि वह संध्या आरती का समय था। भगवान के दर्शन भी हो गए और आरती का प्रसाद भी मिला। 

स्टेशन की तरफ जाते हुए हम सभी बहुत प्रसन्न थे। स्टेशन पर गए तो वहां बहुत कम भीड़ थी। रामनगर के स्टेशन पर कम ही भीड़ होती है। ट्रेन बिल्कुल टाइम पर थी। हम ट्रेन में चढ़े और अपना सामान संभाल कर रख दिया। 

सोने का समय हो रहा था। तभी कुछ रेल कर्मचारी चद्दरें, कंबल, और तकिये लेकर आते हुए दिखाई दिए। नींद तो आ ही रही थी। हमने अपनी सीट पर चादर बिछाई; तकिया लगाया, और कंबल ओढ़ कर सो गए। मुझे तो लेटते ही नींद आ गई थी। और पूरी रात मैं सोती ही रही।

 सवेरे उठे, तो हमारा स्टेशन आ गया था। स्टेशन पर उतरकर चटपट टैक्सी ली और वापस घर आ पहुंचे। मैं तो पूरी रात सोने के बाद बिल्कुल तरोताज़ा थी। इसीलिए मैंने झटपट आलू उबाले और आलू के परांठे बना लिए। 

रिचा, रुद्रांश और उत्कल तो सो गए थे। उनकी नींद रात को पूरी नहीं हो पाई थी। दो घंटे बाद जब वे सो कर उठे तो उन्हें गरमा-गरम आलू के परांठे खाने को मिले। सुबह-सुबह इतना बढ़िया ब्रेकफास्ट मिल जाए और वह भी घर में बना हुआ; तो कितना मज़ा आता है! बढ़िया नींद के बाद, गरम-गरम ब्रेकफास्ट खाकर, उनकी भी सारी थकान उतर गई। 

तो इस तरह पूरा हुआ, हमारा सुखद, सुहाना सफ़र!




Friday, June 20, 2025

त्वचा और एलोवेरा

 त्वचा पर पिंपल्स, रिंकल्स, acne, खारिश या rashes हैं या त्वचा काली पड़ गई है। गर्दन,कोहनी, उंगलियां या हाथ काले हो जाने पर, इन सभी का एक ही उपचार है; एलोवेरा!

 एलोवेरा के गूदे को बादाम रोगन, तिल का तेल, नारियल का तेल; इनमें से किसी एक तेल में अच्छी तरह मिला लें। जब यह एक पेस्ट की तरह बन जाए तो इसे प्रभावित स्थान पर लगा लें।

चेहरे पर या बालों में अगर खुश्की या खुजली है या फिर रूसी हो गई है; तब भी एलोवेरा को तेल में अच्छी तरह मिलाकर बालों में लगाने से वह ठीक हो जाती है।

कायाकल्प तेल और एलोवेरा मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से खाज, खुजली, पाइल्स, फिशर, फिस्टुला आदि समस्याएं भी ठीक हो जाती हैं।

कैसी विडंबना?

 जेल में मुलाकात का वक्त हो गया था। जय सिंह अपने मित्र से मिलने वहां गए थे। उनके मित्र नरेश और उसकी पत्नी, दोनों ही जेल में थे।

 जब मिलने का समय हुआ तो जयसिंह उनके पास गए। उन्होंने कहा, "बहुत दुःख की बात है कि आपको यहां जेल आना पड़ा। परन्तु मैं तो हैरान हूं कि ऐसा क्या हो गया कि आप जेल के अंदर बंद हो गए?"

 नरेश की पत्नी रीमा की आंख में तो आंसू ही आ गए। वह कुछ बोल न पाई। लेकिन नरेश ने बताया कि यह सब उनकी गलती नहीं है। वे तो बिना किसी कसूर के ही जेल में बंद हो गए हैं।

 जय सिंह बोले, "आखिर ऐसा क्या हुआ? कुछ तो आपने किया ही होगा, जिसकी वजह से आप जेल में बंद हो गए हैं। मुझे तो जब पता चला, तभी से मैं सोच रहा हूं कि आपसे मिलकर पूछूं कि आखिर बात क्या हुई?"

 नरेश बड़े दुःखी मन से बोले, "आप तो बहुत सालों से हमसे मिल नहीं पाए। इसीलिए आपको कुछ पता ही नहीं है। दो साल पहले हमने अपने बेटे का विवाह निश्चित किया था। वह लड़की बड़ी सुंदर और सुशील थी। लेकिन मेरे बेटे ने किसी और लड़की को पसंद किया हुआ था। वह हमारी बिरादरी की भी नहीं थी; इसीलिए हम उसे अपने बेटे का विवाह नहीं करना चाहते थे। पर क्योंकि हमारा बेटा उससे ही शादी करना चाहता था, इसीलिए उसकी खुशी के लिए हमने उस लड़की से अपने बेटे की शादी कर दी।

