Wednesday, August 22, 2012

सरलता सौम्य है !

सिकता कणों को निहारती
ओ कृत्रिम निर्मम मुस्कान !
स्वच्छंद नैसर्गिक हरियाली को देख
मुस्कुराना है ;
तो उन्मुक्त हो कर खिलखिला
नकली आवरण चढाकर
छिपने का प्रयत्न छोड़ दे
सूखे रेत में
पूरे जीवन की परिभाषा
नहीं पढ़ी जा सकती
रेत की चमक में
सुखद प्रतिबिम्ब का
नकली छलावा है
छलावे को छोड़कर
वास्तविक मरूद्यान को ढूंढ
जीवन की कोमलता को
सत्य के दर्पण में
ढूँढने का प्रयास कर
कृत्रिमता स्वयम हट जाएगी
निर्मलता में डूबी
सरल मुस्कान गुनगुनाएगी
जीवन गौरवमय होगा;
और अधिक सुन्दर भी!!
सरलता में ही सौम्यता है
इस तथ्य को पहचान
ओ प्यारी मुस्कान !


Monday, August 20, 2012

मिथ्या आवरण हटा दो !

अनगढ़ पहेली को बूझना कठिन है ,
असंभव नहीं
ओ साकार छलावे !
तुझे पढकर ही दम लूंगी
हर अक्षर के बिखरते वर्ण को
हर टूटे फटे पृष्ठ को
यत्न से जोडकर
समझने का प्रयास
निरंतर करूंगी
करती रहूँगी
छटपटाते वर्ण
बिखरना चाहेंगे
शब्दों से मुक्त हो
उछटना चाहेंगे
होले से उन्हें पकड़
प्रेम से उन्हें जकड़
पुस्तक के पन्नों पर
प्यार से संजो दूंगी
छलावा तब रूष्ट हो
दूर चला जाएगा
अपने ही बंधन में
आप छला जाएगा
सत्य साकार हो
स्पष्ट हो जाएगा
सामने आएगा
प्यार बरसाएगा
खूब पढ़ा जाएगा
अनगढ़ ,अनबूझी पहेली तब
सरल हो जाएगी
पर बहुत सा समय
व्यर्थ ही गवाँएगी

ओ साकार छलावे से भरी
अनबूझ पहेली !
तुम स्वयं स्पष्ट हो जाओ
सत्य को विजयी बना दो
मिथ्या आवरण हटा दो