Tuesday, November 5, 2024

गोविंद वंदना

 प्रतिदिन की दिनचर्या के कार्य करते समय मां हमेशा ही भजन गाती रहती थीं। इससे कार्य में तो मन लगा ही रहता था और शायद थकावट भी बहुत कम अनुभव होती होगी। यह भजन तो मैंने उनसे कई बार सुना है; इसीलिए मुझे बहुत अच्छा भी लगता है:

भगवान मेरी यह प्रार्थना है; भूलूं न मैं नाम कभी तुम्हारा 

निष्काम हो कर दिन रात गाऊं; गोविंद, दामोदर, माधवेति

गोविंद, दामोदर, माधवेति; हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति


प्यारे जरा तो मन में विचारो; क्या साथ लाये?अब ले चलोगे? 

जावे यही साथ, सदा पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति


 नारी, धरा, धाम, सुपुत्र प्यारे; सन्मित्र, सद्बांधव, द्रव्य सारे

कोई ना साथी, हरि को पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति


नाता भला क्या जग से हमारा?आए यहां क्यों?कर क्या रहे हो?

सोचो, विचारो, हरि को पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति


 सच्चे सखा हैं हरि ही हमारे; माता-पिता, स्वामी, सुबंधु प्यारे

 भूलो ना भाई, दिन रात गाओ; गोविंद, दामोदर, माधवेति


 माता यशोदा हरि को जगावे; जागो, उठो, मोहन! नैन खोलो 

 द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं; गोविंद, दामोदर, माधवेति 


डाली मथानी दधि में किसी ने; तो ध्यान आया दधिचोर का ही

 मीठे स्वरों से हरि गीत गाती; गोविंद, दामोदर, माधवेति

Piles, fissure, fistula

 कायाकल्प वटी और अर्शोग्रिट वटी का सुबह सवेरे खाली पेट प्रयोग करके इन बीमारियों से शत प्रतिशत मुक्ति पाई जा सकती है। 

प्रभावित स्थान पर लगाने के लिए, एलोवेरा का गूदा सर्वोत्तम है। लेकिन उसमें जात्यादिघृत मिलाकर लगाने से बहुत जल्दी आराम आता है।

प्रातः काल खाली पेट ठंडे दूध में एक नींबू निचोड़ कर एकदम पी लेने से भी यह बीमारी ठीक होती है।

 इसके अतिरिक्त नागदोन नामक पौधे के एक दो पत्ते सवेरे सवेरे खाली पेट चबाकर खाने से भी इस बीमारी में आराम आता है।

यदि केले के अंदर, एक चने के दाने के आकार का, भीम सेनी कपूर का छोटा सा टुकड़ा डालकर; उसे बिना चबाए निगल लिया जाए; तब भी इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। यह प्रयोग भी सुबह खाली पेट ही करना चाहिए।

सुबह शाम, खाली पेट, धीरे-धीरे कपालभाति प्राणायाम नियमित रूप से करना चाहिए।  ऐसा करने से परिणाम बहुत शीघ्र आ जाते हैं।

खाना धीरे-धीरे चबा-चबा कर खाना चाहिए जिससे कि कब्ज न हो। अगर कब्ज हो तो रात को सोने से पूर्व त्रिफला लें।  मिर्च मसाले का अधिक प्रयोग न करें। घीया की सब्जी का अधिक प्रयोग करना बहुत लाभकारी रहेगा।

Sunday, November 3, 2024

शुश्रूषा

रेलगाड़ी रफ्तार से चलती जा रही थी। दिन ढल चुका था। सभी यात्री खाना खा चुके थे। प्रत्येक यात्री की सीट पर सफेद चादर और तकिये रखे जा चुके थे। रमेश अपने पिता, पत्नी और बेटे के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था।

