Thursday, April 2, 2015

ऋषि की नाराज़गी!

प्रात: काल की सैर के लिए घर से बाहर निकलने को ही थी कि याद आया, कि आज तो वैलेंटाइन डे है। बच्चों से बढ़कर कोई भी वैलेंटाइन नहीं हो सकता। और ऋषि तो है भी प्यार से भरा हुआ साक्षात महात्मा वैलेंटाइन!  
मैंने उठाया एक कोरा पन्ना ; और बच्चों को प्यार भरे सन्देश लिखते हुए ऋषि को अपना वैलेंटाइन घोषित किया। इसके बाद इस सन्देश को एक गुलदस्ते में स्थापित करके मैं सैर के लिए निकल गई । मन बहुत प्रसन्न था । अवकाश का दिन था इसीलिए आराम से घूमकर वापिस आई।
                  घर पर बच्चों ने बड़ी प्रसन्नता से मुझे प्यार से हैप्पी वैलेंटाइन डे बोला। वे बहुत खुश थे कि बड़ी उम्र में भी मुझे यह दिन अच्छा लगता है। मैंने बच्चों कोआग्रहपूर्वक कहा कि उन्हें बाहर घूमने, या फिर फिल्म  देखने और बाहर कहीं खाना खाने के लिए जाना चाहिए। पहले तो वे तैयार ही नहीं थे। परन्तु मेरे बार बार  कहने पर वे बाहर खाना खाने के लिए चले गए। नन्हा पांच मास का ऋषि, मेरा वैलेंटाइन, मेरे पास था।
                खाना खाने के बाद बच्चे वापिस आए तो बहुत खुश थे । ऋषि मेरे कंधे पर सिर रखे हुए था । उसका मुँह पीछे की ओर था । पुत्रवधू इतनी प्रसन्न थी कि आते ही वह बुलंद आवाज़ में मुझे ढेरों धन्यवाद देने लगी। 
वह बोल रही थी कि अचानक नन्हा ऋषि रोने लगा। उसने मुँह पीछे ही रखा और जोर जोर से रोने लगा। एक पल तो मैं हैरान हुई कि यह तो कंधे पर आराम से मज़े कर रहा था ; तो रोने क्यों लगा ? लेकिन दूसरे ही पल सब कुछ समझ गई।
 मैंने पुत्रवधू को कहा,"तू मुझसे बातें कर रही है । लेकिन तूने आते ही इसे गोद में नहीं उठाया।अब यह तेरी आवाज़ पहचानकर, कंधे पर पीछे की तरफ मुँह करके रोये ही जा रहा है। वह तेरी ओर मुँह भी नहीं कर रहा; क्योंकि यह  नाराज़ है । यह रोकर तुझसे शिकायत कर रहा है। ले जल्दी से इसे पकड़!"
    पुत्रवधू ने उसे गोद में लेकर प्यार किया । वह तुरंत चुप हो गया और शिकायत भरी नज़रों से उसकी ओर निहारने लगा जैसे कह रहा हो,"मुझसे ही तो आपका वैलेंटाइन डे सम्पूर्ण है। मुझे कभी नज़र अन्दाज मत करना। वरना मैं नाराज़ भी हो सकता हूँ!"