Thursday, October 22, 2015

आचमन!

भोजन करने पहले कफ प्रबल होता है , इसीलिए भोजन से पहले आचमन का विधान है ।
भोजन करने से पहले 1 -2 घूँट पानी पी लेना चाहिए । चाहे अंजलि में लेकर पीएँ या गिलास से घूँट भरें । इससे गले की श्लेष्मा दूर होती है और पेट की जठराग्नि तीव्र होती है ; जिससे पाचन भली प्रकार होता है ।
खाने से पहले अधिक पानी न पीएँ ।
कोयले की जलती हुई  आग में पानी के दो चार छींटे मारे जाएँ तो आग तेज़ होती है ; लेकिन आग में अधिक पानी डाल दें तो वह बुझ जाएगी । इसी प्रकार खाने से पहले अधिक पानी पीने से भूख मर जाती है । लेकिन पानी का आचमन करने से भूख बढ़ती है । 

कहानी की वास्तविकता

संवेदनाओं के झूठे इतिहास
रच रच रचनाकार हार गए
वास्तविकता से जूझे कौन?
अपने अंतर्मन को कर मौन
कल्पनाओं के झुरमुट में
बुन डाला ताना बाना
अपरिचित व्यथा कथा
भुलाती निज व्यथा
पर दुःख में सुख अन्वेषण
कर लेता मानव मन
अपना समुद्र सा संताप
पचा पाना है दुस्तरतम
अपनी कथा गढ़ते गढ़ते
अस्तित्वहीनता का अवबोधन
घायल करता तन मन
और लेखक तब बाध्य हो
पर व्यथा की कहानी
कल्पना पर अवलम्बित कर
रखता है प्रस्तुति
सार्वजनिक पटल पर
भावविभोर हर्षित पाठक
आननदरस मग्न हो
भूल जाता है अपनी वास्तविकता
सच यह है कि
हर शख्स इक कहानी है
विडंबना है यह कि
निज कहानी का रसास्वादन
कौन कर पाया अब तक ?

Sunday, October 18, 2015

जागी अब ज़िन्दगी!

ताज़ी सी खुशबू को, किरणों में बुनती सी 
धूप में नहाई, मुस्कुराई ये ज़िन्दगी

जीवन की आस भरी, आशा की सांस लिए
अंगड़ाई तोड़ती, मस्ती भरी ज़िन्दगी

बीते चलचित्रों की, परछाई निहारती
निखरे से दर्पण में, धुलती हुई ज़िन्दगी

बोझिल से अनुभव की, अनचाही गठरी को
कांधे से उतारकर, हल्की हुई ज़िन्दगी

बंधन सब मुक्त हुए, नवस्वप्न उद्दीप्त हुए
नवस्वतंत्र राहों पर, चलती ये ज़िन्दगी

चाहों की मस्ती में, गुनगुनाते गीत नए
नवजीवन पाने को, आतुर ये ज़िन्दगी

सरलता के प्रांगण में, प्रेमरस फुहार सी
मन-उपवन सिंचित कर, बरसी ये ज़िन्दगी

लक्ष्य कोई बाँध नया, छोटे से जीवन का
उमंग भर साहस में, उमगी ये ज़िन्दगी

आशा के  परदे पर कौतुक के नृत्य दिखा
थिरकती हर पल में, उल्लसित ये ज़िन्दगी

मन के हर बंधन के, जीर्ण तार तोड़कर
चाहों की चाह से, उन्मुक्त हुई ज़िन्दगी

स्वप्नों के आँचल से, तारों को बीनकर
अपने पर वारती, निहारती ये ज़िन्दगी

सूनापन सुप्त हुआ, मन कंचन मुक्त हुआ
झूठी परतंत्रता उतार, जागी अब ज़िन्दगी