तोरी को शीतल माना जाता है। यह सुपाच्य होती है इसीलिए अक्सर इसका प्रयोग पथ्य के रूप में करते हैं । शायद किसी भी तरह की अस्वस्थता होने पर इसका परहेज़ नहीं बताया जाता।
इसका छिलका पीसकर , उसकी पेस्ट बनाकर मुँह पर लगाई जाए तो कील मुंहासों से राहत मिलती है।
इसके पत्तों को गर्म करके उस पर थोड़ा तेल लगाकर सूजन या दर्द पर बाँधा जाए तो बहुत आराम आता है। इसकी पत्तियों का रस खुजली या दाद पर लगाने से वह ठीक हो जाती है। इसके रस को सरसों का तेल मिलकर मंद आंच पर पर पकाएं । जब थोड़ा सूख जाए तो देसी मोम मिलाकर मलहम बना लें । इसे खाज खुजली या दाद की जगह पर लगाने से आराम आता है।
इसके फूलों को सुखाकर 5 ग्राम की मात्रा में लेने से white discharge की बीमारी में आराम आता है और यह शक्तिवर्धक भी है।
इसके बीजों का तेल दर्द निवारक होता है। इस तेल को दर्द वाले स्थान पर लगाकर हल्के से मालिश करें ।
इसकी जड़ों को सुखाकर, उसका पाउडर कर के थोड़ी मात्रा में लिया जाए तो यह शुगर की बीमारी में भी लाभ करता है। यह थोड़ा विरेचक होता है अतः कम मात्रा में लें। शुगर की जो औषधियाँ पहले से चल रही हैं ; उन्हें भी साथ चलने दें । धीरे धीरे चिकित्स्कीय परामर्श के अनुसार अंग्रेजी दवाई कम होती जाएँगी और शुगर की बीमारी में आराम आएगा।
तोरी का जूस acidity को खत्म करता है। इसके लिए एक कप जूस सवेरे लें। अगर शीतल प्रकृति है तो इस जूस में काली मिर्च मिला लें। गैस होने पर इसके जूस में सौंठ और काली मिर्च मिलाकर लें।
अपच होने पर इसका सूप पीएं । इस सूप में अदरक, काली मिर्च, और दालचीनी भी मिला लें। लीवर खराब हो तो भी पथ्य के रूप में इसका सेवन करते रहें।
वमन या उल्टियाँ हो रही हों तो इसका सूप पीएं। इससे भूख भी लगेगी।
यह हल्का कब्ज निवारक भी है । बच्चों को ठीक से पेट साफ़ न हो रहा हो तो इसका सूप दिया जा सकता है।
तोरी शीतल होती है अतः इसकी सब्ज़ी बनाते समय अदरक का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
कड़वी तोरी का प्रयोग बिल्कुल न करें।
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