  सोने का समय हो गया था। इसीलिए रमेश ने सोचा की पत्नी और बेटे के लिए सीट के ऊपर चादर बिछा देता हूं; जिससे वे आराम से सो सकें। पिताजी तो अपनी चादर स्वयं ही बिछा लेंगे। 

ऐसा सोचकर उसने अपने बेटे और पत्नी के लिए सीट पर चादरें बिछा दीं और तकिये भी रख दिए। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर देखा।

 उसका बेटा अपने दादाजी की सीट पर चादर बिछा रहा था।  उसके दादाजी आराम से बैठे हुए थे। फिर उसके बेटे ने उनका तकिया भी लगा दिया और अपने दादाजी को कहा, "दादाजी! अब आप आराम से सो जाइए।"

Tuesday, October 1, 2024

कॉफ़ी की महक

 मैं किचन में चाय बना रही थी। उसमें अभी तुलसी के पत्ते डाल ही रही थी, कि अचानक ऋचा की आवाज आई, "मम्मी! कॉफी मत बनाओ। मुझे तो तुलसी की चाय पीनी है।"

 मैंने कहा, "हां! हां! मैं तुलसी की चाय ही बना रही हूं।" 

"तो फिर यह कॉफी की इतनी खुशबू कहां से आ रही है?" ऋचा बोली।

 मैंने कहा, "मैं तो चाय की पत्ती डाल रही हूं। कॉफी की खुशबू कैसे आ सकती है?"

 लेकिन मुझे भी कॉफी की खुशबू आ रही थी। मैंने चाय की पत्ती वाले डिब्बे को गौर से देखा। उसमें चाय ही थी और मैंने चाय ही डाली थी। लेकिन खुशबू तो कॉफी की आ रही थी।  पूरा घर कॉफ़ी की खुशबू से महक रहा था। 

मैं बाहर बालकोनी में गई। मुझे लगा शायद आसपास कोई कॉफ़ी बना रहा है। लेकिन बालकोनी में काफी की कोई खुशबू थी ही नहीं। तब मैंने घर जाकर डाइनिंग टेबल के ऊपर रखे हुए काफी के जार को देखा। सोचा, कि कहीं वह खुला तो नहीं रह गया या टूट तो नहीं गया। लेकिन काफी का जार तो सही सलामत बंद था।

 फिर यह कॉफी की इतनी तेज खुशबू कहां से आ रही है? तभी मैंने ऋचा को देखा। उसने अभी-अभी ताजा अखबार पढ़ने के लिए खोला था। ऋचा अचानक बोली, "अरे! कॉफ़ी की खुशबू तो अखबार में से आ रही है।"

अखबार के मुखपृष्ठ पर, इंटरनेशनल कॉफी डे पर, टाटा कॉफी कंपनी का बहुत बड़ा विज्ञापन था। जिसमें से कॉफी की भीनी भीनी खुशबू भी आ रही थी। उसी से पूरा कमरा महक उठा था।

"तो अब पता चला कि कॉफ़ी की खुशबू कहां से आ रही है!"मैंने ऋचा को तुलसी वाली चाय का प्याला पकडाते हुए कहा।

 "वाह मम्मी! यह तो मजा दोगुना हो गया। हाथ में तुलसी की चाय और कमरे में कॉफ़ी की खुशबू!" 

तभी बाहर दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो पाया कि ऊपर वाले फ्लैट की सुधा सामने खड़ी थी। "आओ सुधा!" मैंने कहा।

 "आंटी! कॉफ़ी की बहुत बढ़िया खुशबू आ रही है। आपने कॉफी बनाई है क्या?" 

मैं और ऋचा एक दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगे। सुधा सकपका गई। उसने पूछा, "कोई राज की बात है क्या?" 

