Monday, August 20, 2012

मिथ्या आवरण हटा दो !

अनगढ़ पहेली को बूझना कठिन है ,
असंभव नहीं
ओ साकार छलावे !
तुझे पढकर ही दम लूंगी
हर अक्षर के बिखरते वर्ण को
हर टूटे फटे पृष्ठ को
यत्न से जोडकर
समझने का प्रयास
निरंतर करूंगी
करती रहूँगी
छटपटाते वर्ण
बिखरना चाहेंगे
शब्दों से मुक्त हो
उछटना चाहेंगे
होले से उन्हें पकड़
प्रेम से उन्हें जकड़
पुस्तक के पन्नों पर
प्यार से संजो दूंगी
छलावा तब रूष्ट हो
दूर चला जाएगा
अपने ही बंधन में
आप छला जाएगा
सत्य साकार हो
स्पष्ट हो जाएगा
सामने आएगा
प्यार बरसाएगा
खूब पढ़ा जाएगा
अनगढ़ ,अनबूझी पहेली तब
सरल हो जाएगी
पर बहुत सा समय
व्यर्थ ही गवाँएगी

ओ साकार छलावे से भरी
अनबूझ पहेली !
तुम स्वयं स्पष्ट हो जाओ
सत्य को विजयी बना दो
मिथ्या आवरण हटा दो


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