 कुछ समय तो सब ठीक-ठाक रहा। लेकिन तीन-चार महीने के बाद ही वह लड़की हमारे बेटे से लड़ने लगी। हमारा बेटा भी गुस्से के स्वभाव वाला है। वह भी खूब गुस्सा करता। मेरे बेटे की और उसकी बहू की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। दोनों ही लड़ते रहते थे। हमने सोचा कि यह हमारे सामने लड़ते होंगे। हम यहां से चले जाएंगे तो शायद उनकी लड़ाई खत्म हो जाएगी।  इसीलिए हमने निश्चय किया कि उनको वह मकान देकर हम दूसरे मकान में शिफ्ट हो जाते हैं। 

हम दूसरे मकान में रहने के लिए चले गए। लेकिन उनकी लड़ाइयां खत्म न हुई। लड़की ने मेरे बेटे पर केस कर दिया। उसने मेरे बेटे पर तो केस किया ही साथ में हम दोनों को भी दहेज मांगने की आरोप में गिरफ्तार करवा दिया। 

अब मेरा बेटा अलग जेल में बंद है; क्योंकि उसके ऊपर तो उस लड़की ने हत्या की साजिश का आरोप भी लगा दिया है। लेकिन मेरे और मेरी पत्नी के ऊपर प्रताड़ना का आरोप लगाया गया है। उस लड़की का कहना है कि दहेज के लालच में हमने अपनी बहू को बहुत प्रताड़ित किया।" 

इसके बाद में नरेश कुछ देर चुप रहा। फिर उसने कहा, "क्या करूं,जय सिंह? मैं और मेरी पत्नी तो चाहते भी नहीं थे कि हमारा बेटा उस लड़की से शादी करे। यह सब भाग्य का खेल है कि बच्चे की मर्जी से शादी करवाने के बाद भी हमें यह परिणाम देखना पड़ा। अब तुम ही बताओ जय सिंह भैया, मेरा क्या कसूर है?"

 जेल में मिलने का समय समाप्त हो चुका था। जय सिंह जेल से वापस आते समय यही सोच रहा था कि नरेश बिल्कुल निर्दोष होते हुए भी भाग्य की कठपुतली बना हुआ है। यह तो हास्यास्पद हो गया कि जिस लड़की से वह अपने बेटे की शादी कराना भी नहीं चाहता था; उसी की वजह से वह स्वयं आज जेल में बंद है। यह कैसी विडंबना है?


Saturday, June 14, 2025

मॉक ड्रिल

  विद्यालय की असेंबली में घोषणा हो चुकी थी कि आज सायरन बजेगे और सभी को निर्देशानुसार मॉक ड्रिल का अभ्यास करना है। यह युद्ध के पहले का पूर्व अभ्यास था।

 सभी सभी विद्यार्थी पूरी तरह से तैयार थे। अचानक सायरन बज उठा। उस समय अध्यापिका कक्षा में पढ़ा रही थी। एकदम सभी विद्यार्थी कान में अंगुली लगाकर अपने अपने डेस्क के नीचे जा छिपे। एक अध्यापक इन बच्चों की फोटो खींच रहा था अंश बोला, "यार! जब युद्ध का सायरन बजेगा, तो क्या यह फोटो खींचेंगे?"

 दूसरा विद्यार्थी हंसने लगा। तभी अध्यापिका ने उन्हें डांट लगाई।  पार्थ ने कहा, "असली सायरन बजेगा तो क्या यह अध्यापिका इसी तरह कुर्सी पर बैठी रहेंगी?"

 वह धीरे-धीरे बोल रहा था और साथ बैठा रुद्रांश हंस रहा था।  वे दोनों कान में उंगली लगाए, चुपचाप एक दूसरे को देख कर हंस रहे थे। साथ में बैठा हुआ अंश तो इतना डर गया था कि उसने बस्ते के अंदर अपना मुंह छुपा कर ज़िप बंद कर ली थी।

 एक बच्चा दोनों डेस्कों की लाइनों के बीच में लेट गया था। पीटी टीचर ने उसे डांट लगाकर डेस्क के नीचे किया।  सभी बच्चे नीचे बैठे-बैठे बोर हो चुके थे; और मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। रुद्रांश ने कहा, "यार पार्थ! बड़ी बोरियत हो रही है। तेरे पास कुछ है क्या?"

