लम्बी प्रतीक्षा के बाद वह समय भी आया जब मुदित और ज्योति का हमारे घर पदार्पण हुआ !
बात यह है कि ऋचा से इंदुजी का विशेष स्नेह है । अत: इंदुजी के अनुग्रह को ऋचा टाल न सकी । छोले - भटूरे की फरमाइश के साथ ही रविवार को इंदुजी के यहाँ लंच का कार्यक्रम निश्चित हो गया । सबसे अधिक प्रसन्नता इस बात की भी थी की मुदित और ज्योति भी रविवार को मिलने वाले थे ।
इंदुजी ने फोन पर बताया, "सब कुछ तैयार है बस मुदित तुम्हें लेने आ जाएगा ; कार में आराम से नन्हें नटखट के साथ आ जाना ।"
"मुदित लेने आएगा ! अरे , फिर तो ज्योति और आप लोग भी साथ ही यहीं पर आ जाओ । यहीं पर लंच कर लेते हैं । आपके घर खाना खाया या यहाँ पर ; कोई फर्क थोड़े ही है ।" मैं सब कुछ चुस्ती से एक साथ ही बोल गई ।
इंदुजी ने सहमति जताई । वे बोलीं ," ठीक है । तो तुम थोड़े से आलू उबाल लेना । बाकी सभी सामान हम कार में रखकर ले आयेंगे । आने से पहले हम फोन कर लेंगे ।"
ऋचा ने नन्हें नटखट को नहलाया , स्वयम भी स्नान किया और तुरंत बाज़ार जाकर कुछ छुटपुट सामान ले आई । मैंने भी थोडा बहुत घर को व्यवस्थित किया । वास्तव में नन्हें बच्चों के साथ घर के अस्त व्यस्त होने की सम्भावना अधिक होती हैं । पूरे घर में नन्हें के नन्हें नन्हें खिलौने ही साधिकार विश्राम कर रहे होते हैं । सभी खिलौने एक बड़े से कार्टन में भरकर हमने कुछ चैन की सांस ली ।
मैंने ऋचा को कहा , " यह तो अच्छा नहीं लगता कि ज्योति और मुदित पहली बार हमारे घर आएँ और हम उनके लिए अपनी तरफ से कुछ भी खातिरदारी न करें। क्यों न पिज़्ज़ा मँगवा लिया जाए ?"
ऋचा ने भी स्वीकृति दे दी । बस पिज़्ज़ा आर्डर हो गया ।
दरवाजे की घंटी बजते ही नन्हा नटखट फुर्तीला हो गया । ज्योति और मुदित पहली बार हमारे घर आए थे । मेरी प्रसन्नता द्विगुणित हो गई थी । सब आत्मीय एकत्र हो जाएँ तो घर भी भरा - भरा लगता है और मन भी हरा भरा हो उठता है ।
थोड़ी देर बार पिज़्ज़ा भी घर पहुँच गया । इंदुजी पिज़्ज़ा पसंद नहीं करती । उन्होंने तो कह भी दिया ," अरे ! पिज़्ज़ा क्यों मँगवाया है ? पिज़्ज़ा खाने के बाद छोले भटूरे का तो आनन्द कम हो जाएगा ।"
" इंदुजी ! ऋचा का बहुत मन था । आप भी लीजिए न थोडा !"
" आंटी दोनों ही व्यंजनों का मज़ा लेना है । पहले पिज़्ज़ा और फिर छोले भटूरे । आप भी थोडा लीजिए न !"
वास्तव में इंदुजी इतने स्वादिष्ट पकवान घर में ही बना लेती हैं कि बाज़ार के बने व्यंजन उन्हें अधिक पसंद नहीं आते । उन्होंने फटाफट बूंदी का रायता बनाया , सूखे आलू भूने ; और कढाई में तेल चढ़ाकर भटूरे बेलने की तैयारी कर ली । बने बनाए छोले और गुंधा हुआ भटूरे का आटा वे घर से ही लाई थी । और सब तो छोडिए; वे मिष्ठान्न के लिए खीर भी घर से ही ले आईं थी ।
ज्योति सबको खाना परोसने में लग गई । मुझे तो ज्योति भी बहुत फुर्तीली लगती है । पता ही नहीं चला कि उसने चुपके-चुपके क्या क्या काम कर दिए । इंदुजी तो सब कुछ समेटकर भोजन के लिए बैठीं ।
नन्हां चुनमुन तो मुदित के साथ ही खेलता रहा । उसे मुदित इतना अधिक भा गया कि वह मुदित की गोद से हमारे पास आने को तैयार ही नहीं था । उसने तो हमे बाय - बाय भी कह दिया । इस परिस्थिति में बच्चे को वापिस लेना कठिन हो सकता है । बच्चा रो - रो कर खूब शोर मचाता, उससे पहले ही ऋचा ने उसे दूर ले जाकर बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया । नन्हें नटखट के ध्यान भटकते ही मुदित ने कार स्टार्ट कर दी ।
पता ही न चला कि कुछ घंटे पल भर में कैसे बीत गए ? परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न मेरे मन में अभी तक है ; इंदुजी हमारी मेहमान थीं या मेजबान ?
