Wednesday, June 13, 2012

नव्य शिशु !














आत्मजा के आत्मज की,
 निर्मल  मुस्कान |
मन को स्पन्दित कर,
छू जाती कोमल प्राण |
भंगिमा भरी चेष्टाएँ,
धीमे से बुदबुदाएं |
आँखों का इशारा पढ़,
अधरों के कोने पर,
स्मित का कम्पन,
लुभाता है मेरा मन |
नन्हे से अरुणिम कर,
पग के संग ठुमक ठुमक,
थिरक थिरक  नृत्य  कर,
आहलादित करते हर पल |
हल्का सा क्रंदन,
कहीं बढ़ न जाए !
लो प्यारी सी थपकी,
निंदिया तुम्हें बुलाए  !!






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