मलिन पंक से ऊपर उठकर
पंकज सरिख विकसना होगा
महाकाल की ज्वालाओं में
धधक धधक कर जलना होगा
तप तप कर उज्ज्वल आभा ले
कुंदन सरिस निखरना होगा
धीरज की छैनी से छिलकर
पंकज सरिख विकसना होगा
महाकाल की ज्वालाओं में
धधक धधक कर जलना होगा
तप तप कर उज्ज्वल आभा ले
कुंदन सरिस निखरना होगा
धीरज की छैनी से छिलकर
अनुपम रूप निरखना होगा
भूली सी प्रतिभाओं को भी
नित्य प्रकाशित करना होगा
सरस्वती के वरद हस्त को
शिरोधार्य अब करना होगा
नित्य प्रकाशित करना होगा
सरस्वती के वरद हस्त को
शिरोधार्य अब करना होगा
क्रोध आवेश दंभ को तजकर
पूर्ण विवेकी बनना होगा
तारों की कोमल छाया में
मन में शुचिता भरना होगा
निर्मल मन उद्दीप्त हो उठे
जग में जगमग करना होगा
धूलि धूसरित अनगढ़ हीरे !
तुझे स्वयम् को गढ़ना होगा
मन में शुचिता भरना होगा
निर्मल मन उद्दीप्त हो उठे
जग में जगमग करना होगा
धूलि धूसरित अनगढ़ हीरे !
तुझे स्वयम् को गढ़ना होगा
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