प्रदीप और ओमपाल को लगातार खांसी आ रही थी। बार-बार खांसी आने से वे दोनों परेशान हो रहे थे। आजकल कोरोना संक्रमण भी बहुत बढ़ गया है। इसीलिए मैंने सोचा कि उनकी खांसी किसी प्रकार रुक जाए तो अच्छा होगा।
वास्तव में घर में रंग रोगन का काम हो रहा था और यह दोनों कारीगर बर्जर कंपनी से आए हुए थे। यह दोनों बहुत सुंदरता से घर को पेंट करने में लगे हुए थे। बिल्कुल मौन रहकर सधे हुए हाथों से वे निरंतर कार्यरत थे। लेकिन उनकी खांसी उन्हें बहुत परेशान कर रही थी।
मेरे पास मुलेठी का पिसा हुआ पाउडर रखा था। उसमें थोड़े बहुत नन्हे नन्हे तिनके थे। और बाकी पाउडर के रूप में मुलेठी पिसी हुई रखी थी। मैंने थोड़ा सा पाउडर, करीब चुटकी भर, ओमपाल को दिया। मैंने उसे पाउडर को देते हुए कहा कि यह चूसने से तुम्हारी खांसी ठीक हो जाएगी।
ओमपाल ने हाथ बढ़ाकर हथेली पर थोड़ा सा पाउडर ले लिया और दूसरे हाथ की उंगलियों से उसे टक टक करके सिर्फ तिनके के मुंह में रखे और बाकी पाउडर झाड़कर फेंक दिया। मुझे बहुत हंसी आई और मैं हैरान भी हुई। मैंने कहा, "यह क्या किया? असली दवाई तो इस पिसे हुए पाउडर में ही है।"
प्रदीप को भी हंसी आ गई। उसने कहा, "यह खैनी खाता है। खैनी को हथेली पर रखता है। दूसरे हाथ से उसे दो-तीन बार ठक-ठक कर तिनके मुंह में रख लेता है और बाकी चूना झाड़ देता है। इसीलिए इसने मुलेठी के पाउडर को भी इसी तरह का समझ लिया। और सिर्फ तिनके मुंह में डाल लिए।"
मुझे हंसी आ रही थी। मैंने कहा, "प्रदीप! तुम्हें पता है यह मुलेठी क्या चीज है?"
उसने कहा, "हां। मैं जानता हूं। मुझे पहले भी किसी ने यह दी थी और इससे मेरी खांसी रुक गई थी। मुझे पता है कि इसे पूरा चुटकी भर मुंह में ही डालना होता है। सिर्फ तिनके नहीं।"
मैंने प्रदीप को भी चुटकी भर मुलेठी का चूरा दिया क्योंकि उसे भी तो खांसी आ रही थी। लेकिन ओमपाल ने मुलेठी के चूरे के साथ जो किया वह देखकर तो हंसी रुक ही नहीं रही थी। अब तो ओमपाल भी सब कुछ समझता हुआ मुस्कुरा रहा था।
No comments:
Post a Comment