बात यह है कि ऋचा से इंदुजी का विशेष स्नेह है । अत: इंदुजी के अनुग्रह को ऋचा टाल न सकी । छोले - भटूरे की फरमाइश के साथ ही रविवार को इंदुजी के यहाँ लंच का कार्यक्रम निश्चित हो गया । सबसे अधिक प्रसन्नता इस बात की भी थी की मुदित और ज्योति भी रविवार को मिलने वाले थे ।
इंदुजी ने फोन पर बताया, "सब कुछ तैयार है बस मुदित तुम्हें लेने आ जाएगा ; कार में आराम से नन्हें नटखट के साथ आ जाना ।"
"मुदित लेने आएगा ! अरे , फिर तो ज्योति और आप लोग भी साथ ही यहीं पर आ जाओ । यहीं पर लंच कर लेते हैं । आपके घर खाना खाया या यहाँ पर ; कोई फर्क थोड़े ही है ।" मैं सब कुछ चुस्ती से एक साथ ही बोल गई ।
इंदुजी ने सहमति जताई । वे बोलीं ," ठीक है । तो तुम थोड़े से आलू उबाल लेना । बाकी सभी सामान हम कार में रखकर ले आयेंगे । आने से पहले हम फोन कर लेंगे ।"
ऋचा ने नन्हें नटखट को नहलाया , स्वयम भी स्नान किया और तुरंत बाज़ार जाकर कुछ छुटपुट सामान ले आई । मैंने भी थोडा बहुत घर को व्यवस्थित किया । वास्तव में नन्हें बच्चों के साथ घर के अस्त व्यस्त होने की सम्भावना अधिक होती हैं । पूरे घर में नन्हें के नन्हें नन्हें खिलौने ही साधिकार विश्राम कर रहे होते हैं । सभी खिलौने एक बड़े से कार्टन में भरकर हमने कुछ चैन की सांस ली ।
मैंने ऋचा को कहा , " यह तो अच्छा नहीं लगता कि ज्योति और मुदित पहली बार हमारे घर आएँ और हम उनके लिए अपनी तरफ से कुछ भी खातिरदारी न करें। क्यों न पिज़्ज़ा मँगवा लिया जाए ?"
ऋचा ने भी स्वीकृति दे दी । बस पिज़्ज़ा आर्डर हो गया ।
दरवाजे की घंटी बजते ही नन्हा नटखट फुर्तीला हो गया । ज्योति और मुदित पहली बार हमारे घर आए थे । मेरी प्रसन्नता द्विगुणित हो गई थी । सब आत्मीय एकत्र हो जाएँ तो घर भी भरा - भरा लगता है और मन भी हरा भरा हो उठता है ।
थोड़ी देर बार पिज़्ज़ा भी घर पहुँच गया । इंदुजी पिज़्ज़ा पसंद नहीं करती । उन्होंने तो कह भी दिया ," अरे ! पिज़्ज़ा क्यों मँगवाया है ? पिज़्ज़ा खाने के बाद छोले भटूरे का तो आनन्द कम हो जाएगा ।"
" इंदुजी ! ऋचा का बहुत मन था । आप भी लीजिए न थोडा !"
" आंटी दोनों ही व्यंजनों का मज़ा लेना है । पहले पिज़्ज़ा और फिर छोले भटूरे । आप भी थोडा लीजिए न !"
वास्तव में इंदुजी इतने स्वादिष्ट पकवान घर में ही बना लेती हैं कि बाज़ार के बने व्यंजन उन्हें अधिक पसंद नहीं आते । उन्होंने फटाफट बूंदी का रायता बनाया , सूखे आलू भूने ; और कढाई में तेल चढ़ाकर भटूरे बेलने की तैयारी कर ली । बने बनाए छोले और गुंधा हुआ भटूरे का आटा वे घर से ही लाई थी । और सब तो छोडिए; वे मिष्ठान्न के लिए खीर भी घर से ही ले आईं थी ।
ज्योति सबको खाना परोसने में लग गई । मुझे तो ज्योति भी बहुत फुर्तीली लगती है । पता ही नहीं चला कि उसने चुपके-चुपके क्या क्या काम कर दिए । इंदुजी तो सब कुछ समेटकर भोजन के लिए बैठीं ।
नन्हां चुनमुन तो मुदित के साथ ही खेलता रहा । उसे मुदित इतना अधिक भा गया कि वह मुदित की गोद से हमारे पास आने को तैयार ही नहीं था । उसने तो हमे बाय - बाय भी कह दिया । इस परिस्थिति में बच्चे को वापिस लेना कठिन हो सकता है । बच्चा रो - रो कर खूब शोर मचाता, उससे पहले ही ऋचा ने उसे दूर ले जाकर बहलाना फुसलाना शुरू कर दिया । नन्हें नटखट के ध्यान भटकते ही मुदित ने कार स्टार्ट कर दी ।
पता ही न चला कि कुछ घंटे पल भर में कैसे बीत गए ? परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न मेरे मन में अभी तक है ; इंदुजी हमारी मेहमान थीं या मेजबान ?
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