मैंने कहा, "हां सुधा! ऐसा ही समझो। बात यह है कि मैंने तो चाय बनाई है। लेकिन आज इंटरनेशनल कॉफी डे पर अखबार में कॉफ़ी का विज्ञापन आया है; जिसमें कि कॉफ़ी की खुशबू भी है।" 

"अच्छा, तो यह बात है।"  सुधा भी मुस्कुराई। 

"इसीलिए आपका घर कॉफ़ी की खुशबू से महक रहा है। जब आज इंटरनेशनल कॉफी डे है, तो आंटी; हो जाए एक कॉफी! मौका भी है और दस्तूर भी!"

 मैंने हंसकर कहा, "हां! हां! क्यों नहीं? आखिर कॉफ़ी की खुशबू से घर महक रहा है; तो हाथ में काॅफ़ी का प्याला भी तो होना चाहिए।"

इसके बाद, इंटरनेशनल कॉफी डे पर, सुधा ने भी कॉफ़ी के विज्ञापन में बसी हुई कॉफ़ी की महक के साथ, कॉफी के स्वाद का भी भरपूर आनंद उठाया।

Monday, September 30, 2024

जलने पर...

 रसोई घर में काम करते-करते कई बार हाथ जल जाता है या वैसे भी कभी असावधानीवश, अंगुली या हाथ, पैर या शरीर का कोई भी त्वचा का हिस्सा, अगर थोड़ा बहुत जल जाता है; तो बिल्कुल भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है।

 अपने घर में हमेशा एलोवेरा का पौधा  रखना चाहिए। जैसे ही शरीर का कोई हिस्सा जल जाए; तुरंत एलोवेरा का पत्ता तोड़े और उसका गूदा उस जले हुए स्थान पर लगा लें। उसके बाद उसे ऐसे ही छोड़ दें। उसे स्थान को न तो किसी कपड़े से पोंछें  और न ही उस पर पानी लगने दें।

अगर आवश्यकता पड़े, तो इस  गूदे को जले हुए स्थान पर बार-बार भी लगाया जा सकता है। ऐसा करने से वहां जलन भी नहीं होगी और जला हुआ त्वचा का हिस्सा बहुत ही कम दिनों मे heal हो जाएगा। Heal हो जाने के बाद भी, उस पर एलोवेरा लगाते रहे; जिससे कि जले हुए का निशान न पड़े। 

एलोवेरा का गूदा लगाते समय, यह ध्यान रखना चाहिए कि जले हुए स्थान पर जख्म या फ़फ़ोला ना हो।


Wednesday, September 25, 2024

दान का चमत्कार!

जॉन डी रॉकफेलर दुनिया के सबसे अमीर आदमी और पहले अरबपति थे।

25 साल की उम्र में, वे अमेरिका में सबसे बड़ी तेल रिफाइनरियों में से एक के मालिक बने और 31 साल की उम्र में, वे दुनिया के सबसे बड़े तेल रिफाइनर बन गए।

38 साल उम्र तक, उन्होंने यू.एस. में 90% रिफाइंड तेल की कमान संभा ली और 50 की उम्र तक, वह देश के सबसे अमीर व्यक्ति हो गए थे।

जब उनकी मृत्यु हुई, तो वह दुनिया के सबसे अमीर आदमी थे।

एक युवा के रूप में वे अपने प्रत्येक निर्णय, दृष्टिकोण और रिश्ते को अपनी व्यक्तिगत शक्ति और धन को बढ़ाने में लगाते थे।

लेकिन 53 साल की उम्र में वे बीमार हो गए। उनका पूरा शरीर दर्द से भर गया और उनके सारे बाल झड़ गए।

नियति को देखिए,उस पीड़ादायक अवस्था में, दुनिया का एकमात्र अरबपति जो सब कुछ खरीद सकता था, अब केवल सूप और हल्के से हल्के स्नैक्स ही पचा सकता था।

उनके एक सहयोगी ने लिखा, "वह न तो सो सकते थे, न मुस्कुरा सकते थे और उस समय जीवन में उसके लिए कुछ भी मायने नहीं रखता था।"

