Wednesday, October 17, 2012

आँचल की अक्षमता !!




माँ के आँचल का ताना बाना ,    
सोख लेता संताप ; संतान के ।
उनके विषाद के गहराए बादल,
बरसने से पहले ही उलझ जाते हैं;
माँ के मुलायम आँचल में ।
धूप की कठोर किरणें,
कसमसाती हुई ,
अटक जाती हैं ;
माँ के सशक्त आँचल में ।
आंधी तूफ़ान हल्की सी हलचल भी ,
छू नहीं पाती बच्चों का तन मन ;
आँचल की दीवार जो है सबल !
सब कुछ पी जाता है ,
झेल लेता है चुपचाप ,
माँ का मूक आँचल ।
फिर भी असफल है ;
 अक्षम है माँ का आँचल ।
वह सोख नहीं सकता ,
 माँ की आँख की कोर से ,
ढरकते  दो  अश्रु !!

Friday, October 12, 2012

अमरुद(guava)



अमरुद को संस्कृत भाषा में दृढबीजम कहा जाता है । इसके बीज कठोर होते हैं । उन्हें चबाना कठिन होता है । और मजेदार बात यह है कि उन्हें चबाना ही नहीं चाहिए , बल्कि निगल लेना चाहिए । अमरुद के गूदे को चबाकर बीजों को ऐसे ही निगल लेना चाहिए । इस प्रकार से अमरूद को खाया जाए ,तो यह फल intestines के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । यह फल पेट के लिए लाभकारी और गुणकारी माना गया है । यह कब्ज़ को दूर करने वाला और मन को प्रसन्न रखने वाला फल है । मल को रेचन करने का गुण इसके बीजों में होता है ; बशर्ते कि उन्हें निगला जाए ।
              यह फल सभी के लिए निरापद है । मधुमेह का रोग हो या किडनी की परेशानी ; सभी बीमारियों में इसका सेवन बेझिझक किया जा सकता है । यह त्रिदोष नाशक है । अर्थात वात पित्त और कफ का नाश करता है । विभिन्न प्रकार के रोग मात्र अमरुद से ही ठीक किए  जा सकते हैं । यह हृदय को शक्ति प्रदान करता है और घबराहट और बेचैनी को दूर करता है ।
      यह फल मस्तिष्क को तुरन्त ताकत देता है । एक दो फल खाने के बाद पुन: शरीर और मस्तिष्क में स्फूर्ति  वापिस आ जाती है । यह दाह नाशक है । हाथ , पैरों की जलन को समाप्त करता है । यह फल , कमजोरी और मूर्छा को ठीक कर देता है ।
                            खाँसी होने पर , इसके कम पके फल के टुकड़े करके उनमे नमक लगाएँ और आग पर भूनें । फिर उस अमरुद को चबा चबाकर खाएँ । इस प्रकार करने से पुरानी से पुरानी खाँसी  भी दूर हो जाती है । लीवर damage हो गया हो या भूख कम लगती हो ; तब भी अमरुद को इसी प्रकार खाना चाहिए । खाना खाने से कुछ देर पहले इस फल को खाया जाए तो यह आँतों और liver के लिए बहुत अच्छा रहता है । खाने के बाद इस फल को खाया जाए तो विरेचन काफी अच्छा होता है परन्तु इसके लिए भोजन कम मात्रा में खाना होगा ।
                                               मसूढ़ों के दर्द के लिए इसके पत्तों का प्रयोग किया जा सकता है ।इसके पत्तों को कूटकर उसमें नमक और लौंग मिलाकर उबाल लें । इस पानी से गरारे और कुल्ले करें । इससे मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी और मुँह  के छाले भी ठीक हो जायेंगे । मुंह में छाले हो गए हों तो इसकी कोमल पत्तियाँ चबाएँ । इन्हें निगल भी सकते हैं । तब भी यह लाभ ही करेंगी ।
                                     खाँसी या कफ होने पर इसके पत्तों का काढ़ा पीएँ । सूखे पत्तों का काढ़ा भी खांसी को ठीक करता है । यह काढ़ा बुखार को भी ठीक करता है । अपचन होने पर इसकी छाल , पत्तियां और सौंठ मिलाकर काढ़ा बनाएँ और सवेरे शाम पीएँ । संग्रहणी या अतिसार की समस्या से भी यह काढ़ा मुक्ति दिलाता है । इसके ताज़े या सूखे पत्तों में तुलसी मिलाकर चाय भी बनाई जा सकती है । यह बहुत लाभप्रद होती है । छोटे बच्चों को colitis की समस्या हो तो इसकी जड़ का छिलका 2 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बनाकर दे सकते हैं ।
                                           अमरुद के सेवन से पुराने से पुरानी अतिसार की समस्या ठीक हो जाती है । पेट में कीड़े हों तो नमक के साथ अमरुद का सेवन करें । भांग का नशा चढ़ गया हो तो इसके पत्तों का रस पिला दें या फिर अमरुद खिलाने से भी भाँग का नशा उतर जाता है ।