Sunday, November 3, 2024

शुश्रूषा

रेलगाड़ी रफ्तार से चलती जा रही थी। दिन ढल चुका था। सभी यात्री खाना खा चुके थे। प्रत्येक यात्री की सीट पर सफेद चादर और तकिये रखे जा चुके थे। रमेश अपने पिता, पत्नी और बेटे के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था।

  सोने का समय हो गया था। इसीलिए रमेश ने सोचा की पत्नी और बेटे के लिए सीट के ऊपर चादर बिछा देता हूं; जिससे वे आराम से सो सकें। पिताजी तो अपनी चादर स्वयं ही बिछा लेंगे। 

ऐसा सोचकर उसने अपने बेटे और पत्नी के लिए सीट पर चादरें बिछा दीं और तकिये भी रख दिए। उसके बाद उसने पीछे मुड़कर देखा।

 उसका बेटा अपने दादाजी की सीट पर चादर बिछा रहा था।  उसके दादाजी आराम से बैठे हुए थे। फिर उसके बेटे ने उनका तकिया भी लगा दिया और अपने दादाजी को कहा, "दादाजी! अब आप आराम से सो जाइए।"

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