कत्था या खैर का इस्तेमाल आम तौर पर मुखशुद्धि के लिए किया जाता है। । इसके अधिक सेवन से हानि होने की सम्भावना हो सकती है। लेकिन कभी कभी यह जीवनदायिनी भी होती है। इसे पान पर लगाकर अवश्य खाते हैं।
इसके पेड़ में कांटे होते हैं। लेकिन इसकी पत्तियों में कांटे नहीं होते। इसकी पत्तियां चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। मुंह की लार बाहर भी निकाल सकते हैं या फिर अंदर निगल भी सकते हैं। इसके पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ले करें तो मुंह के घाव और ulcer ठीक हो जाते हैं।
बाजार में नकली chemicals से बना कत्था न लें। शुद्ध कत्था 1/2 से 1 ग्राम की मात्रा 300 ग्राम पानी में मिलाकर , नमक डालकर गरारे करने से मुंह की दुर्गन्ध खत्म होती है और मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं।
इस वृक्ष की छाल का अंदर का भाग रक्तिम वर्ण का होता है। इसे निकालकर , कूटकर उबाला जाता है। फिर इसे छानकर और सुखाकर कत्था प्राप्त किया जाता है। इसी में अन्य औषधियाँ मिलकर खदिरारिष्ट बनाया जाता है। इसका सेवन करने से कील, मुंहासे व त्वचा सम्बन्धी कई बीमारियां ठीक होती हैं।
खैर से बनी खदिरादि वटी का प्रयोग मुख के रोग, स्वर भंग, बलगम, खांसी, खराश आदि के लिए किया जाता है। इन सभी परेशानियों के लिए इसकी पत्तियों या छाल का काढ़ा भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
चर्मरोग सम्बन्धी सभी विकारों से मुक्ति दिलाता है यह वृक्ष । और मुखशुद्धि के साथ साथ रक्त को भी शुद्ध करने में सक्षम है कत्था!
इसका वृक्ष बहुत धीरे बढ़ता है । इसके वृक्ष दुर्लभ श्रेणी के अंतर्गत आने लगे हैं। इन वृक्षों को अधिक से अधिक लगाना चाहिए।