सड़क के उस पार एक किरयाने की अच्छी सी दुकान है । घर की रोज़मर्रा की सभी ज़रूरतों का सामान वहाँ से मुहैया हो जाता है । दूध दही से लेकर मसाला आटा और बच्चों के लिए चॉकलेट बिस्कुट इत्यादि हर चीज़ वहाँ मिलती है । वहाँ जो महिला सामान देती हैं ; वे बहुत भली सी लगती हैं मुझे ! बिलकुल सरल स्वभाव है उनका। उनसे प्रतिदिन दूध तो लाना ही होता है तो साथ में कुछ गपशप भी हो जाती है।
एक दिन बड़ी परेशान सी लग रहीं थीं। मैं उन्हें भाभीजी कहकर बुलाती हूँ । मैंने कहा ," भाभीजी! क्या बात है ? कुछ परेशान हो।"
वे बोलीं ,"हाँ । देखो ये दीवारों के साथ जो ढेर सारी झुग्गियाँ फैली हुई हैं; ये सिरदर्दी का कारण हैं। कितनी गन्दगी होती है इनकी वजह से ! पूरी सड़क घेरी हुई है । ट्रैफिक भी आराम से नहीं आ जा सकता । नहीं तो हमारी दुकान और अधिक चले । पता नहीं, कब हटेंगी ये झुग्गियाँ ?"
मैं भी उनकी बात से सहमत थी । हॉउसिंग सोसाइटी की दीवारों के साथ लगी हुई झुग्गियों की वजह से बाहर मुख्य सड़क पर जाना आना कठिन था । और मेट्रो स्टेशन तो घूम कर पूरा चक्कर लगाकर रिक्शा पर ही जाना पड़ता था । झुग्गियाँ न होती तो मेट्रो स्टेशन की दूरी पांच मिनट की ही थी। वाकई थी तो झुग्गियाँ सिरदर्दी ही!
एक दिन अचानक खबर आई कि सभी झुग्गी निवासियों को झुग्गी के बदले मकान मिल रहे हैं। उस दिन मैं दूध लेने गई तो भाभीजी का चेहरा खिला हुआ था । खुश होकर वे बोली," अब तो झुग्गियाँ हट जाएंगी । सड़क चौड़ी भी हो जाएगी और साफ सुथरी भी ।" मैंने भी स्वीकृति में सिर हिलाया। वे ठीक कह रही थी।
और सचमुच एक दिन बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से शाम तक सारी झुग्गियाँ टूट गई। वे लोग अपनी सारी ईंटें इत्यादि भी उठा ले गए और नए मकानों में चले गए। सभी लोग ख़ुशी ख़ुशी एक दूसरे को बधाई देने लगे । भाभीजी तो ख़ुशी से फूला नहीं समा रही थी। मैं भी बहुत खुशी ख़ुशी उनसे दूध लेकर आई।
आज मैं उनसे दूध लेने गई तो भाभीजी बहुत उदास थीं। मैंने उनकी उदासी का कारण पूछा तो वे बोलीं," इस बार तो महीने की कमाई आधी ही रह गई । जब कारण का पता लगाया तो मालूम हुआ कि झुग्गियों में रहने वाले बच्चे हमारी दूकान से खूब टॉफियाँ , चिप्स , ब्रैड, दालें, आटा मसाले आदि ले जाते थे। हमने तो कभी सोचा ही नहीं था कि झुग्गियों की वजह से हमारी इतनी आमदनी है। मैं तो इन झुग्गी वालों को सिरदर्दी का कारण समझती थी।"
मैंने हँसकर कहा," परन्तु वे तो आपकी समृद्धि का कारण निकले!"
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विलुप्त होते दौर में - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteवाह ! हर सच्चाई के दो पहलू होते हैं!
ReplyDeleteवाह ! हर सच्चाई के दो पहलू होते हैं!
ReplyDeleteविचारोत्तेजक लेख है| दृष्टि की सूक्ष्मता के लिए आपको हार्दिक बधाई|
ReplyDelete- http://arvindanabha.blogspot.in/
मुझे प्रसन्नता हुई यह जानकर।
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