Saturday, June 30, 2012

ककडी (snake cucumber)


 
ककडी को संस्कृत भाषा में कर्कटी कहा जाता है . यह गर्मी की ऋतु में खूब पैदा होती है  और शरीर की गर्मी और उससे उत्पन्न व्याधियों को समाप्त करती है . इसकी लताएँ होती हैं .प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग हमारे देश में होता आया है . प्राचीन ग्रन्थों में इसका वर्णन शाक के रूप में किया गया है . इसकी सब्जी खाने से हमारे शरीर को अनेकों लाभ पहुंचते हैं . अगर किसी भी बीमारी में और चीजों का निषेध हो तब भी इसकी सब्जी को खाया जा सकता है . यह सुपाच्य होती है .
                                           इसका छौंक लगाकर इसे पकाया और खाया जाना चाहिए . छौंक लगाने को संस्कृत में संस्कारित करना कहा जाता है ; अर्थात शाक के सभी दोषों को समाप्त करके उसके गुणों की अभिवृद्धि करना! छौंक ऐसा न लगाया जाए कि शाक के गुण ही समाप्त हो जाएँ .
                                         इसे मधुर रस से युक्त मन गया है ; अर्थात यह पित्त का शमन करती है , पाचन की कमी को ठीक कर देती है , acidity की समस्या को समाप्त कर देती है . पाचन ठीक से न हो रहा हो तो ककडी की सब्जी अवश्य खानी चाहिए . इससे पेट की सभी समस्याएँ ठीक हो जाती हैं . 1 ग्राम ककडी के बीजों के पावडर में 4 ग्राम मुलेठी का पावडर मिलाकर 500 ग्राम पानी मिलाकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे इसका पानी छानकर पीने से acidity ,  के अल्सर और infections ठीक हो जाते हैं .
          यह मूत्रल है . यह किडनी की सफाई कर देती है . पेशाब की जलन और रुककर urine आने की समस्या ठीक हो जाती है .  प्यास अधिक लगती हो ककडी का सेवन कच्चे रूप में नियमित तौर पर करना चाहिए . ककडी को कच्चा सवेरे या फिर मध्यान्ह में ही करना चाहिए . रात्रि को ककडी ,खीरे , टमाटर और मूली आदि का प्रयोग करने से शरीर में वायु की अभिवृद्धि होती है ; अफारा आ सकता है और कफ बढ़ता है .
                  ककडी को कच्चे रूप में खाना हो तो नमक बुरककर न रखें . हाँ , नमक से छुआ छुआकर  खा सकते हैं . इससे स्वाद भी आ जाएगा , और ककडी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहेंगे . कच्ची शाक खाने के कुछ देर बाद भोजन खाएं . इससे शाक भी पूरा लाभ देता है ; अच्छे से पच जाता है और भोजन भी कम खाया जाता है , जिससे मुटापा भी नहीं बढ़ता . कच्चा पक्का भोजन साथ साथ लेने से पाचन की क्रिया में बाधा आती है और आवश्यक तत्व भली प्रकार सोखने में अवरुद्धता आती है . ककडी खाने के तुरंत बाद पानी न पीयें . दूध और ककडी विरुद्धाहार हैं .
                            अगर B.P. high होने की समस्या है ; तो ककडी रामबाण है . सवेरे खाली पेट कच्ची ककडी चबा चबाकर खाएं . नियमित रूप से ऐसा करने पर रक्तचाप ठीक होना प्रारम्भ हो जाता है . जलने पर कच्ची ककडी काटकर लगा दें . तुरंत आराम आ जायेगा . चेहरे पर झाइयाँ हों तो माजूफल , जायफल और ककडी घिसकर , पेस्ट बनाकर चेहरे पर उबटन की तरह लगायें . झाइयाँ ठीक हो जाएँगी .
                       इसके बीजीं की गिरी भी शीतल होती है . यह ठंडाई में डाली जाती है . इसके बीज भी मूत्रल होते है . ये शक्ति भी प्रदान करते हैं . इनके बीजों के पावडर को मिश्री में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लेने से कमजोरी दूर होती है . प्रमेह और प्रदर ठीक होते हैं और धातुरोगों का निवारण होता है .
                    Pregnancy में अफारा होने पर ककडी की जड़ों को  धोकर, कूटकर,, काढ़ा बनाकर , नमक मिलाकर लें . Pregnancy या delivery की pain से राहत पानी हो तो delivery के तीन महीने पहले से ही ;  3 ग्राम ककडी की जड़ + 1 कप दूध +1 कप पानी मिलाकर मंदी आंच पर पकाएं . जब आधा रह जाए तो पी लें . ऐसा करने से पीड़ा से तो राहत मिलेगी ही , शिशु भी स्वस्थ होगा .
                             
                           
                                         

1 comment:

  1. एक खोज से पता चला है कि शरीर में विटामिन डी की कमी से खासकर बच्चों को कई जानलेवा बीमारियां होने का रिस्क होता है। जिन बच्चों में क्रोनिक किडनी की बीमारी होती है पढ़े Rajasthan News

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