मेरा आँगन सूना है ।
बिल्ली उपालम्भ देकर ,
धीरे से खिसक जाती है ।
कुक्कुर की भौं भौं ,
व्यर्थ चली जाती है ।
चिडिया कनखियों से देखती
चुपचाप दाने चुगती है ।
अब चूँ चूँ कौन कहेगा ?
उनको देखकर इशारा कर,
"ओऊ ओऊ " कौन करेगा ?
पवन हैरान है .........
"नन्हे नन्हे वस्त्रों को,
झूला कैसे झुलाऊँ ?
कहाँ विलुप्त हो गये वस्त्र ?
दिखते क्यों नहीं ? "
सोचकर परेशान है !
पार्क में बच्चों का खेलता हुजूम ,
बार बार बरामदे को निहारता है .
नन्हे की झलक पाने को आतुर आँखें
निराश होकर दोबारा क्रिकेट बैट पर,
टिक जाती हैं ।
अचानक एक नन्हीं आवाज,
कानों में पडती है ;
"आंटी , वह कब आएगा ?
उसको "पाली पाली" करनी है "
दो भोली आँखें प्रश्न कर रही हैं ।
मैं सिहर जाती हूँ !
सूनेपन में डूबे दो मौन अश्रु ,
मेरे हृदय को बींधते हुए लुढक जाते हैं ।
अस्फुट उत्तर निकलता है ;
"दादी भेजेगी, तब आएगा "
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