Wednesday, August 22, 2012

सरलता सौम्य है !

सिकता कणों को निहारती
ओ कृत्रिम निर्मम मुस्कान !
स्वच्छंद नैसर्गिक हरियाली को देख
मुस्कुराना है ;
तो उन्मुक्त हो कर खिलखिला
नकली आवरण चढाकर
छिपने का प्रयत्न छोड़ दे
सूखे रेत में
पूरे जीवन की परिभाषा
नहीं पढ़ी जा सकती
रेत की चमक में
सुखद प्रतिबिम्ब का
नकली छलावा है
छलावे को छोड़कर
वास्तविक मरूद्यान को ढूंढ
जीवन की कोमलता को
सत्य के दर्पण में
ढूँढने का प्रयास कर
कृत्रिमता स्वयम् हट जाएगी
निर्मलता में डूबी
सरल मुस्कान गुनगुनाएगी
जीवन गौरवमय होगा;
और अधिक सुन्दर भी!!
सरलता में ही सौम्यता है
इस तथ्य को पहचान
ओ प्यारी मुस्कान !


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