माँ के आँचल का ताना बाना ,
सोख लेता संताप ; संतान के ।
उनके विषाद के गहराए बादल,
बरसने से पहले ही उलझ जाते हैं;
माँ के मुलायम आँचल में ।
धूप की कठोर किरणें,
कसमसाती हुई ,
अटक जाती हैं ;
माँ के सशक्त आँचल में ।
आंधी तूफ़ान हल्की सी हलचल भी ,
छू नहीं पाती बच्चों का तन मन ;
आँचल की दीवार जो है सबल !
सब कुछ पी जाता है ,
झेल लेता है चुपचाप ,
माँ का मूक आँचल ।
फिर भी असफल है ;
अक्षम है माँ का आँचल ।
वह सोख नहीं सकता ,
माँ की आँख की कोर से ,
ढरकते दो अश्रु !!
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