चुन्नू, मुन्नू, चंपा, भोला।
कंधों पर लटकाए झोला।
साथ साथ चलते हैं ऐसे,
मानो लिए पालकी जैसे।
दूर गांव से पढ़ने आते।
चलते चलते थक-थक जाते।
पर किसान के बालक हैं ये,
रुकते नहीं, नहीं घबराते।
चारों चाहें आगे बढ़ना।
उन्नति की चोटी पर चढ़ना।
इसीलिए ये बड़े प्रेम से,
सीख रहे हैं लिखना पढ़ना।
यदि किसी ने यह कविता अपनी तृतीय कक्षा में पढी है, तो वे इस समय, अवश्य ही, वरिष्ठ नागरिक होंगे!
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