  पार्थ ने जेब से पॉपकॉर्न निकाले और वे दोनों चुपके-चुपके पॉपकॉर्न खाने लगे।  मॉक ड्रिल लंबी खिंच गई थी।  विराज  डेस्क के नीचे के नीचे झपकी ले रहा था। एक बच्चे ने अपने बैग में से सभी पुस्तक निकालकर इधर-उधर फेंक दी। उसने कहा कि हमला होने पर यह पुस्तक भी हमले में जल जाएगी और पढ़नी नहीं पड़ेगी। 

तभी मॉक ड्रिल समाप्ति की घंटी बज गई। अध्यापिका ने सभी बच्चों को कहा, "मॉक ड्रिल खत्म हो गई है। अब सभी बच्चे अपने-अपने डेस्क पर बैठ जाओ।"

 पार्थ और रुद्रांश गप्पे मारते हुए, पॉपकॉर्न खाने में इतने मग्न थे कि उन्हें कुछ सुनाई ही नहीं दिया। वे बड़े मज़े में डेस्क के नीचे बैठे, पॉपकॉर्न खाए जा रहे थे।  टीचर ने दोनों बच्चों को कान पकड़कर बाहर निकाला और खूब डांट लगाई। यह देखकर कक्षा के सभी बच्चों को बड़ा मजा आया। 

Wednesday, June 11, 2025

पंक्चर वाली सिंहनी

 गिर में देवलिया सफारी पार्क है। यहां पर एक सिंहनी अचानक हमला करती है। किसी शिकार पर नहीं, बल्कि रबड़ के टायर पर!

 जी हां! इसने, इस अद्भुत कला में महारथ हासिल कर ली है। वह रबड़ के टायर में अपने पंजे का नाखून घुसा कर उसे फुस्स कर देती है।  

जैसे ही यहां पर कोई सफारी गाड़ी खड़ी दिखाई देती है तो वह उसके चारों तरफ पहले सूंघती है और फिर चुपचाप, उसके टायर को अपने पैने नाखून घुसा कर फ्लैट कर देती है। इसीलिए इस सिंहनी का नाम "पंक्चर वाली सिंहनी" पड़ गया है। 

जंगल के अधिकारी बताते हैं कि वह शायद टायर को सूंघकर अंदाज़ा लगाती है कि कहीं उस पर, शहर के कुत्तों या किसी अन्य पशु की गन्ध तो नहीं? टायर पर लगी ऐसी गन्ध को, वह किसी अन्य जानवर द्वारा अपने क्षेत्र की सीमा का उल्लंघन या अतिक्रमण मानती है। ऐसा पाने पर, वह उत्तेजित होकर, टायर को पंजों से नोच देती है। 

वह रोज ऐसा नहीं करती। परन्तु कभी-कभी खड़ी हुई सफारी गाड़ियों के टायर पंक्चर हो जाते हैं। जब भी कोई टायर पंक्चर हुआ मिलता है, तो सब समझ जाते हैं कि यह किसने किया है? उसी "पंक्चर वाली सिंहनी" ने!

 वही तो है असली खुराफाती शातिर!

Tuesday, June 10, 2025

बंदर और सांप

 कसौली जाते समय रास्ते में एक छोटी सी दुकान दिखाई पड़ी जिसमें एक दुकानदार सांप को लहरा रहा था; जिसने अपना फन खड़ा किया हुआ था। वह बिल्कुल जिंदा सांप लग रह लग रहा था। इस दुकान के पास जाकर हमने देखा कि वह सांप लकड़ी के छोटे-छोटे गोलाकार टुकड़ों से बनाया गया है। 

उसकी पूंछ, धड़ और सांप का फन, इतनी सुंदर ढंग से बनाए गए थे कि वह वास्तविक सांप लग रह लग रहा था। अतः हमने सोचा कि इस सांप को खरीद ही लिया जाए। दुकानदार को पैसे देकर हमने वह सांप पैक करने के लिए कहा। उसके पास डिब्बे वगैरह तो थे नहीं; इसीलिए उसने एक अखबार के बड़े से कागज में सांप को रखा और उसे लपेटकर हमें पकड़ा दिया।

 आगे चले तो पेड़ों के ऊपर बहुत सारे बंदर बैठे हुए थे। एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलांगे लगा रहे थे। 

अचानक एक बंदर हमारे पास आया और वह पैकेट झपटकर ले गया, जिसके अंदर सांप था। जब बंदर ने पैकेट छीना तो एकदम झटका महसूस हुआ। लगा कि क्या हो रहा है? पर दूसरे ही क्षण एक बंदर को पैकेट हाथ में लिए पेड़ पर बैठे हुए पाया।  यह सब अकस्मात् ही हो गया।

 वह पैकेट लेकर ऊपर पेड़ पर जाकर बैठ गया। उसने सोचा होगा कि शायद इसमें खाने का समान है। यह सोचकर उसने पैकेट को खोला। 

 जैसे ही उसने पैकेट खोला तो उसे एकदम सांप दिखाई दिया। वह इतना वास्तविक सांप लग रह लग रहा था कि वह बंदर एकदम घबरा गया और पैकेट फेंक कर और वहां से भाग खड़ा हुआ। 

सांप पेड़ के नीचे आकर गिर गया। यह सब देखकर हमें बड़ी हंसी आई; क्योंकि बंदर के चेहरे पर वास्तविक भय था। उसके हाव-भाव से लग लग रहा था कि वह कितना घबरा गया है! 

बंदर ने भी सांप को वास्तविक समझ लिया था, यह सोचकर हमें बड़ा मजा आया।