प्रतिदिन की दिनचर्या के कार्य करते समय मां हमेशा ही भजन गाती रहती थीं। इससे कार्य में तो मन लगा ही रहता था और शायद थकावट भी बहुत कम अनुभव होती होगी। यह भजन तो मैंने उनसे कई बार सुना है; इसीलिए मुझे बहुत अच्छा भी लगता है:
भगवान मेरी यह प्रार्थना है; भूलूं न मैं नाम कभी तुम्हारा
निष्काम हो कर दिन रात गाऊं; गोविंद, दामोदर, माधवेति
गोविंद, दामोदर, माधवेति; हे कृष्ण, हे यादव, हे सखेति
प्यारे जरा तो मन में विचारो; क्या साथ लाये?अब ले चलोगे?
जावे यही साथ, सदा पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति
नारी, धरा, धाम, सुपुत्र प्यारे; सन्मित्र, सद्बांधव, द्रव्य सारे
कोई ना साथी, हरि को पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति
नाता भला क्या जग से हमारा?आए यहां क्यों?कर क्या रहे हो?
सोचो, विचारो, हरि को पुकारो; गोविंद, दामोदर, माधवेति
सच्चे सखा हैं हरि ही हमारे; माता-पिता, स्वामी, सुबंधु प्यारे
भूलो ना भाई, दिन रात गाओ; गोविंद, दामोदर, माधवेति
माता यशोदा हरि को जगावे; जागो, उठो, मोहन! नैन खोलो
द्वारे खड़े गोप बुला रहे हैं; गोविंद, दामोदर, माधवेति
डाली मथानी दधि में किसी ने; तो ध्यान आया दधिचोर का ही
मीठे स्वरों से हरि गीत गाती; गोविंद, दामोदर, माधवेति
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