उनके व्यक्तिगत और अत्यधिक कुशल चिकित्सकों ने भविष्यवाणी की कि वह एक वर्ष ही जी पाएंगे।

उनका वह साल बहुत धीरे-धीरे, बहुत  पीड़ा से गुजर रहा था।

जब वह मृत्यु के करीब पहुंच रहे थे, एक सुबह उन्हें अहसास हुआ कि वह अपनी संपत्ति में से कुछ भी, अपने साथ अगली दुनिया में नहीं ले जा सकते।

जो व्यक्ति पूरी व्यापार की दुनिया को नियंत्रित कर सकता था, उसे अचानक एहसास हुआ कि उसका अपना जीवन ही उसके नियंत्रण में नहीं है।

उनके पास एक ही विकल्प बचा था। उन्होंने अपने वकीलों, एकाउंटेंट और प्रबंधकों को बुलाया और घोषणा की कि वह अपनी संपत्ति को अस्पतालों में, अनुसंधान के कार्यो में और धर्म-दान के कार्यों के लिए उपयोग में लाना चाहते हैं।

जॉन डी. रॉकफेलर ने अपने फाउंडेशन की स्थापना की।इस नई दिशा में उनके फाउंडेशन के अंतर्गत, अंततः पेनिसिलिन की खोज हुई,मलेरिया, तपेदिक और डिप्थीरिया का इलाज ईजाद हुआ।

लेकिन शायद रॉकफेलर की कहानी का सबसे आश्चर्यजनक हिस्सा यह है कि जिस क्षण उन्होंने अपनी कमाई का हिस्सा धर्मार्थ  देना शुरू किया, उसके शरीर की हालात आश्चर्यजनक रूप से बेहतर होती गई।

एक समय ऐसा लग रहा था कि वह 53 साल की उम्र तक ही जी पाएंगे, लेकिन वे 98 साल तक जीवित रहे।

रॉकफेलर ने कृतज्ञता सीखी और अपनी अधिकांश संपत्ति समाज को वापस कर दी और ऐसा करने से वह ना केवल ठीक हो गए बल्कि एक परिपूर्णता के अहसास में भर गए। उन्होंने बेहतर होने और परिपूर्ण होने का तरीका खोज लिया।

ऐसा कहा जाता है के रॉकफेलर ने जन कल्याण के लिए अपना पहला दान स्वामी विवेकानंद के साथ बैठक के बाद दिया और उत्तरोत्तर वे एक उल्लेखनीय परोपकारी व्यक्ति बन गए। स्वामी विवेकानंद ने रॉकफेलर को संक्षेप में समझाया कि उनका यह परोपकार, गरीबों और संकटग्रस्त लोगों की मदद करने का एक सशक्त माध्यम बन सकता है।




 

शरणागत

 तेरे नाम का सुमिरन करके, मेरे मन में सुख भर आया

 तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया


 दुनिया की ठोकर खाकर, जब हुआ कभी बेसहारा

 न पाकर अपना कोई, जब मैंने तुम्हें पुकारा

 हे नाथ मेरे सिर ऊपर, तूने अमृत बरसाया


 तू संग में था नित मेरे, ये नैना देख न पाए

 चंचल माया के रंग में, ये नैन रहे उलझाए

 जितनी भी बार गिरा हूं, तूने पग पग मुझे उठाया


 जब सागर की लहरों ने, भटकाई मेरी नैया

 तट छूना भी मुश्किल था, नहीं दीखे कोई खिवैया 

 तू लहर बना सागर की, मेरी नाव किनारे लाया


 हर तरफ तुम्हीं हो मेरे, हर तरफ तेरा उजियारा

 निर्लेप प्रभु जी मेरे, हर रूप तुम्हीं ने धारा

 मैं तेरी शरण में दाता, तेरा तुझको ही चढ़ाया


 तेरी कृपा को मैंने पाया, तेरी दया को मैंने पाया